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अंगरेजों के जमाने के पुलिस बल से कैसे होगी लोगों की सुरक्षा

रांची : सरकार से लेकर डीजीपी तक राजधानी को अपराध मुक्त बनाने की कवायद में लगे हुए हैं. रांची में अपराध पर नियंत्रण हो, इसके लिए कई उपाय किये गये. लेकिन, जब थानों में पुलिसकर्मियों की ही कमी हो, तो अपराध मुक्त रांची की कल्पना नहीं की जा सकती है. अंगरेजों के जमाने (1914) में स्थापित राजधानी के सबसे महत्वपूर्ण कोतवाली थाने में दारोगा के 15 स्वीकृत पद हैं, लेकिन पदास्थापित सिर्फ नौ दारोगा ही हैं. वहीं एएसआइ के 15 स्वीकृत पद के बदले सिर्फ 10 जमादार हैं.

हवलदार के स्वीकृत चार पद अब तक खाली पड़े हुए हैं. यहां सिपाही के 15 पद स्वीकृत हैं, लेकिन छह सिपाही ही कार्यरत हैं. यहीं स्थिति धुर्वा थाने की है.

यहां भी पुलिस अधिकारियों की कमी है. आठ दारोगा में से तीन और नौ जमादार में से वर्तमान में सिर्फ एक जमादार ही कार्यरत हैं. इन थानों में पुलिस पदाधिकारियों और पुलिस बल को बढ़ाने के लिए प्रयास ही नहीं किये गये. ऐसी स्थिति में अपराध नियंत्रण तो दूर, थानों में भी भगवान भरोसे काम चल रहा है. पदाधिकारियों की संख्या में कमी की वजह से पुलिस पदाधिकारी काम के बोझ से दबे हुए हैं. हालात ऐसे हैं कि वे राजधानी में काम नहीं करना चाहते हैं. हालांकि अलग झारखंड राज्य गठन के बाद वर्ष 2006 में पुलिस बल की संख्या में कुछ वृद्धि हुई थी.

सिर्फ थानेदार के भरोसे चल रहे थाने

राजधानी के प्रत्येक थानों की स्थिति यह है कि थाना प्रभारी को छोड़ कोई सेकेंड मैन काम करनेवाला नहीं है. अधिकांश दारोगा और जमादार बुजुर्ग हो चुके हैं. उनमें काम करने और लिखा-पढ़ी करने की क्षमता अब नहीं है. यदि कोई सेकेंड मैन है भी, तो उस पर काम का इतना बोझ रहता है कि वह थाने के काम के लिए समय नहीं निकाल पाते हैं. इस वजह से सभी काम सिर्फ थाना प्रभारी को करना पड़ता है.

50 बाइक सिटी कंट्रोल रूम में सुरक्षित

कोतवाली व धुर्वा थाने में दो पैंथर व चार टाइगर मोबाइल हैं. जबकि अन्य थानों में दो-दो टाइगर व एक पैंथर मोबाइल हैं. टाइगर व पैंथर मोबाइल में दो सशस्त्र पुलिस कर्मी होते हैं, जबकि 50 मोटरसाइकिल सिटी कंट्रोल रूम में सुरक्षित रहते हैं. आदेश मिलने पर पुलिसकर्मी इससे गश्ती पर निकलते हैं. सिटी कंट्रोल से विभिन्न थानो में दो-दो मोटरसाइकिल गश्त के लिए दिये गये हैं.

700 जवान अंगरक्षक व हाउस गार्ड में तैनात

जिले में 700 पुलिस के जवान मंत्री, अधिकारी, विधायक, बिल्डर व रसूखदार लोगों के अंगरक्षक व हाउस गार्ड के रूप में तैनात हैं. यदि इतनी संख्या बल को आम लोगों की सुरक्षा में लगायी जाये, तो काफी हद तक अपराध पर अंकुश लगेगा. शीघ्र ही जवानों की बहाली नहीं की गयी तो राजधानी की सुरक्षा व्यवस्था बदतर हो जायेगी.

ट्रैफिक जवान की स्थिति दयनीय

ट्रैफिक पुलिसकर्मियों की स्थिति दयनीय है. हर पोस्ट पर जो पुलिसकर्मी तैनात होते हैं, वे सुबह आठ से रात नौ बजे तक यानी 13 घंटे तक डय़ूटी करते हैं. ऐसे में उन्हें कैसे चुस्त दुरुस्त रख सकते हैं. एक पुलिस अधिकारी का कहना है कि राजधानी बनने के बाद जनसंख्या में वृद्धि हुई है. ऐसे में सुरक्षा व यातायात व्यवस्था के लिए मैन पावर की संख्या काफी कम है.