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अंधविश्वास व अंधभक्ति का बाबा -- आशुतोष चतुर्वेदी

जो व्यक्ति बड़ी-बड़ी विदेशी कारों में चलता हो, फिल्में बनाता हो, उनमें हीरो की भूमिका भी खुद ही निभाता हो, खुद को बाबा कम रॉक स्टार अधिक मानता हो, जिस पर रेप का आरोप सिद्ध हो गया हो, जिसकी जीवनशैली राजा महाराज की तरह हो, जिसमें आध्यात्मिक गुरू का कोई तत्व न हो, ऐसा व्यक्ति क्या बाबा कहलाने लायक है? रेप के आरोप में राम रहीम को दोषी करार दे दिये जाने के बाद यह सवाल मुखर हो उठा है.

भारत में आध्यात्मिक परंपरा बहुत पुरानी है. आदि शंकराचार्य से लेकर महर्षि अरविंद, रामकृष्ण परमहंस, चैतन्य महाप्रभु, विवेकानंद, परमहंस योगानंद, आचार्य शंकर देव जैसे अनगिनत संतों ने भारत की आध्यात्मिक परंपरा को जीवंत बनाये रखा है. इसी तरह पंजाब और हरियाणा में डेरों की परंपरा भी बड़ी पुरानी है. इनका समाज में व्यापक प्रभाव रहा है. समाज सुधार में इनकी भूमिका रही है. सिख समाज जब संघर्ष में होता था, तो ऐसे में डेरे महिलाओं व बच्चों को संरक्षण देते थे. आजादी के बाद इनका स्वरूप बदला और दलित और पिछड़े वर्ग के लोग इनसे बड़ी संख्या में जुड़े, क्योंकि उन्हें यहां सामाजिक बराबरी का दर्जा हासिल होता था. डेरा सच्चा सौदा भी इसी परंपरा से आता है.

डेरा सच्चा सौदा की स्थापना 1948 में शाह मस्ताना महाराज ने की थी. उसके बाद शाह सतनाम महाराज ने गद्दी संभाली और 1990 में गुरमीत सिंह को गद्दी मिली. गुरमीत मूल रूप से राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के रहने वाले हैं. ऐसा दावा किया जाता है कि इसके डेरे के देश विदेश में फैले अनुयायियों को संख्या करोड़ों में है. लेकिन, उनका प्रतिनिधित्व कौन करता है- गुरमीत राम रहीम नामक शख्स, जो कभी इंसां बन जाता है, तो कभी बाबा राम रहीम. वह खुद को भगवान के संदेशवाहक के रूप में पेश करता है.

ऐसे रंगीन कपड़े पहनता है कि बॉलीवुड के हीरो भी शरमा जायें. वह गर्व से बताता है कि उसके छह म्यूजिक एलबम आ चुके हैं. उनके जरा नाम सुनिए- चश्मा यार का, नेटवर्क तेरे लव का, थैंक यू फोर देट, हाइवे लव चार्जर. वह बुलेटप्रूफ लैंडक्रूजर, मर्सिडिज और निजी विमान से सफर करता है. जिस डेरे का प्रमुख भोग विलास का प्रतीक हो, उससे समाज को दिशा देने अथवा समाज सुधार की क्या उम्मीद की जा सकती है.

इस बाबा का विवादों से पुराना नाता रहा है. 2007 में गुरमीत सिंह ने गुरु गोबिंद सिंह जैसी वेशभूषा धारण कर फोटो खिंचवायीं, जिसका सिख समाज ने विरोध किया. सिखों और डेरा समर्थकों में टकराव हुआ.

पंजाब की एक स्थानीय अदालत ने डेरा प्रमुख के खिलाफ गैरजमानती वारंट भी जारी कर दिया था, जिसके बाद पंजाब में जगह-जगह हिंसक प्रदर्शन हुए और माफी के बाद मामला समाप्त हो गया. हरियाणा के सिरसा से प्रकाशित होने वाले स्थानीय अखबार ‘पूरा सच' के संपादक रामचंद्र छत्रपति ने अपने अखबार में डेरा सच्चा सौदा से जुड़ी खबरें प्रकाशित की थीं. 24 अक्तूबर, 2002 को छत्रपति की गोली मार कर हत्या कर दी गयी. इसकी भी जांच सीबीआइ कर रही है. 17 जुलाई, 2012 को हाइकोर्ट में याचिका दायर कर राम रहीम पर डेरे के 400 साधुओं को नपुंसक बनाये जाने का आरोप लगाया गया.

