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अनाथों की जिंदगी में उजियारा लाता एक शख्स

घाटशिला [पूर्वी सिंहभूम] नक्सली हिंसा से सर्वाधिक प्रभावित घाटशिला में चारों तरफ दहशत है। यहा चप्पे -चप्पे पर अ‌र्द्वसैनिक बल के जवानों की आहट सुनने को मिल रही है, लेकिन इसी दहशतजदा माहौल के बीच एक शख्स ऐसा भी है जो दर-दर की खाक छानते हुए मानवता की अलख जगा रहा है।

पिता से महज तीन रुपये नहीं मिल पाने के कारण स्कूल की पढ़ाई छोड़ देने वाले 46 वर्षीय काठा सिंह, घाटशिला से 20 किमी दूर डाइनडुमरी के लेदा गाव में दामपाड़ा विकास समिति के बैनर तले एक अनाथालय चला रहे हैं।

खुद स्कूली शिक्षा से वंचित रहे कांठा सिंह के इस अनाथालय में अभी 46 बच्चे हैं, जिसमें 24 लड़कियां और 22 लड़के हैं। अपने जन्मदिन 22 दिसंबर 2006 के दिन 15 बच्चों को लेकर शुरू किए गए इस अनाथालय में बच्चों की संख्या लगातार बढ़ती गई। इसमें अधिकांश बच्चे पूर्वी सिंहभूम के ही हैं। सिर्फ तीन बच्चे पश्चिम बंगाल के हैं, जिनके मां-बाप नहीं रहने के कारण उनके परिजनों ने यहा लाकर उन्हें छोड़ दिया।

बुरूहीह डैम के करीब दुर्गम इलाके में चल रहे इस अनाथालय से महज पांच सौ मीटर की दूरी पर ही एक पुलिस आउटपोस्ट है, लेकिन न तो पुलिस वालों को चिंता है कि यहा बच्चे कैसे कठिन परिस्थितियों में जीवन जी रहे हैं और न ही बच्चों को इनसे कोई लेना देना। दूर-दूर तक जंगल और पहाड़ों से घिरे अनाथालय में किसी आगंतुक के पहुंचने पर बच्चे अपने दरबेनुमा आशियाना से भरभरा कर बाहर निकल आते हैं। फिर किसी को कहने की जरूरत नहीं पड़ती। कुछ लड़के अतिथियों के लिए कुर्सिया लेने दौड़ पड़ते हैं तो लड़कियां गिलास लेकर बाहर लगे चापाकल से पानी लाने। दो शेडनुमा बड़े कमरों में ये 46 बच्चे अंधेरे की जिंदगी से उजाले की उम्मीद में जीवन बसर कर रहे हैं। कांठा सिंह उनके जीवन में फरिश्ता बन कर आए हैं।

इन बच्चों की देखरेख व भोजन-पानी के इंतजाम से लेकर पठन-पाठन के लिए 14 श्रमदानी हैं जो उनके साथ वहीं रहते भी हैं। सुबह छह बजे प्रार्थना से इन बच्चों की दिनचर्या शुरू होती है। प्रार्थना किसी और की नहीं बल्कि कांठा सिंह की होती है जो यहा के बच्चों ने ही तैयार की है, क्योंकि इनके लिए इस दुनियां में काठा सिंह ही सबकुछ है। काठा सिंह भिक्षाटन करके किसी तरह यह अनाथालय चला रहे हैं। रोजाना करीब 25 किलो चावल व दाल-मसाला और अन्य जरूरी सामान का जुगाड़ कर पाना इस पिछड़े इलाके के लिए आसान काम नहीं है। इसके लिए काठा सिंह और उनके श्रमदानी सहयोगियों को सुबह से आस-पास के इलाकों में भिक्षाटन के लिए निकल जाना पड़ता है। जो कुछ सहयोग में मिलता है, उससे यह अनाथालय चल रहा है।

अब तक झारखंड सरकार की इस पर नजरें इनायत नहीं हो सकी हैं। यही कारण है कि अब तक उसे कोई सरकारी सहयोग भी नहीं मिला है। हां, राष्ट्रपति प्रतिभा सिंह पाटिल की नजर इस अनाथालय पर अवश्य पड़ी है। 27 नवंबर 2009 को काठा सिंह और अनाथालय के बच्चों को राष्ट्रपति भवन बुलाकर उन्होंने सम्मानित किया। मुंबई में गत 10 मार्च को रिलायंस इंडस्ट्रीज ने रियल हीरो आफ इंडिया कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें फिल्म अभिनेता आमिर खान ने काठा सिंह को उनके सराहनीय कार्यो के लिए सम्मानित किया।

सचिन तेंदुलकर भी इस कार्यक्रम में मौजूद थे। रिलायंस इंडस्ट्रीज के मुकेश अंबानी और उनकी पत्नी नीता अंबानी ने काठा सिंह के अनाथालय को साढ़े तीन लाख का चेक भी दिया। मुंबई की कुछ और संस्थाएं भी अब मदद देने को तैयार हुई हैं। शायद इससे यहा कठिन जिंदगी जी रहे बच्चों की जिंदगी की राह कुछ आसान हो सके। माओवादी हिंसा का गढ़ बन चुके इस बीहड़ इलाके में अनाथालय चलाने में किसी तरह की दिक्कत के बारे में पूछे जाने पर काठा सिंह मुस्कुरा कर कहते हैं, अब तक तो कोई परेशानी नहीं हुई।