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अच्छे देशों की सूची में अभी दूर है भारत की मंजिल

मानवता की बेहतरी में योगदान के लिहाज से जारी अच्छे देशों की ताजा सूची में भारत को 70वें स्थान पर रखा गया है. सूची में 163 देशों को शामिल किया गया है. ऐसे किसी वैश्विक इंडेक्स में हमारे देश की मौजूदा स्थिति निश्चित रूप से निराशाजनक है. देशों की आंतरिक स्थिति के आधार पर पेश की जानेवाली अन्य महत्वपूर्ण रिपोर्टों पर नजर डालें, तो निराशा और बढ़ जाती है. मानव विकास सूचकांक, प्रसन्नता सूचकांक, सामाजिक प्रगति और आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा की अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में भी हमारा देश नीचे के पायदानों पर खड़ा है. 

शिक्षा, स्वास्थ्य, समानता, मानवाधिकार, पर्यावरण आदि मामलों में हमारी उपलब्धियां उत्साहवर्द्धक नहीं हैं. राष्ट्रीय संपत्ति के आधार पर दुनिया के सबसे धनी देशों में शामिल होकर या सकल घरेलू उत्पादन में तेज वृद्धि के दावे करके हम अपनी पीठ भले थपथपा लें, पर सच यही है कि देश के भीतर समानता, समृद्धि और खुशहाली के मामले में हमारा प्रदर्शन अभी बहुत पिछड़ा है. 
गुड कंट्री इंडेक्स भी इसी कड़वी हकीकत की एक तस्वीर पेश करता है. विभिन्न वैश्विक इंडेक्स के आईने से झांकती हमारी खराब छवि विकास की हमारी आकांक्षाओं को बहुत नुकसान पहुंच सकती है, क्योंकि यह छवि विदेशी निवेश, अंतरराष्ट्रीय राजनीति में दखल की क्षमता और पर्यटन आदि को भी प्रभावित करती है. 

उम्मीद की जानी चाहिए कि हमारी केंद्र और राज्य सरकारों के अलावा अन्य महत्वपूर्ण संस्थाएं भी इन निष्कर्षों पर समुचित ध्यान देकर स्थिति में सुधार के लिए गंभीर प्रयास करेंगी. गुड कंट्री इंडेक्स के विविध पहलुओं के साथ-साथ कुछ अन्य महत्वपूर्ण वैश्विक सूचकांकों पर नजर डाल रहा है इन-डेप्थ पेज...

गुड कंट्री इंडेक्स, 2016 के अनुसार स्वीडन दुनिया का सबसे अच्छा देश है. 163 देशों की इस सूची में अपना देश भारत 70वें स्थान पर है. यह इंडेक्स हर दो वर्ष में जारी होता है, जिसे ब्रिटेन के इस्ट एंग्लिया विश्वविद्यालय के ऑनरेरी प्रोफेसर साइमन एन्होल्ट ने विकसित किया है. वे बीते दो दशकों में कई देशों और सरकारों के सलाहकार के रूप में काम कर चुके हैं. शुरुआत में इस इंडेक्स को डॉ रॉबर्ट गोवर्स ने विभिन्न संस्थाओं की मदद से बनाया था. 

गुड कंट्री इंडेक्स विभिन्न देशों की राष्ट्रीय नीतियों और व्यवहारों के वैश्विक प्रभाव का तुलनात्मक अध्ययन करता है तथा दुनिया को बेहतर बनाने में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसके योगदान का आकलन करता है. संयुक्त राष्ट्र और अन्य महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के आंकड़ों और सूचनाओं को सात श्रेणियों में बांट कर इस इंडेक्स को तैयार किया जाता है. ये श्रेणियां इस प्रकार हैं

1. विज्ञान, तकनीक एवं ज्ञान 2. संस्कृति 3. अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा 4. विश्व व्यवस्था 5. पृथ्वी एवं जलवायु
6. समृद्धि एवं समानता, तथा 7. स्वास्थ्य एवं बेहतर जीवन. 

इंडेक्स का कहना है कि उनका इरादा किसी देश के बारे में कोई नैतिक निर्णय करना नहीं हैं, बल्कि मानवता के व्यापक हित में किये जा रहे योगदान को रेखांकित करना है. इंडेक्स किसी देश की सीमा के भीतर हो रहे बदलावों और क्रियाकलापों का मूल्यांकन नहीं करता है. इसका लक्ष्य दुनिया की बेहतरी के लिए व्यापक स्तर पर सहभागिता और सहयोग को बढ़ावा देना है. 

