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Resource centre on India's rural distress
 
 

अनपढ़ आरटीआइ कार्यकर्ता

सहारिया जनजाति मुख्य रूप से मध्य प्रदेश में पायी जाती है. मध्य प्रदेश से सटे राजस्थान के बारां जिले के शाहबाद और किशनगढ़ प्रखंड में भी इनकी ठीकठाक संख्या है. यहां सहारिया लोगों के पास किसी जमाने में काफ़ी जमीन हुआ करती थी. लेकिन कोई दस्तावेज नहीं होने के कारण धीरे- धीरे इनकी जमीनों पर गैर ओदवासियों और दबंगों ने कब्जा कर लिया. सरकार ने सहारिया को आदिम जनजाति का दरजा दिया है और उनके लिए कई योजनाएं भी चला रही है.

लेकिन हाशिये पर जिंदगी बसर कर रहे सहारिया लोगों को इसका कुछ खास फ़ायदा नहीं मिल रहा है. इन्हीं हालात के बीच अपने समुदाय के हक के लिए खड़ी हुईं गयारसी बाई. जन्म और उम्र के बारे में ठीक से नहीं बता पानेवाली गयारसी बाई के पिता के पास भी जमीन का एक छोटा टुकड़ा था. बचपन में ही उनकी शादी हो गयी. सास की मृत्यु के बाद छोटी उम्र में ही उन पर परिवार की जिम्मेदारी आ पड़ी. परिवार की स्थिति इतनी खराब थी कि वे रोज के गुजारे के लिए भी कर्ज पर निर्भर थे. गयारसी बाई भी मेहनत-मजदूरी कर परिवार की आमदनी में सहयोग करने लगीं. इसी दौरान उनकी मुलाकात सामाजिक कार्यकर्ताओं चारुमित्रा मेहरू और मोती लाल से हुई. दोनों संकल्प नाम की स्वयंसेवी संस्था से जुड़े हुए थे. यह संस्था हाशिये पर जिंदगी बसर कर रहे समुदायों के हक के लिए संघर्षरत है. उस मुलाकात को याद करते हुए गयारसी बाई कहती हैं कि वह पहला क्षण था जब हम अपने लिए एक बेहतर जिंदगी का स्वप्न देख रहे थे.

चारुमित्रा से लंबी बातचीत के बाद गयारसी बाई को अपने आसपास चल रहे संघर्षो के बारे में बता चला. संकल्प जो उस क्षेत्र में भूमि और वन अधिकारों के लिए संघर्ष करने वली संस्था थी, को गयारसी बाई के रूप में एक स्थानीय नेता दिखी, जो और ज्यादा लोगों को इस संघर्ष से जोड़ सकती थी. 2002 में संकल्प ने महिला जागृति संगठन की स्थापना. गयारसी बाई इसकी कोषाध्यक्ष चुनी गयीं. मोती लाल बताते हैं कि गयारसी बाई के आने के बाद हमारी लड़ाई और मजबूत हुई.कुछ ही दिनों में गयारसी बाई एक तेजतर्रार आरटीआइ कार्यकर्ता के रूप में जानी जाने लगीं. न्याय के लिए आंदोलन ही उनका एक मात्र मकसद हो गया.

वह अपने समुदाय के लोगों के बीच आरटीआइ से प्राप्त जानकारियों को बांटतीं और उन्हें अधिकारों के प्रति जागरूक बनातीं. वह समझ चुकी थीं कि सूचना ही एक मात्र हथियार है, जिससे वह और उनका समाज अपने अधिकारों को पा सकता है. 2002 के अकाल के दौरान गयारसी बाई ने जी जान लगा कर काम किया और सरकार का ध्यान भूखे लोगों की तरफ़ दिलाया. तब सरकार ने यह व्यवस्था दी कि ओदम जनजातियों की Þोणी में शामिल समुदायों को मुफ्त में अनाज दिया जायेगा. नरेगा की अनियमितताओं को दूर कर उसे ठीक तरह से लागू करने में भी गयारसी बाई और उनके संगठन की महत्वपूर्ण भूमिका रही. मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी दिलवाने में भी उन्होंने भूमिका निभायी. अपने आंदोलन के दौरान उन्होंने कई बंधुआ मजदूरों को भी आजादी दिलायी.