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अन्नदाता क्यों गोली खाये?-- राकेश पाठक

ध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद को किसान का बेटा, धरतीपुत्र आदि बताते नहीं थकते, लेकिन उनके राज में अन्नदाता किसान किस कदर जुल्म का शिकार है, इसकी कथा मंदसौर में लिख दी गयी. बीते मंगलवार को मालवा की धरती किसानों के खून से सींची गयी. पुलिस की बर्बरता ने छह किसानों के सीने गोलियों से छलनी कर दिये. अब भी किसानों के सीने में आग धधक रही है.


दरअसल, मंदसौर गोली कांड शिवराज सिंह सरकार, प्रशासन और पुलिस की नाकामी का नमूना है. घटना के पहले और बाद में जिस तरह सरकार और पूरे प्रशासन तंत्र ने रवैया दिखाया, वह बताता है कि ऊपर से नीचे तक किसी को किसानों के दुख-दर्द की कोई फिक्र नहीं है. कर्ज माफी और उपज की वाजिब कीमत जैसी मांगों को लेकर मालवा अंचल के कुछ जिलों में किसान लंबे समय से लामबंद हो रहे थे. इंदौर, मंदसौर, नीमच, रतलाम, धार, उज्जैन आदि जिलों में आंदोलन पैर पसारता रहा. कई किसान संगठनों ने इस बार एकजुट होकर आंदोलन का शंखनाद किया है. इस महीने की पहली तारीख को किसानों ने सड़कों पर हजारों लीटर दूध बहा दिया और कई क्विंटल आलू-प्याज फेंक दिये.धरना, प्रदर्शन, रैली, चक्काजाम, सभाएं सब धीरे-धीरे उग्र होते रहे, लेकिन समूची सरकार और उसका तंत्र अपने कानों में रूई जमाये बैठे रहे.


मुख्यमंत्री ने किसान आंदोलन में फूट डालने की भरपूर कोशिश की. एक समझौता वार्ता के बाद सरकारी तंत्र ने खबर फैला दी कि आंदोलन खत्म हो गया. कुछ ही देर में किसान नेताओं ने साफ कर दिया कि सरकार झूठ बोल रही है, आंदोलन जारी रहेगा. इसके बाद आंदोलन और तेज हो गया, लेकिन किसी ने इसकी सुध नहीं ली. सरकार का कोई प्रतिनिधि, मंत्री, विधायक, सांसद किसानों से बात करने आगे नहीं आया. केंद्र सरकार से लगातार हर साल 'कृषि कर्मण पुरस्कार' जीतनेवाली मध्य प्रदेश सरकार ने किसानों को 'कृषि कर और मर' के हाल पर छोड़ दिया है.


मंदसौर में किसान बीते रविवार से ही रेल पटरियों पर डट गये थे. हाइवे जाम कर दिये थे, फिर भी प्रशासन नहीं चेता. खुद मुख्यमंत्री सोमवार को आंदोलन में असामाजिक तत्वों के शामिल होने, साजिश और षड्यंत्र का राग अलाप रहे थे, लेकिन किसी ने भी इसकी पड़ताल करने की कोशिश नहीं की कि वे असामाजिक तत्व कौन हैं? मंदसौर में हालात बिगड़ने पर पुलिस ने गोली चलायी और छह किसानों को मौत के घाट उतार दिया गया. विडंबना है कि इस पर पर्दा डालने के लिए प्रदेश के गृह मंत्री कहते रहे कि पुलिस ने गोली नहीं चलायी, खुद किसानों ने ही गोली चलायी होगी. लेकिन, देर रात गृह मंत्री ने माना कि पुलिस ने ही गोली चलायी थी.
सरकार और पूरे तंत्र का नाकारापन यहीं खत्म नहीं हुआ, बल्कि मृतकों को मुआवजे पर भी बेनकाब हुआ. पहले सरकार ने पांच लाख रुपये, फिर दस लाख और देर रात मुआवजा राशि एक करोड़ रुपये प्रति मृतक घोषित कर दी. मृतकों के आश्रितों को नौकरी की घोषणा भी की गयी.


किसानों के आंदोलन और फिर मंदसौर गोली कांड को कांग्रेस की साजिश बता कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अपनी नाकामी पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहे हैं. किसान संगठनों के आह्वान पर आज मध्य प्रदेश बंद को कांग्रेस ने समर्थन दिया है, इसलिए सरकार और सत्ताधारी दल साजिश का आरोप लगा रहे हैं. लेकिन, इस आरोप से सरकार और तंत्र की विफलता और असंवेदनशीलता को ढका नहीं जा सकता.
लगातार तेरह साल से सत्ता पर काबिज बीजेपी की सरकार में शिवराज सिंह को मुख्यमंत्री बने ग्यारह साल से ज्यादा हो गये हैं. अगले साल विधानसभा का चुनाव है. शिवराज सिंह व्यापम, तबादला उद्योग, अवैध उत्खनन, मंत्रियों के भ्रष्टाचार जैसे आरोपों में पहले ही घिरे हुए हैं. अब किसानों के आंदोलन में बेकसूरों की मौत की काली छाया भी उन पर गहरायेगी.


अब इस आंदोलन के मालवा निमाड़ से निकल कर समूचे मध्य प्रदेश में पसरने की संभावना है. प्रदेश में कमोबेश मरी पड़ी कांग्रेस को इस गोली कांड ने संजीवनी दे दी है. बुधवार बंद को समर्थन और फिर राहुल गांधी के मंदसौर आने से कांग्रेस में कुछ जान आ सकती है. लेकिन, राजनीति से इतर बड़ा सवाल मुंह बाये खड़ा है कि देश को अन्न देनेवाला किसान आज भी इतना बदहाल क्यों है? उसे उसकी उपज की वाजिब कीमत क्यों नहीं मिलती?


जो फसल वह उगाता है, उसकी कीमत कोई और क्यों तय करता है? देश का अन्नदाता अपनी बात कहते वक्त सीने पर गोली खाने के लिए अभिशप्त क्यों है? जिस धरती से सोना पैदा करने के लिए वह पसीना बहाता है, उस धरती पर उसका खून क्यों बहना चाहिए? गाय की मौत पर भावनाओं के आहत होने का हवाला देकर आसमान सिर पर उठा लेनेवाले आज छह बेकसूर इंसानों की मौत पर खामोश क्यों हैं?