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अनाथ स्कूल को दी शिक्षा की छांव

बरेली [राजीव शर्मा]। न कोई टीचर और न ही शिक्षा मित्र। फिर ंभी सीबीगंज इलाके का एक पूर्व माध्यमिक विद्यालय गुलजार है। रोजना ही स्कूल खुलता है। बच्चे पढ़ते हैं और खुशी-खुशी घर लौट जाते हैं। इस काम को कोई सामाजिक संगठन या सरकार अतिरिक्त टीचर लगाकर नहीं करा रही।

जब कि गांव की ही एक पढ़ी-लिखी लड़की ने इस 'अनाथ' स्कूल को अपनी 'शिक्षा' की छांव दी है। वो भी बिल्कुल निस्वार्थ। अब तो स्कूल बच्चे उसे 'मदर टेरेसा' कहकर बुलाने लगे हैं।

यह स्कूल है शहर से करीब 12 किलोमीटर दूर सीबीगंज के रोठा गांव में। एक ओर सरकार 'सर्व शिक्षा' और 'स्कूल चलो' जैसे अभियानों पर करोड़ों फूंक रही है। दूसरी तरफ रोठा के स्कूल में बरसों से कोई टीचर नहीं है। दो साल पहले लोगों के हंगामा करने पर स्कूल में पड़ोसी गांव सरनिया में तैनात साबिर हुसैन नाम के टीचर को खाली पड़े स्कूल से अटैच कर दिया। इसके बावजूद हालात नहीं बदले। मास्साब एक दिन भी पढ़ाने नहीं पहुंचे। जबकि बच्चे रोजाना ही अपने बस्ते बांधकर स्कूल पहुंचते लेकिन ताला लटका देख बैरंग लौट आते।

असल में रोठा तक पहुंचने के लिए छह-सात किलोमीटर का फेर लगाना पड़ता है, जो मास्साब को खासा खलता था। अर्से तक यह सिलसिला चलता रहा।

गांव वालों के सामने बड़ा सवाल था-आखिर वह अपने बच्चों को कहां और कैसे पढ़ाएं? ऐसे में गांव की ही 'बेटी' नीरज ने यह बीड़ा उठाया। उसने न सिर्फ अपनी शिक्षा का सदुपयोग किया बल्कि अनपढ़ रह जा रही नई पीढ़ी को भी दिशा दी। गांव के बुजुर्गो की सहमति पर नीरज ने इस साल जुलाई से खुद जाकर स्कूल के ताले खोल दिए। वहां साफ-सफाई कराई और बच्चों को बुलाकर पढ़ाना शुरू कर दिया। अब तो यह काम उसकी जिंदगी का हिस्सा बन चुका है।

नीरज बताती है कि वह रोजाना ही उन बच्चों को देखती थी। इसलिए उसने खुद स्कूल चलाने की ठानी। उसने स्कूल के अटैच टीचर साबिर हुसैन को अपनी मंशा बताई तो उन्होंने भी उसे पढ़ाने की मंजूरी दे दी। इसके बाद ही उसने स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया। अब तो स्कूल खोलना, बंद करना उसकी दिनचर्या में शामिल हो गया है। बच्चे भी काफी खुश हैं।

नीरज ने बताया कि मुझसे पहले गांव की जीनत बच्चों को पढ़ाती थी, लेकिन अब उसकी शादी हो चुकी है।

नगर शिक्षा अधिकारी नगर शिक्षा अधिकारी ने इस बारे में कहा कि मुझे इस बारे में जानकारी नहीं है। यह युवती किसकी परमीशन से पढ़ा रही। यह भी नहीं पता। विभाग ने तो एक टीचर संबद्ध करा है। उसे ही बच्चों को पढ़ाने का अधिकार है।