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अदल-बदल कर लगाएं फसल तो कीड़े नहीं कर पाएंगे नुकसान

दुनियाभर में फसलों पर तेजी से कीड़ों का हमला बढ़ता जा रहा है। अभी हाल ही में राजस्थान और गुजरात में टिड्डी दल के हमले ने भारी मात्रा में फसलों को नुकसान पहुंचाया था। वहीं, अफ्रीका के कई देशों में आर्मीवॉर्म ने खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल दिया था। पर वैज्ञानिकों ने उससे निपटने का एक रास्ता ढूंढ लिया है। उन्होंने एक नए शोध में कम्प्यूटेशनल मॉडल प्रस्तुत किया है। जिससे पता चला है कि क्रॉप रोटेशन के पैटर्न में बदलाव करके कीटों के खतरे से निपटा जा सकता है। साथ ही लम्बी अवधि के दौरान कीड़ों के हमले के समय भी एक अच्छी फसल प्राप्त की जा सकती है।

क्रॉप रोटेशन से तात्पर्य एक ही खेत में अलग-अलग समय पर अलग-अलग फसलों को उगाने से है। यह अध्ययन जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर इवोल्यूशनरी बायोलॉजी की मारिया बरगुज़े-रिबैरा और चैतन्य गोखले द्वारा किया गया है, जोकि जर्नल प्लॉस कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।

इतना महत्वपूर्ण क्यों हैं क्रॉप रोटेशन

यह तकनीक हजारों सालों से इस्तेमाल की जा रही है। इससे पहले के अध्ययन भी बताते है कि क्रॉप रोटेशन करके कीड़ों को नियंत्रित किया जा सकता है। साथ ही, यह मिट्टी की गुणवत्ता में भी सुधार कर सकता है और पोषक तत्वों की कमी को पूरा कर सकता है। यह कीटनाशकों और उर्वरकों की आवश्यकता को कम कर देता है। अन्य शोध बताते हैं कि कीटों के विकास में मदद करने वाले पर्यावरण में बदलाव करके इनके विकास और वृद्धि को सीमित किया जा सकता है, क्योंकि एक ही तरह की फसलें इनके विकास में मददगार होती हैं।

हालांकि, अब तक इन दोनों मान्यताओं को एक साथ अध्ययन नहीं किया गया था। फसल चक्र कीटों से बचने में कैसे सहायक हो सकता है, इसे बेहतर ढंग से समझने के लिए बरगुज़े-रिबेरा और गोखले ने इस तकनीक का एक कम्प्यूटेशनल मॉडल विकसित किया है, जिसमें नकदी फसलों (लाभ के लिए उगाई गई) और कवर फसलों (मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार के लिए उगाई गयी) का चक्रण किया गया, जिसमें उन्होंने पाया कि रोगाणुओं ने केवल नकदी फसलों पर ही हमला किया।

विश्लेषण ने बताया कि फसलों के रोटेशन का कौन से पैटर्न अधिकतम उपज दे सकता है और कीटनाशकों के प्रयोग को सीमित कर सकता है। निष्कर्ष बताते हैं कि लम्बे समय तक फसलों में बदलाव करने का क्या परिणाम होगा, यह मिट्टी की गुणवत्ता और कटाई के मौसम के दौरान रोगाणुओं की मात्रा पर निर्भर करता है। बरगुज़े-रिबेरा बताती हैं कि "हमारा मॉडल इस बात का उदाहरण है कि विकास के नए सिद्धांत किस तरह किसानों के ज्ञान को बढ़ा सकते हैं। दुनिया में खाद्य सामग्री की मांग बढ़ती जा रही है। उससे निपटने के लिए पारिस्थितिकी और विकासवादी सिद्धांतों की मदद से कृषि को बेहतर और टिकाऊ बनाने सम्बन्धी रणनीतियां  बनायीं जा सकती हैं।"
 
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