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तीन साल से तीन महीने की मजदूरी के लिए भटक रहे हरियाणा के 145 मनरेगा मजदूरों को इंसाफ कौन दिलाएगा?

-गांव कनेक्शन,

 "सरपंच के कहने पर तीन महीने तक मनरेगा के तहत दिहाड़ी की, लेकिन एक भी फूटी कौड़ी नहीं मिली। मिली तो सरपंच से मारने-पिटने की धमकी और गालियां। मजदूरों को तो इंसान समझते ही नहीं। अपनी मजूरी मांगते हैं तो डराकर भगा देते हैं। हमारे पैसे जो सरकार ने भेजे थे उन्हें खुद ही जीम (डकारना) गए। गरीब आदमी को तो दिहाड़ी के नाम पर बस गालियां ही मिली" इतना कहकर हरियाणा के सोनीपत जिले के कोहला गांव की मनरेगा मजदूर अनीता एकबारगी के लिए तो रुकती हैं, लेकिन हिम्मत जुटा दोबारा अपने श्रम की लूट की कहानी बताने लगती हैं।

वह बताती हैं, "साल 2017 में सितंबर के महीने में हमारे गांव के सरपंच ने करीब 140-45 मजदूरों से मनरेगा के तहत हर रोज काम पर आने को कहा। उन मजदूरों में एक मैं भी थी। हम सभी मजदूरों से सरपंच ने गलियां साफ करवाईं, नालियां साफ करवाईं, खेतों में काम करवाया, अपने धान कटवाए, अपनी फैक्ट्ररी में काम करवाया। इतना ही नहीं, पुलिस वालों की चमचागिरी करने के लिए हमसे पुलिस थाने की भी सफाई करवाई। मजदूरों की मजबूरी का पूरा फायदा उठाया, लेकिन काम खत्म होने के बाद जब हमने पैसे मांगे तो हमें कुछ दिन का नाम लेकर भगा दिया। तीन साल होने को हैं एक रुपया नहीं दिया।"

अनीता के पास बैठी मनरेगा मजदूर मीना कुमारी ने बताया कि सारे मजदूर अपनी दिहाड़ी के लिए हर दरवाजा खटखटा चुके हैं। अधिकारी उनकी बात सुनना तो दूर, उन्हें धक्के और मरवा देते हैं। मीना बताती हैं, "जब इस सरपंच ने हमें साफ कह दिया की तुम्हारे पैसे नहीं मिलेंगे तो हम लोग इकट्ठा होकर ब्लॉक अधिकारी से भी मिले, डीसी (उपायुक्त) से भी मिले और तहसीलदार से भी मिले। तहसीलदार ने तो जी पुलिस से डंडे मरवाने तक की धमकी दी हमें। अब बताओ आप, गरीब आदमी कहां जाए। किससे अपनी दिहाड़ी मांगे।"

इन मजदूरों को दुख सिर्फ इस बात का नहीं है कि इन्हें दिहाड़ी नहीं मिली और सरपंच व अधिकारियों ने इनकी बात नहीं सुनी। बल्कि सबसे ज्यादा दुख इस बात का भी है कि जब इन्होंने अपने गांव में लोगों की पंचायत बुलानी चाही तो गांव के दूसरे लोग इस पंचायत में नहीं आए। इस मामले में ही मजदूरों का साथ दे रहे गांव के युवक जस्मिंदर सिंह बताते हैं, "गांव के ही कुछ पढ़े-लिखे युवा इन मजदूरों का साथ दे रहे हैं। जब इन मजदूरों ने गांव में पंचायत बुलाई तो सरपंच ने अपने चमचों से गांव के व्हाट्सएप ग्रुप में ये मैसेज डलवा दिया कि इन दलितों की पंचायत में कोई नहीं जाएगा और जब पंचायत हुई तो इन मजदूरों के अलावा गांव से सिर्फ 5-7 लोग ही शामिल हुए। सरपंच इन मजदूरों की दिहाड़ी दिलवाना तो दूर अब खुद को बचाने के लिए इस मामले को जातिय एंगल देने की कोशिश तक कर रहा है।"

इस मामले में एक पेंच यह भी है कि मनरेगा से संबंधित किए गए काम के पैसे आए जरूर हैं लेकिन वह उन लोगों के खातों में आए हैं जो कभी काम पर ही नहीं गए। मनरेगा मजदूर मंजीत बताते हैं, "भाई साब मेहनत तो हमने करी, लेकिन पैसे आए सरपंच के भाई-बंद और दोस्तों के खातों में जो कभी काम पर गए ही नहीं। दिहाड़ी तो करी गरीबों ने और पैसे आए अमीरों के खाते में। बताओ जी ये सरासर हमारी मेहनत की लूट नहीं तो क्या है और इस लूट में सिर्फ सरपंच ही नहीं ऊपर तक कई अधिकारी शामिल हैं।"

देखते-देखते हमारे पास कई महिला मजदूर जमा हो जाती हैं। इन महिला मजदूरों में खड़ी माया देवी कहती हैं, "जी मजदूरी देना तो दूर अब तो सरपंच ये चाहता है कि हम चुप रहें और किसी को अपना दर्द भी न सुनाएं। हमारे बच्चों तक भी सरपंच धमकी दे रहा है। बताओ अपनी दिहाड़ी मांगना भी गुनाह हो गया है क्या।"

इस भीड़ में खड़ी एक महिला एकदम बोल पड़ती है, "क्यों रहें चुप। अपना खून-पसीना बहाकर दिहाड़ी की थी। हम तो धरना भी लगाएंगे, पंचायत भी करेंगे, और अफसरों को भी शिकायत करेंगे। जब तक हमारे पैसे नहीं मिल जाते, हम चुप नहीं बैठेंगे। चाहे सरपंच हमें गोली मरवा दे।"

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