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वैश्विक महामारी कोरोना में शिक्षा से जुड़ी इन चर्चित घटनाओं ने खींचा दुनिया का ध्यान

-न्यूजक्लिक,

इस वर्ष वैश्विक महामारी के दौरान कुछ देशों में स्कूली शिक्षा से जुड़ी चर्चित घटनाएं घटीं, जो कहीं रोचक बहस तो कहीं चिंता का सबब बन गईं। बात शुरू करते हैं हांगकांग से, जहां स्कूल परिसरों में बच्चों द्वारा किए जाने वाले राजनीतिक गीत-संगीत के आयोजन को लेकर वहां की सरकार और विशेष तौर पर शिक्षा मंत्रालय ने सख्त आपत्ति जताई थी और कहा था कि स्कूली बच्चों को चाहिए कि वे सियासी विषयों से दूर रहें। 

इस बारे में शिक्षा मंत्री केविन येउंग का कहना था कि स्कूली बच्चे अवयस्क होते हैं और इसलिए वे पूरी तरह से अभिव्यक्ति के अधिकार के योग्य नहीं माने जा सकते हैं. दूसरी तरफ, इस दौरान वहां के कुछ नागरिक समूहों ने इस मुद्दे पर विरोध जताते हुए यह मांग की कि बच्चों को भी राजनीतिक मुद्दों पर शांतिपूर्ण तरीके से अपना मत रखने और राजनीतिक मुद्दों पर हस्तक्षेप करने का अधिकार होना चाहिए।

कुछ नागरिक समूहों ने अंतराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का हवाला देते हुए यह कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को तभी प्रतिबंधित किया जा सकता है जब उससे दूसरों लोगों के अधिकारों में बाधा पहुंच रही हो, या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक हो, या फिर सार्वजनिक सुरक्षा से जुड़ा संवेदनशील मामला हो।

इस दौरान हांगकांग की सरकार और वहां के शिक्षा मंत्री को इस मुद्दे पर घेरने के लिए इन नागरिक समूहों ने 'बाल-अधिकार सम्मेलन' के तहत बच्चों को भी दी गई बोलने की स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने के संकल्प की याद दिलाई और कहा कि राजनेताओं को असहज करने वाले गीतों में ऐसा कुछ भी गलत नहीं है कि उन पर प्रतिबंध लगाया जाए।

अफगानिस्तान में धार्मिक शिक्षा को लेकर चिंता

कुछ महीने पहले अफगानिस्तान सरकार के एक प्रस्ताव पर विश्व के कुछ मानवाधिकार संगठनों द्वारा शिक्षा क्षेत्र में वहां की सरकार की 'प्रतिबद्धता' पर चिंता जताई गई। इस प्रस्ताव में कहा गया था कि प्राथमिक स्कूलों के तहत पहले तीन वर्षों के लिए बच्चे मस्जिद में पढ़ेंगे। इस प्रस्ताव को लाते समय अफगानिस्तान की शिक्षा मंत्री रंगीना हमीदी ने कहा, "हम स्कूल की अवधि की पहली, दूसरी और तीसरी कक्षाओं को मस्जिद में स्थानांतरित करने के लिए काम कर रहे हैं।" उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि नए भर्ती हुए छात्र मस्जिद परिसर के भीतर लगने वाले स्कूल में इन तीन कक्षाओं का अध्ययन करेंगे और फिर उसके बाद चौथी कक्षा के लिए स्कूल जाएंगे।

इसके बाद कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने प्राथमिक स्कूल के बच्चों को धार्मिक शिक्षा देने के प्रस्ताव का विरोध जताते हुए कहा कि अफगानिस्तान के स्कूली राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में इस्लामिक अध्ययन पहले से ही एक प्रमुख भाग के रुप में शामिल है, ऐसे में इस प्रस्ताव से एक खतरा यह है कि गरीब समुदाय और दूरदराज के कई बच्चे शिक्षा से वंचित हो सकते हैं, क्योंकि अफगानिस्तान में 41% स्कूलों के पास अपने भवन तक नहीं हैं, जिस ओर सरकार का ध्यान नहीं जाएगा। हालांकि, ग्रामीण अंचल के कुछ बच्चे मस्जिदों में पढ़ने के लिए जाते हैं। इसके बावजूद मस्जिदों को सरकारी स्कूलों का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए।

दरअसल, अफगानिस्तान में मस्जिदें राष्ट्रीय पाठ्यक्रम को मानने के लिए बाध्य नहीं होती हैं। वहां शिक्षा मंत्रालय द्वारा निगरानी का कोई तंत्र तैयार नहीं है और बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को लेकर भी किसी तरह की कोई सुनिश्चितता नहीं है। 'ह्यूमन राइट्स वॉच' के सर्वेक्षण में मस्जिदों में पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चों ने यह बताया कि वहां उन्हें मुख्य रुप से धार्मिक शिक्षा दी जाती है।

आमतौर पर ऐसे बच्चे चौथी के लिए सरकारी स्कूलों में दाखिल होने लायक नहीं रहते हैं, क्योंकि उनमें चौथी के स्तर की प्रारंभिक शिक्षा की कमी रहती है। वहीं, एक मांग यह भी है कि मस्जिदों को शिक्षा मंत्रालय द्वारा पंजीकृत किया जाना चाहिए और मस्जिदों को बच्चों के लिए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम पढ़ाना चाहिए।

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