2016 के गुड कंट्री इंडेक्स में 10 सबसे अच्छे देश हैं- 1. स्वीडन 2. डेनमार्क 3. नीदरलैंड 4. ब्रिटेन 5. जर्मनी 6. फिनलैंड 7. कनाडा 8. फ्रांस 9. ऑस्ट्रिया 10. न्यूजीलैंड.
2016 के गुड कंट्री इंडेक्स में एशियाई देशों में जापान 19वें स्थान के साथ सबसे ऊपर है. भारत के पड़ोसी देशों में चीन 67वें, श्रीलंका 85वें, पाकिस्तान 117वें और बांग्लादेश 121वें स्थान पर हैं.

2014 के गुड कंट्री इंडेक्स में आयरलैंड, फिनलैंड एवं स्विट्जरलैंड सबसे ऊपर थे, जबकि इराक, लीबिया और वियतनाम सबसे आखिर में सूचीबद्ध किये गये थे.

गुड कंट्री इंडेक्स में भारत का स्थान 70वां है, पर कई श्रेणियों में उसका प्रदर्शन बेहद निराशाजनक है. भारत विज्ञान और तकनीक में 62वें, संस्कृति में 119वें, अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा में 27वें, विश्व व्यवस्था में 100वें, पृथ्वी एवं जलवायु में 106वें, समृद्धि एवं समानता में 124वें तथा स्वास्थ्य एवं बेहतर जीवन में 37वें स्थान पर है. 

कुछ अन्य महत्वपूर्ण वैश्विक इंडेक्स

1. वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स

संयुक्त राष्ट्र के सस्टेनेबल डेवेलपमेंट सॉल्यूशन नेटवर्क द्वारा प्रकाशित यह रिपोर्ट विभिन्न देशों में खुशी के स्तर का आकलन करती है. संयुक्त राष्ट्र महासभा में जुलाई, 2011 में एक प्रस्ताव पारित कर सदस्य देशों से अपने नागरिकों की खुशियों को मापने का आह्वान किया था और इसके आधार पर नीतियां बनाने का सुझाव दिया था. 

इस संबंध में अगले साल भूटान के प्रधानमंत्री जिग्मे थिन्ले की अध्यक्षता में संयुक्त राष्ट्र की पहली उच्च-स्तरीय बैठक हुई. उसी वर्ष एक अप्रैल को पहली हैप्पीनेस रिपोर्ट जारी की गयी थी. 

उल्लेखनीय है कि भूटान अब तक का पहला और एकमात्र देश है जो अपने मुख्य विकास सूचक के रूप में सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के स्थान पर सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता सूचकांक को प्रयुक्त करता है. 

इस रिपोर्ट में गाल्लप वर्ल्ड पोल के आंकड़ों का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान, सर्वेक्षण विश्लेषण, राष्ट्रीय सांख्यिकी और अन्य विषयों के जानकार बताते हैं कि बेहतर जीवन के आकलन को किसी देश के विकास को निर्धारित करने में कैसे प्रयुक्त किया जा सकता है. इस वर्ष डेनमार्क, स्विट्जरलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे और फिनलैंड सबसे प्रसन्न देश माने गये हैं. इसमें भारत का स्थान 118वां है और सोमालिया, चीन, पाकिस्तान, ईरान, फिलस्तीन और बांग्लादेश हमसे ऊपर हैं. 

2. मानव विकास सूचकांक (ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स)

यह सूचकांक जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और प्रति व्यक्ति आय का मिश्रित आंकड़ा है, जिसके आधार पर देशों को मानव विकास के चार चरणों में श्रेणीबद्ध किया जाता है. इस इंडेक्स को पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब उल हक और भारतीय अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने तैयार किया है. 

इसे बनाने में पॉल स्ट्रीटेन, फ्रांसिस स्टीवार्ट, गुस्ताव रानिस, कीथ ग्रिफीन, सुधीर आनंद और मेघनाद देसाई जैसे अर्थशास्त्रियों का भी अहम योगदान रहा है. इसे संयुक्त राष्ट्र डेवेलपमेंट प्रोग्राम द्वारा जारी किया जाता है. पिछले साल दिसंबर में जारी रिपोर्ट में नॉर्वे, ऑस्ट्रेलिया, स्विट्जरलैंड, डेनमार्क और नीदरलैंद शीर्ष पर रहे थे. इस सूची में भारत 130वें स्थान पर रहा था. 

3. सोशल प्रोग्रेस इंडेक्स

इस इंडेक्स के द्वारा देशों द्वारा अपने नागरिकों की सामाजिक और पर्यावरणीय जरूरतों को पूरा करने का मूल्यांकन किया जाता है. बुनियादी मानवीय जरूरतों, बेहतर जीवन और प्रगति करने के अवसरों से संबंधित 54 मानकों के आधार पर देशों को सूचीबद्ध किया जाता है. इसमें स्वास्थ्य, आवास, स्वच्छता, समानता, समावेशीकरण, सततीकरण और व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा सुरक्षा जैसे आधार होते हैं. इस इंडेक्स को सोशल प्रोग्रेस इंपरेटिव नामक स्वयंसेवी संस्था द्वारा प्रस्तुत किया जाता है. यह रिपोर्ट अमर्त्य सेन, डगलस नॉर्थ और जोसेफ स्टिग्लिज के विचारों और लेखों पर आधारित है. 

