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अधिकारियों की प्रताड़ना के बहाने-- नवीन जोशी

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के डीएम राघवेंद्र विक्रम सिंह ने 28 जनवरी को फेसबुक पर यह टिप्पणी लिखी- ‘अजब रिवाज बन गया है. मुस्लिम मुहल्लों में जुलूस ले जाओ और पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाओ. क्यों भाई, वे पाकिस्तानी हैं क्या? चीन तो बड़ा दुश्मन है, तिरंगा लेकर चीन मुर्दाबाद क्यों नहीं?'

गणतंत्र दिवस के दो दिन पहले कासगंज में हिंदू जागरण मंच की तिरंगा यात्रा के एक मुस्लिम मुहल्ले से गुजरने के दौरान दंगा हो गया, जहां पहले से राष्ट्रीय ध्वज फहराने की तैयारी थी.

बरेली के डीएम अपनी फेसबुक वॉल पर बता रहे थे कि ऐसा ही उनके जिले में भी हो चुका है. इस पर डीएम को प्रदेश सरकार ने लखनऊ तलब कर लिया. उन्होंने अपनी पोस्ट हटा ली और किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए माफी मांगी. प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि वे नेताओं की भाषा बोल रहे हैं. उनके खिलाफ कार्रवाई होगी. फिलहाल डीएम के खिलाफ जांच जारी है.

बीते 28 जनवरी को ही उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी, होम गार्ड के महानिदेशक सूर्य कुमार शुक्ला ने लखनऊ विवि में एक कार्यक्रम के मंच पर अयोध्या में जल्द से जल्द राम मंदिर बनाने का संकल्प लिया. वीडियो वायरल हुआ, तो वे सफाई देने लगे. लेकिन किसी मंत्री ने नहीं कहा कि यह अधिकारी नेताओं की भाषा बोल रहा है, न ही स्पष्टीकरण मांगा गया. मुख्यमंत्री योगी जी ने सिर्फ नाराजगी व्यक्त की.
साल 2016 में मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के तत्कालीन कलेक्टर अजय गंगवार ने फेसबुक पर एक पोस्ट को ‘लाइक' कर दिया था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहलाल नेहरू की प्रशंसा की गयी थी.

उन्होंने अपनी तरफ से यह भी जोड़ा था कि ‘नेहरू को आखिर कौन सी गलती नहीं करनी चाहिए थी. क्या यह गलती थी कि उन्होंने 1947 में हमें हिंदू तालिबानी राष्ट्र बनने से बचा लिया?' मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने फौरन कलेक्टर गंगवार का भोपाल तबादला कर उनसे स्पष्टीकरण मांग लिया था.

उसी दौरान भाजपा शासित छत्तीसगढ़ के आइएएस अधिकारी अलेक्स पॉल मेनन ने फेसबुक पर लिखा कि देश में फांसी पर लटकाये जानेवालों में 94 फीसदी दलित और मुस्लिम होते हैं.

उन्होंने न्याय-व्यवस्था पर सवाल उठाया था. इसके लिए मेनन को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया. इससे पहले भी एक बार जब मेनन ने हैदराबाद विवि और जेनयू में छात्रों के आंदोलन पर कुछ पोस्ट शेयर की थी, तो भाजपा नेताओं ने ‘राष्ट्रद्रोहियों' का समर्थन करने का आरोप लगाते हुए हंगामा किया. उनके दबाव में मेनन को अपनी पोस्ट हटानी पड़ी थी.

जुलाई, 2016 में मोदी सरकार ने अधिकारियों के लिए नये दिशा-निर्देश प्रस्तावित किये. इनके अनुसार, अधिकारियों को सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने की इजाजत तो है, लेकिन वे सरकार, सरकार के कार्यक्रमों एवं सरकारी नीतियों के खिलाफ कुछ नहीं लिख सकते.

आकाशवाणी और दूरदर्शन पर सरकारी अधिकारी-कर्मचारी सरकार की नीतियों का विरोध नहीं कर सकते, यह पहले से उनकी सेवा नियमावली का हिस्सा था, लेकिन सोशल मीडिया पर ऐसी पाबंदी पहले की सरकारों ने नहीं लगायी थी.

