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उत्तर प्रदेश के कोविड-19 संकट पर जारी आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट असलियत से परे है

-द वायर,

आईआईटी कानपुर ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसका शीर्षक ‘कोविड संग्राम, यूपी मॉडल: नीति, युक्ति और परिणाम’ है. इस रिपोर्ट में कोविड-19 संकट से निपटने के संबंध में उत्तर प्रदेश सरकार की तारीफों की झड़ी लगाई गई है. 100 पन्नों से कुछ बड़ी यह रिपोर्ट अंग्रेजी व हिंदी में उपलब्ध है.

यह रिपोर्ट मनिंद्र अग्रवाल द्वारा लिखी गई है जो महामारी से पहले ‘कॉम्पलेक्सिटी थ्योरी’ पर अपने काम के लिए जाने जाते रहे हैं. वे लगातार महामारी की समीक्षा करते हुए खबरों में बने रहे लेकिन उनकी समीक्षाएं गलत ही साबित हुईं. 2021 की शुरुआत में उन्होंने दावा किया था कि भारत में हर्ड इम्युनिटी विकसित हो चुकी है और कोरोना की दूसरी लहर नहीं आएगी.

(मैं इन दावों पर पहले भी इस संबंध में चर्चा कर चुका हूं कि कैसे भारत की दूसरी लहर की तबाही में कमजोर और राजनीतिक रूप से प्रायोजित विज्ञान की कहीं न कहीं एक भूमिका रही है.)


आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट कई मायनों में भारी दोषपूर्ण है और इसे महज राजनीतिक प्रचार मानकर खारिज करना आसान होगा. लेकिन इसे मिले व्यापक मीडिया कवरेज और इसके लेखक की प्रतिष्ठा को देखते हुए इसकी सावधानीपूर्वक गहराई से समीक्षा की.

इसकी सबसे बड़ी कमजोरी जो ध्यान खींचती है वो यह है कि ये रिपोर्ट किसी भी अर्थ में यह पूछने में विफल रहती है कि उत्तर प्रदेश में कोविड-19 महामारी के चलते कितने लोगों की मौत हुई.

मौतें, जो गिनी गईं और जो नहीं गिनी गईं
आईआईटी की रिपोर्ट में ‘गंगा में तैरते शवों पर मीडिया रिपोर्ट्स’ के उल्लेख के अलावा राज्य में आई विनाशकारी दूसरी लहर पर आई उन कई ज़मीनी रिपोर्ट्स को कोई जगह नहीं मिली ही, जिनमें श्मशान घाटों के भयावह हालात, लोगों में व्याप्त दहशत और भ्रम, चिकित्सा सेवाओं की बदहाली, ऑक्सीजन की कमी और उन कई संभावित कोविड मौतों- जिनकी रिकॉर्ड में गिनती ही नहीं की गई- का जिक्र था.

एक विशेष समूह, जिसका आईआईटी रिपोर्ट में जिक्र नहीं है, वे हैं उत्तर प्रदेश के स्कूल शिक्षक. उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ के अनुसार, उत्तर प्रदेश में दूसरी कोविड-19 लहर के दौरान चुनावी ड्यूटी में लगे 2,046 शिक्षकों की मौत हुई थी. राज्य सरकार के मुताबिक यह संख्या तीन थी.

आंकड़ों का यह अंतर अति की सीमा के पार है लेकिन आश्चर्य बिल्कुल नहीं होता. कई अध्ययन अब दिखा चुके हैं कि भारत मृत्युदर के मामले में बहुत बुरी तरह प्रभावित हुआ है, जबकि आधिकारिक आंकड़ों में महामारी से होने वाली मौतों को बहुत कम आंका जा रहा है. विकास के मामले में उत्तर प्रदेश के तुल्य राज्यों, जैसे कि मध्य प्रदेश और बिहार, में आधिकारिक मौतों की संख्या से 20 गुना ज्यादा मौतें हुई हैं.

आईआईटी की रिपोर्ट मृत्यु दर पर इस प्रासंगिक जानकारी में से किसी पर भी चर्चा नहीं करती है और न ही यह किसी मृत्यु दर संबंधी अध्ययन का उल्लेख करती है.

फिर भी इसके लेखक चीन के बारे में यह टिप्पणी करने की जगह ढूंढ़ लेते हैं, ‘चीन में प्रति दस लाख पर दर्ज की गईं मौतों की संख्या ग्राफ में सपाट है, अत: उसके डेटा की सत्यता में संदेह है.’

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.