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अनाज भंडारण की गहराती समस्या

भारतीय खाद्य निगम अब अनाज को सड़ने से बचाने के लिए विदेशी कम्पनी मोर्गन स्टेनली की मदद लेने जा रहा है। मोटे तौर पर यह कम्पनी भारतीय खाद्य निगम को यह सिखाएगी कि अनाजों की खरीद, ढ़ुलाई और बफर स्टॉक की मात्रा तय करने से लेकर उसके रख-रखाव और वितरण की व्यवस्था को कैसे चुस्त-दुरुस्त रखा जा सकता है। पिछले कुछ सालों से अनाज के उचित भंडारण के अभाव में खुले आसमान के नीचे अनाज रखने और फिर उसके सड़ जाने के कारण भारतीय खाद्य निगम और सरकार की काफी फजीहत हो रही है। कुप्रबंधन के कारण सरकार की कार्यप्रणाली पर लोगों द्वारा असंतोष तो जताया ही जा रहा है, साथ ही उसे न्यायालय का भी कोपभाजन बनना पड़ा रहा है।

अभी पिछले ही दिनों उच्चतम न्यायालय द्वारा सड़ रहे अनाजों को गरीबों में बांटने के सुझाव के साथ सरकार से यह भी पूछा गया की आखिर गोदामों में रखा गया अनाज क्यों सड़ रहा है? और इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जा रही है? नि:संदेह रूप से न्यायालय का यह सवाल सरकार के माथे पर बल डालने वाला है। बचाव में न्यायालय के सवाल का जवाब देते हुए सरकार द्वारा कहा गया कि सिर्फ 7,000 टन अनाज ही भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में सड़ा है जबकि 67,539 टन अनाज हरियाणा और पंजाब के गोदामों में बर्बाद हुआ है। सरकार की निगाह में अनाज सड़कर बर्बाद होने का यह आंकड़ा भले ही कम लग रहा हो लेकिन अनाज की कीमत क्या होती है, इसका अहसास उन भूखे लोगों की पीड़ा से समझा जा सकता है जो सरकार की नाकामी और भ्रष्ट वितरण व्यवस्था के कारण दम तोड़ रहे हैं।


सचाई यह है कि अनाज सड़ने का यह आंकड़ा जो सरकार द्वारा दिखाया जा रहा है, उससे कहीं कई गुना ज्यादा अनाज सड़कर बर्बाद हुआ है। अगर भारतीय खाद्य निगम के आंकड़ों पर ही विश्वास किया जाय तो एक जुलाई की स्थिति के अनुसार निगम के गोदामों में गेहूं, चावल और धान सहित 11,708 टन खाद्यान्न या तो खराब है या फिर जारी करने लायक ही नहीं रह गया है। पंजाब और हरियाणा जैसी राज्य एजेंसियों के पास 54,260 टन और 1,574 टन गेहूं जारी करने योग्य नहीं है। जाहिर तौर पर सवाल खड़ा होता है कि अनाज सड़ने से पहले सरकार द्वारा जरूरतमंदों में वितरित क्यों नहीं किया गया। अगर समय रहते यह अनाज गरीबों के पेट तक पहुंचा दिया गया होता तो अनाज की सार्थकता और सरकार की सहृदयता समझ में आती। देश के लगभग सभी राज्यों में अनाज सड़ने और बर्बाद होने की खबरें सुर्खियां बनती रही हैं।


देश में खाद्य कुप्रबंधन की यह भयानक तस्वीर बेहद चिंता पैदा करने वाली है। अगर समय रहते गोदामों में अनाज के रखरखाव का उचित प्रबंध कर लिया जाय तो उसे सड़ने से बचाया जा सकता है। लेकिन सत्यता यह है कि आज की तारीख में भारतीय खाद्य निगम से लेकर राज्य एजेंसियों के पास गोदामों की भारी कमी है। मजबूरन उन्हें खुले आसमान के नीचे अनाज को रखना पड़ रहा है। एक अनुमान के मुताबिक 2009-10 में 10,420 टन क्षमता वाले एफसीआई गोदामों के निर्माण का लक्ष्य रखा गया था लेकिन निश्चित अवधि तक सिर्फ 9,170 टन की क्षमता युक्त गोदामों का निर्माण किया जा सका है। लक्ष्य के प्रति सरकार की आश्चर्यजनक उदासीनता और गैर जिम्मेदार लोगों के प्रति लचर रवैया का ही नतीजा है कि आज न तो गोदामों की संख्या बढ़ती दिख रही है और न ही अनाज के रख रखाव का बेहतर तरीका ही ढूंढा जा रहा है। अनाजों का सड़ना और भुखमरी के कारण हजारों लोगों का मरना विकास के पथ पर दौड़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। एक आंकड़े के अनुसार सिर्फ भुखमरी की वजह से ही देश में रोजाना पांच हजार से अधिक बच्चे दम तोड़ रहे हैं। अन्य आंकड़ों को भी जोड़ दिया जाय तो स्थिति और विकट दिखेगी।


क्या यह अपने आप में विरोधाभास नहीं है कि एक ओर सरकार की घोर लापरवाही की वजह से गोदामों में रखा करोड़ों टन अनाज सड़ रहा है और दूसरी ओर समुचित वितरण के अभाव में देश की आधी से अधिक आबादी भूखे पेट जीवन गुजारने को मजबूर है? यह देश के लिए लज्जाजनक स्थिति है। सार्वजनिक वितरण व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार का ही नतीजा है कि आज देश के 50 फीसद बच्चे कुपोषण के शिकार हैं और विश्व की कुल 93 करोड़ भूखी आबादी में से 46 करोड़ लोग केवल भारत में ही मौजूद हैं। अब संतोष वाली बात यह है कि केंद्र की संप्रग सरकार खाद्य सुरक्षा नीति बनाकर देश की 72 फीसद आबादी यानी 80 करोड़ जनता को सस्ता अनाज उपलब्ध कराने का क्रांतिकारी पहल करती देखी जा रही है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस योजना के साकार होने से समाज में आर्थिक बदलाव की एक सुखदायी तस्वीर देखने को मिल सकती है।


सरकार की इस मंशा से उन करोड़ों भूखे परिवारों को राहत मिलेगी जो गरीबी का दंश भोग रहे हैं। साथ ही कृषि उत्पादन में जुटे उन किसानों को भी उनकी फसल का वाजिब मूल्य मिल सकेगा, जो विचौलियों की मदद से फसल को अब तक बाजार के हवाले करते रहे हैं। चूकि सरकार देश के तकरीबन दो तिहाई लोगों के पेट भरने के इंतजाम में जुटी है, सो स्वाभाविक है कि उसे हजारों करोड़ टन अनाज के खरीद की दरकार पडे़गी ही। ऐसे में किसानों के उत्पादन की सरकारी खरीद की गारंटी की संभावना बढ़ जाएगी। लेकिन सरकार की इस कांतिकारी सोच को पंख तभी लगेगा जब वह जरुरत भर अनाज की व्यवस्था करने के साथ उसके उचित भण्डारण की व्यवस्था भी कर ले जाएगी।