लगता है कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के अधिकारियों की फेसबुक पोस्ट की प्रतिक्रिया में मोदी सरकार ने यह कदम उठाया. नये निर्देशों में न केवल रेडियो, टीवी व सोशल मीडिया का उल्लेख है, बल्कि ‘संवाद के किसी भी माध्यम' पर व अज्ञात नाम से भी सरकार की आलोचना की मनाही है.

साल 2012 में यूपीए सरकार ने भी सोशल मीडिया के बढ़ते चलन-प्रभाव को देखते हुए सरकारी विभागों और अधिकारियों के लिए कुछ दिशा-निर्देश जारी किये थे. इसमें कहा गया था कि कोई भी गोपनीय सूचना और अपुष्ट तथ्य सोशल मीडिया पर न दिये जाएं. जब तक अधिकृत न हों, अदालत में विचाराधीन मामलों और प्रस्तावित कानूनों पर टिप्पणी न करें. अधिकारियों को व्यक्तिगत क्षमता से सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने की छूट देते हुए कहा गया था कि अपनी पहचान अवश्य स्पष्ट करें.

आइएएस अधिकारी सरकार का ही हिस्सा होते हैं. उनसे सरकार और उसके कार्यक्रमों की सार्वजनिक आलोचना की अपेक्षा नहीं की जाती. मगर, क्या उनकी ऐसी निजी राय पर भी बंदिश लगायी जा सकती है, जिसका कोई संबंध सरकारी नीतियों-कार्यक्रमों से न हो?

जिलाधिकारी की जिम्मेदारी है कि वह शांति एवं कानून व्यवस्था कायम रखे. लेकिन, तिरंगा यात्रा के बहाने अगर कुछ लोग मुस्लिम मुहल्लों में अशांति फैलाने की कोशिश करते हैं, तो क्या वह अपना क्षोभ भी व्यक्त नहीं कर सकता?

सहारनपुर जिले की उप-निदेशक (सांख्यिकी) रश्मि वरुण ने फेसबुक पर लिखा कि कासगंज हिंसा में एक की मौत के पीछे ‘भगवा' हाथ है. उनसे फौरन स्पष्टीकरण मांग लिया गया. रश्मि ने टिप्पणी हटा ली. माना कि ‘भगवा' शब्द का प्रयोग गलत था, लेकिन प्रदेश के कई आइएएस अधिकारियों की राय में बरेली डीएम की फेसबुक पोस्ट में कुछ गलत नहीं था. कुछ लोग मानते हैं कि सरकारी सेवा में रहते उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था.

प्रश्न है कि क्या बरेली के डीएम या रश्मि वरुण की टिप्पणी सरकार और उसकी नीतियों की आलोचना है? सेवा नियमावली और दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है? सवाल यह भी कि डीजी (होमगार्ड) का सार्वजनिक समारोह में राम मंदिर बनाने का संकल्प लेना सेवा नियमावली का उल्लंघन नहीं है? क्या वे सरकारी नीतियों का समर्थन कर रहे हैं?

आइएएस-आइपीएस संवर्ग का बहुत राजनीतीकरण हो चुका है. अलग-अलग दलों के अपने पसंदीदा अधिकारी हैं. ‘स्टील फ्रेम' कहलानेवाली यह सेवा कबके झुक चुकी. तो भी कुछ अधिकारी हैं, जो साहसिक फैसले लेते और सही बात कहते हैं. सभी सरकारें उन्हें प्रताड़ित करती हैं.


सोशल मीडिया के बहाने प्रताड़ना का यह नया दौर शुरू हुआ है. छतीसगढ़ के मेनन ने आदिवासियों के लिए काफी काम किया है. एक बार माओवादियों ने उनका अपहरण कर लिया था. लेकिन सोशल मीडिया की ‘राष्ट्रवादी ‘टीम ने उन्हें राष्ट्रद्रोही कहने में देर नहीं लगायी. यही हाल शुक्ला और वरुण का हो रहा है, जबकि होमगार्ड के डीजी ‘हीरो' हैं.