वर्ष 2015 के सोशल प्रोग्रेस इंडेक्स में नॉर्वे, स्वीडेन, स्विट्जरलैंड, आइसलैंड और न्यूजीलैंड शीर्ष पर रहे थे. इस सूचकांक में भारत का स्थान 101वां था. 

4. ग्लोबल कंपेटीटिवनेस रिपोर्ट 

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा इस वार्षिक रिपोर्ट को जारी किया जाता है. वर्ष 2004 में शुरू किये गये इस इंडेक्स को जेवियर साला-ए-मार्टिन और एल्सा वी अर्तादी ने तैयार किया था. यह रिपोर्ट देशों के अपने नागरिकों को उच्च-स्तरीय समृद्धि देने की क्षमता का आकलन करती है. 

उपलब्ध संसाधनों के उपयोग से की जा रही उत्पादकता इस आकलन का आधार होती है. इस तरह, ग्लोबल कंपेटीटिवनेस इंडेक्स संस्थाओं, नीतियों और कारकों का अध्ययन कर देशों के मौजूदा और निकट भविष्य में आर्थिक समृद्धि के सस्टेनेबल स्तर का निर्धारण करता है. वर्ष 2015-16 के इंडेक्स में स्विट्जरलैंड, सिंगापुर, अमेरिका, जर्मनी और नीदरलैंड शीर्ष पर रहे थे. इसमें भारत का स्थान 55वां है.

इसलिए अर्थपूर्ण है गुड कंट्री इंडेक्स

गुड कंट्री इंडेक्स के पीछे की अवधारणा बहुत साधारण है- मानवता की बेहतरी के लिए किये जा रहे देशों के योगदान का आकलन करना. संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों के आंकड़ों और उनके द्वारा उपलब्ध करायी गयी सूचनाओं के आधार पर हम हर देश के योगदान को निर्धारित करते हैं और यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि कौन-सा देश मानव जाति के लिए सकारात्मक भूमिका निभा रहा है, कौन-सा देश धरती पर बोझ है या फिर कौन-कौन सा देश इन दोनों श्रेणियों के बीच खड़ा है. 

क्या दुनिया को एक और इंडेक्स की जरूरत है? आज सैकड़ों ऐसे सर्वेक्षण प्रकाशित होते हैं, जो भिन्न-भिन्न मानकों पर देशों का तुलनात्मक अध्ययन कर उन्हें सूचीबद्ध करते हैं. लेकिन इनमें से अधिकतर सर्वेक्षण देशों के प्रदर्शन को विषय-विशेष के आधार पर स्थान देते हैं, चाहे वह आर्थिक विकास, स्थिरता, न्याय, पारदर्शिता, सुशासन, उत्पादन, लोकतंत्र, स्वतंत्रता हो या फिर खुशी का मानक. ये सभी देश के अनुसार मापे जाते हैं. लेकिन, गुड कंट्री इंडेक्स इनसे अलग है. 

यह देशों की नीतियों और उनके व्यवहार को वैश्विक असर के आधार पर श्रेणीबद्ध करता है. यह अपेक्षाकृत सही और अधिक वास्तविक वैश्विक बैलेंसशीट है. यह देशों को अलग-अलग ग्रह के रूप में नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिहाज से देखता है. इसकी अवधारणा यह है कि देशों की आबादी और सरकारें अपने राष्ट्रीय व्यवहार को वैश्विक संदर्भ में देखने के लिए प्रोत्साहित हों. 

हालांकि देशों के बारे में अधिक-से-अधिक विश्वसनीय आंकड़े जुटाये जा रहे हैं, पर कई मामलों में स्थिति अस्पष्ट बनी हुई है. ऐसे में हमें आंकड़ों के प्रयोग में बहुत समझदारी बरतनी होती है. हमारे द्वारा प्रयुक्त आंकड़े देशों के वैश्विक व्यवहार को मापने के सबसे स्पष्ट मानक हैं. हम देशों के आंतरिक स्तर पर किये जा रहे कामों का आकलन नहीं करते हैं. हालांकि ये सूचनाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं, पर इनके बारे में अनेक सर्वेक्षण पहले से ही मौजूद हैं. 

पहले के किसी दौर की तुलना में आज इस बात की अधिक आवश्यकता है कि दुनिया को अच्छे देशों का समूह बनाया जाये. इसके लिए हमें अपने नेताओं, कंपनियों, समाजों और अपने-आप से अधिक अपेक्षाएं रखना होगा.
प्रोफेसर साइमन एन्होल्ट 
प्रमुख, गुड कंट्री इंडेक्स