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जीएम फूड के प्रवेश वाले मसौदे को क्यों खारिज कर रहे विशेषज्ञ

-न्यूजलॉन्ड्री,

जीएम फूड को भारत में अनुमति देने वाले फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसआई) के सार्वजनिक किए गए प्रारूप पर लगातार आपत्तियां दर्ज कराई जा रही हैं. 3 फरवरी, 2022 को एफएसएसएआई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को देश के 162 पेशेवर चिकित्सकोें ने पत्र भेजकर संयुक्त तौर पर प्रारूप के प्रावधानों पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है. पेशवर चिकित्सक समूह ने कहा है कि उन्हें जीएम फूड को रेगुलेट करने के लिए प्रस्तावित वर्तमान मसौदा न सिर्फ अस्वीकार्य है बल्कि जीएम फूड पर प्रतिबंध को कानूनी तौर पर पूर्ण रूप से सख्ती के साथ लागू किया जाना चाहिए.

एफएसएसएआई ने फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट, 2006 (एसएसएएसए कानून, 2006) की धारा 22 के तहत भारत में जीएम फूड को विनियमित करने के लिए एक प्रारूप का प्रस्ताव किया है. जीएम फ्री इंडिया की तरफ से डॉ अरुण गुप्ता ने यह पत्र एफएसएसएआई के अलावा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को भी भेजा है.

मेडिकल प्रोफेशनल्स ने अपने पत्र में कहा है कि आम लोगों के स्वास्थ्य के लिए फूड सेफ्टी एक जरूरी चीज है इसलिए जीएम फूड के लिए एक कड़े रेगुलेशन की जरूरत है. बीटी बैंगन के जैवसुरक्षा दस्तावेज और विविध स्वतंत्र विशेषज्ञों के विस्तृत अध्ययन यह बताते हैं कि जीएम फूड का उपभोग मानव स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित नहीं है. विशेषज्ञों ने अपने निष्कर्षों में यहां तक कहा है कि यह खाद्य के रूप में जहरीला भी हो सकता है.

भारत में बीटी बैगन रिलीज पर 2010 में अनिश्चितकाल प्रतिबंध लगाया गया था. वहीं, खरपतवार रोधी सरसो नई जीएम फूड क्रॉप थी जिसे बिना बायोसेफ्टी डोजियर को सार्वजनिक किए ही रेगुलेटर्स द्वारा पास कर दिया गया था. बीटी बैंगन की तरह इसका भी परीक्षण नहीं किया गया.

ऐसा लगता है कि जीएम फूड विकसित करने वाले वैज्ञानिकों को एक स्वतंत्र परीक्षण करने और अपने ही आंकड़ों पर डर लग रहा है. भारत में दो जीएम फूड क्रॉप्स की खेती-किसानी पर रोक लगाई गई, लेकिन नया मसौदा उसे प्रवेश की इजाजत देता है.

चिकित्सक समूहों ने कहा कि जीएम खाद्य पदार्थों पर रोक लगाने के लिए एक कठोर जैव सुरक्षा मूल्यांकन और सुरक्षा व्यवस्था की जरूरत है और कोई भी कठोर शासन जीएम तकनीक की असुरक्षित प्रकृति को सामने रखेगा. लेकिन प्रस्तावित नियमों से ऐसा लगता है कि तथ्यों को दरकिनार करके जोखिम भरी जीएम तकनीक को नियमों से समझौता करके जीएम फूड को लाने की कोशिश की जा रही है.

प्रस्तावित विनियमों में स्वतंत्र, दीर्घकालिक, व्यापक, बहु-पीढ़ी जैव सुरक्षा मूल्यांकन के बारे में कुछ भी नहीं है और ऐसा लगता है कि जीएम खाद्य पदार्थों के लिए नियामक कहीं और अनुमोदन स्वीकार करने के लिए तैयार हैं, ताकि उन्हें भारत में भी अनुमति दी जा सके.

एफएसएसएआई के प्रारूप पर सवाल उठाते हुए चिकित्सकों ने कहा है कि इस तरह का दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से किसी भी नियम को पहली बार में अधिसूचित करने के उद्देश्य पर ही प्रश्नचिह्न लगाता है. यह स्पष्ट है कि भारत की अनूठी खाद्य संस्कृतियां, हमारी खपत और कुपोषण की स्थिति, सार्वजनिक स्वास्थ्य की हमारी खराब स्थिति और कमजोर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली, और हमारे नागरिकों की प्राथमिकताओं को इन नियमों को तैयार करने के लिए महत्वपूर्ण विचारों के रूप में कुछ हद तक गैर-जिम्मेदाराना तरीके से अलग रखा गया है.

यह अतिरिक्त चिंता का विषय है कि इन मसौदा विनियमों में कुपोषित बच्चों में अज्ञात और संभावित रूप से जहरीले प्रभावों की अनदेखी की गई है. राज्य सरकारें और इस मामले पर उनकी नीतिगत स्थिति भी मायने नहीं रखती, भले ही सार्वजनिक स्वास्थ्य राज्य का विषय है.

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