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अनलॉक 1: काम पर लौटने को लेकर हम इतने डरे हुए क्यों हैं?

-बीबीसी,

घर पर रहने के आदेश वापस लिए जाने लगे हैं और हममें से कई लोग काम पर लौटने लगे हैं.

भारत में भी सोमवार से कई आर्थिक गतिविधियां फिर से शुरू हो रही हैं. लेकिन सामान्य दिनचर्या को फिर से शुरू करने में आपको घबराहट क्यों है?

जब हमें पहली बार अपने घरों तक सीमित किया गया तब हम रोज़मर्रा की ज़िंदगी में लौटने के ख़्वाब देखते थे.

हम अपने पसंदीदा पब, थिएटर और दुकानों में जाना चाहते थे. हमें ट्रेन में सफ़र की याद सताती थी. हम नये कपड़े खरीदना और हैंडशेक के बारे में भी सोचते थे.

लेकिन जैसे-जैसे दुनिया भर में लॉकडाउन उठाया जा रहा है और कारोबार धीरे-धीरे खुल रहे हैं, हममें से कई लोग जो स्वास्थ्य सेवा में नहीं हैं या ज़रूरी सेवाओं में काम नहीं करते, उनके सामने एक दुविधा खड़ी हो गई है.

हम आम दिनचर्या शुरू करने को लेकर चिंतित हो रहे हैं, भले ही घर में बंद रहते हुए हम इसी के बारे में सोचते रहते थे.

कोरोना वायरस के ख़तरे
हम ठीक-ठीक अनुमान नहीं लगा सकते कि हमारे ऑफिस और परिवहन के साधन कोरोना वायरस के ख़तरे से निपटने के लिए कितने तैयार होंगे.

फिर भी, जब हम घर से बाहर निकलकर सामान्य ज़िंदगी की तैयारी कर रहे हैं तब हमारी आशंकाओं के पीछे की वजह को समझना ज़रूरी है.

वह क्या चीज़ है जो काम पर लौटने को लेकर हमें असहज करती है?

बीबीसी वर्कलाइफ़ ने इस बारे में ग्रेटर शिकागो की मनोवैज्ञानिक डॉक्टर करेन कैसिडे और न्यूयॉर्क के मनोचिकित्सक डॉ. डेविड रोसमरीन से बात की.

डॉक्टर करेन कैसिडे शिकागो के सेंटर फ़ॉर एंक्जाइटी की मैनेजिंग डायरेक्टर हैं और डॉक्टर डेविड रोसमरीन न्यूयॉर्क के एंक्जाइटी ट्रीटमेंट सेंटर के संस्थापक और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के मनोचिकित्सा विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं.

लॉकडाउन खुल रहा है लेकिन मैं ख़ुश क्यों नहीं हूं?
डॉक्टर कैसिडे का कहना है कि महीनों तक अपने अस्तित्व को लेकर हम अनिश्चितता की स्थिति में रहे हैं, जिसकी वजह से हमने बहुत तनाव झेला है.

जब संक्रमण की दर घटती-बढ़ती है तो हमारे स्थानीय और राष्ट्रीय नेताओं के आदेश बदल जाते हैं.

ऐसे में हमें अपने प्रियजनों की सुरक्षा की चिंता सताती है. हम एक भ्रम की स्थिति में जीते हैं और यह चिंता स्थायी हो जाती है.

डॉक्टर कैसिडे कहती हैं, "हमारे शरीर तनाव प्रतिक्रिया की निष्क्रिय अवस्था में फंस गए हैं जिसका नतीजा थकान, उदासी और चिड़चिड़ाहट के रूप में दिखता है."

ये जज़्बात लॉकडाउन हटने से जादुई रूप से गायब नहीं हो जाते. निकट भविष्य में "हम इन्हीं चीज़ों से गुजरते रहेंगे जिसे हम आज महसूस कर रहे हैं."

यही वजह है कि सामान्य दिनचर्या शुरू करने को लेकर हममें से कई लोग कोई सकारात्मक उत्साह नहीं दिखा पा रहे.

किसी समस्या से निपटने में एक निश्चित भूमिका होने पर हमें ऐसा महसूस हो सकता है कि हम हालात को नियंत्रित करने की स्थिति में हैं. लेकिन महामारी की प्रकृति ऐसी है कि हम असहाय अवस्था में धकेल दिए गए हैं.

महामारी में असहाय होने की भावना
डॉक्टर कैसिडे कहती हैं, "घर पर रहते हुए हमें कुछ भी नहीं करने को कहा गया."

"अगर हमारे पास कोई काम हो जिससे लगे कि हम हालात को बेहतर करने और समस्या हल करने के लिए कुछ कर रहे हैं तो हम अनिश्चितता से बेहतर तरीके से निपट सकते हैं."

काम पर लौटने से हमारी दिनचर्या वापस आ सकती है, लेकिन महामारी में असहाय होने की भावना दूर नहीं होगी.

डॉक्टर रोसमरीन का कहना है कि क्वारंटीन में रहने के कुछ फायदे छिन जाने पर काम पर लौटना और तनावपूर्ण हो जाएगा.

"कम आना-जाना और कम काम की वजह से हमें ज़्यादा नींद मिली, परिवार के साथ ज़्यादा वक़्त बीता और सामाजिक दबाव कम रहा. लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद हममें से कई लोग इसके लिए तरसेंगे."

रोसमरीन कहते हैं, "सामान्य ज़िंदगी में लौटने को लेकर यदि लोगों में मिली-जुली भावनाएं हैं तो यह अपेक्षित है."

भावनात्मक रूप में थका हुआ महसूस करना ठीक है?
इस सवाल के जवाब में डॉक्टर रोसमरीन का कहना है - यकीनन. लॉकडाउन उठाने के कई महीनों बाद तक अवसाद, चिंता, चिड़चिड़ाहट और गुस्सा हावी रह सकता है.

कई मामलों में यह रिश्तों की परेशानियों से भी पैदा होता है जो लंबे समय तक बंद दायरे में साथ रहने से पनपती हैं.

"वैवाहिक झगड़े और घरेलू बदसलूकियां बढ़ने के स्पष्ट संकेत हैं, ख़ासकर उन परिवारों में जो महामारी से पहले संघर्ष कर रहे थे."

लाखों लोगों की नौकरी चली गई या तनख्वाह नहीं मिली, उनकी वित्तीय असुरक्षा ने भावनात्मक थकान को और बढ़ा दिया है.

माता-पिता को तय करना है कि अगर स्कूल खुल रहे हैं तो उन्हें बच्चों को कब स्कूल भेजना चाहिए. वे यह भी देख रहे हैं कि आपके लिए और आपके प्रिय लोगों के क्या ठीक रहेगा.

इस बीच काम के दबाव कम नहीं होने वाले. जो लोग ज़ूम ऐप पर अंतहीन मीटिंगों में फंसे रहे हैं वे भी मानसिक थकान से अछूते नहीं हैं.

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