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अनजान देश से शिक्षा का सबक

दक्षिण अफ्रीका के बीचोबीच, एक देश है लेसोथो. हम में से कई लोगों ने शायद इसका नाम भी न सुना हो. लगभग 30 हजार वर्ग किमी में फैले इस देश की जनसंख्या बमुश्किल 25 लाख है. लेकिन आज इस देश की यहां चर्चा इसलिए हो रही है कि इसने बच्चों की शिक्षा के लिए एक अनूठा तरीका अपनाया है. इस देश में मोबाइल फोन पर बच्चों का होमवर्क कराया जा रहा है. खास बात यह है कि यह काम स्मार्ट नहीं, बल्कि साधारण फोन के जरिये हो रहा है.

अफ्रीकी देश लेसोथो की 86 प्रतिशत आबादी की पहुंच साधारण मोबाइल फोन तक है. ‘स्टीरियो डॉट मी' नामक चिली की एक आरंभिक कंपनी, फोन पर पाठ्य सामग्री और प्रश्नावलियां बतौर होमवर्क भेजती है. मोबाइल सर्विस प्रदाता कंपनी वोडाकॉम, शिक्षा मंत्रालय और टीचर्स यूनियन के सहयोग से स्थानीय स्कूलों में प्रायोगिक तौर पर इस खास कार्यक्रम को आजमाया जा रहा है, जिसे बाद में पूरे लेसोथो के स्कूलों में लागू कराया जाना है. स्टीरियो डॉट मी के सीइओ क्रिस्टोफर प्रिजसन इस बारे में बताते हैं, आज मोबाइल फोन घर-घर में अपनी जगह बना चुका है और शुरू से ही हमारी यह इच्छा थी कि हम इसके जरिये कुछ ऐसा करें कि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक ज्ञान का प्रसार हो.

बच्चों के होमवर्क को हम इतना आसान बना देना चाहते थे कि उसे बच्चों को देने, समझाने और जांचने में शिक्षकों का समय बरबाद न हो.

स्टीरियो डॉट मी की टीम बच्चों के चालू पाठय़क्रम के आधार पर अगले सत्र के लिए होमवर्क के तौर पर पाठय़ सामग्री और प्रश्नावलियां तैयार कर उनके शिक्षकों को भेजती है. देशभर के शिक्षक उस पर अपनी सहमति जताते हैं और फिर उसे आनेवाले सत्र के लिए लागू कर दिया जाता है. प्रिजसन आगे बताते हैं, माध्यमिक पाठय़क्रम के नये शुरू हो रहे सत्र के लिए हमारे पास एक हजार सवालों के सेट तैयार हैं, जिन्हें स्थानीय शिक्षकों की सहमति मिल चुकी है. फिलहाल इस पाठय़क्रम में गणित, भूगोल, अंगरेजी और कृषि जैसे विषय शामिल हैं.

यह एक टेक्स्ट-टू-स्पीच प्रोग्राम है, जिसमें स्कूल समाप्त होने के बाद जब होमवर्क की बारी आती है तो हर बच्चे के फोन पर एक कॉल जाती है. कॉल रिसीव करने पर वैकल्पिक उत्तरों वाले कई प्रश्न पूछे जाते हैं, जिनका जवाब छात्र को अपने फोन का बटन दबा कर देना होता है.

वोडाकॉम फाउंडेशन इन कॉल्स के लिए जरूरी एयरटाइम मुफ्त मुहैया कराता है. छात्र ने कक्षा में जो सीखा-समझा है, उसके जवाबों के आधार पर एक डेटा तैयार होता है, जिसे उसके शिक्षक रियल टाइम में देख पाते हैं. इसके आधार पर उन्हें पता चल पाता है कि कौन-सा छात्र कक्षा में कितना ध्यान दे रहा है और पढ़ाई में कैसा प्रदर्शन कर रहा है. इसके साथ ही शिक्षक यह भी जान पाते हैं कि पढ़ाने के तरीके में उन्हें कितने सुधार की जरूरत है. इस डेटा को सरकारी समितियों तक भी भेजा जाता है, ताकि देश की शिक्षा नीतियां तय करने में उन्हें सहूलियत हो.

आप सोच रहे होंगे कि जहां हर छात्र को एक ही तरह के सवाल के एक ही तरह के जवाब देने होते हैं तो इस तरीके से छात्रों के बीच ‘चीटिंग' भी बढ़ेगी. लेकिन स्टीरियो डॉट मी के पास इसका भी उपाय है. इस बारे में प्रिजसन बताते हैं, कौन सा बच्च मोबाइल फोन के वॉइस कॉल और एसएमएस पर कितना समय बिताता है और क्या-क्या करता है, हमारा सिस्टम इसका भी डेटा इकट्ठा करता है.

हम इस डेटा की मदद चीटिंग के मामलों को पता लगाने और उन्हें रोकने के लिए करते हैं. उदाहरण के तौर पर जो छात्र जवाब देने में थोड़ा समय लगाता है, वह फोन पर अपना जवाब फीड करने में अगर एक सेकेंड से भी कम समय लगाता है, तो सिस्टम यह समझ जाता है कि वह चीटिंग कर रहा है. इसके साथ ही, हम सवालों के वैकल्पिक जवाब के क्रम बदलते हैं. जैसे अगर पूछे गये सवाल के जवाब के लिए एक छात्र को फोन पर ‘1' बटन दबाना होता है तो दूसरे छात्र को उसी सवाल के सही जवाब के लिए ‘3' बटन दबाना होगा.

प्रिजसन कहते हैं, इस प्रोजेक्ट का बच्चों पर अच्छा असर पड़ा है. होमवर्क का यह मजेदार ढंग वे पूरे जोश और मजे के साथ अपना रहे हैं. उनसे हमें सकारात्मक फीडबैक मिले हैं और वे यह भी समझते हैं कि शिक्षा उनके लिए कितनी जरूरी और फायदेमंद है. इस प्रोजेक्ट की सफलता से उत्साहित प्रिजसन की योजना एशिया और लातिन अमेरिकी देशों में भी इसे उतारने की है.