यह मामला भी अदालत में है. रणजीत सिंह नामक व्यक्ति डेरा की प्रबंधन समिति का सदस्य था और उसकी भी 10 जुलाई, 2003 को हत्या कर दी गयी. यह मामला भी अदालत में विचाराधीन है. 2010 में डेरा के ही पूर्व साधु राम कुमार बिश्नोई ने हाइकोर्ट में याचिका दायर कर डेरा के पूर्व मैनेजर फकीर चंद की गुमशुदगी की सीबीआइ जांच की मांग की थी. आरोप था कि फकीर चंद की हत्या की गयी थी. सबूत जुटाने में विफल सीबीआइ ने क्लोजर रिपोर्ट फाइल कर दी. बिश्नोई ने हाइकोर्ट में उस क्लोजर रिपोर्ट को चुनौती दी है.

अगर इस पृष्ठभूमि पर गौर करें तो पायेंगे कि भारी राजनीतिक और सामाजिक रसूख वाले राम रहीम को सजा दिलवाना कोई आसान काम नहीं था. उसके खिलाफ कोई आवाज उठाने की हिम्मत नहीं करता है.

अक्सर डेरे अपने अनुयायियों से किसी खास दल को वोट देने की घोषणा से बचते हैं, लेकिन इस बाबा के राजनीतिज्ञों से गहरे रिश्ते हैं. देखा जाये तो लगभग सभी राजनीतिक दल बाबाओं के राजनीतिक इस्तेमाल में कोई संकोच नहीं बरतते. कुछ समय पहले राम रहीम कांग्रेस के पाले में था. लेकिन, पिछले हरियाणा विधानसभा चुनावों में बाबा को भाजपा ने साध लिया. बाबा को जेड प्लस सुरक्षा मिली हुई थी, जिसे अब जाकर वापस लिया गया है. गौर करें कि राजनीतिक दल हिंसा की तो निंदा कर रहे हैं लेकिन कोई बड़ा नेता राम रहीम को सीधे निशाने पर नहीं ले रहा.

मीडिया जरूर राम रहीम की कारगुजारियों को सामने ला रही है. बाबा के समर्थकों ने मीडियाकर्मियों और उनके वाहनों को विशेष रूप से निशाना बनाया है. लेकिन, बाबाओं को बढ़ा चढ़ाकर ईश्वर का नुमांइदा बनाने में मीडिया की भी एक भूमिका रही है. अगर आप याद करें कि बाबा की जब फिल्म रिलीज हो रही थी तो अनेक टीवी चैनलों और अखबारों ने राम रहीम को कितना प्रचारित किया था.

ऐसे ताकतवर शख्स के खिलाफ लगभग 15 साल पहले डेरे की एक साध्वी ने प्रधानमंत्री कार्यालय को चिट्ठी लिखी और आरोप लगाने की हिम्मत जुटायी. फिर इस मामले में पंजाब-हरियाणा हाइकोर्ट में अर्जी दाखिल की गयी. अदालत के आदेश पर 2001 में पूरे मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गयी. सीबीआइ ने अपनी रिपोर्ट विशेष अदालत को सौंपी.

उसके बाद गवाहियां हुईं और लंबी बहसें हुई. दुष्कर्म की शिकार दो महिलाओं के संघर्ष को याद रखना होगा, जो भारी दबाव के बावजूद पीछे नहीं हटीं. इन महिलाओं के बयानों के आधार पर ही राम रहीम दोषी साबित हुए हैं.

पीड़ित महिलाओं ने अपने बयान में बताया कि अधिकतर लड़कियां डेरे में इसलिए भी रहने के लिए मजबूर थीं, क्योंकि उनके परिवार वाले बाबा के अंधभक्त थे. शिकायतों के बावजूद घरवाले उनकी बात सुनने को तैयार नहीं थे. इसका सबक यह है कि किसी भी बाबा के अंधभक्त न बनें और अगर आपके परिवारजन किसी बाबा के बारे में विपरीत बातें कह रहे हैं, तो उसे अवश्य सुनें और उस पर ध्यान दें.