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अब अस्पतालों में दवाओं की कमी, सिर्फ 15 दिनों की दवा

पटना: राज्य के सरकारी अस्पतालों में भरती या इलाज करानेवाले मरीजों को अगले 15 दिनों के बाद अपने पैसे से दवाएं खरीदने की नौबत आनेवाली है. सभी मेडिकल कॉलेज अस्पतालों से लेकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) तक में दवाओं का स्टॉक खत्म होने को है. अस्पतालों को दवा की आपूर्ति करनेवाली बिहार मेडिकल सर्विसेज एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन लिमिटेड

(बीएमएसआइसीएल) के गोदाम में भी दवाओं की कमी का असर दिखने लगा है. यह करीब 14.48 करोड़ रुपये के दवा घोटाले का साइड इफेक्ट है. दवा खरीद के जिम्मेवार अधिकारी कोई भी निर्णय लेने से कतरा रहे हैं.

बीएमएसआइसीएल अपने गोदामों में तीन माह के लिए दवाओं का स्टॉक रखता है. इसके बाद जरूरत पड़ने पर सूचीबद्ध कंपनियों को दवाओं की आपूर्ति का ऑर्डर दिया जाता है. पिछले दो माह से कॉरपोरेशन ने दवाओं का ऑर्डर नहीं दिया है.

अभी से शुरुआत, तो लगेंगे 15 दिन : अस्पतालों के ओपीडी व इमरजेंसी में दवा की किल्लत दिखने लगी है. कई दवाएं ओपीडी में मरीजों को नहीं मिल रही हैं. जिन अस्पतालों से दवा की मांग हो रही है, उसे थोड़ा-बहुत कर दवा भेजा गया है, जो मरीजों की संख्या के अनुपात में कम है. पीएमसीएच में दो दिन पहले ओपीडी में दवाएं खत्म हो गयी थीं, लेकिन उसके बाद निगम से दवाएं भेजी गयी हैं, लेकिन ये वे दवाएं हैं, जो पहले से स्टॉक में पड़ी हैं. यह स्टॉक एक माह से अधिक नहीं चलेगा. अफसरों का कहना है कि अगर दवा खरीद की प्रक्रिया अभी से भी शुरू की जाये, तो आपूर्ति में कम-से-कम 15 से 20 दिन लगेंगे. तब तक मरीजों को बाहर से दवाएं खरीदनी होंगी.

अस्पतालों को ऐसे मिलती हैं दवाएं

बीएमएसआइसीएल केंद्रीयकृत पद्धति से उन कंपनियों से दवाओं की खरीद करती है, जो उसके यहां सूचीबद्ध हैं. ये दवाएं कंपनियों की ओर से कॉरपोरेशन के तीन गोदामों - फतुहा (पटना), मुजफ्फरपुर व पूर्णिया में रखी जाती हैं. फिर औषधारा सप्लाइ चेन व्यवस्था के तहत जिलों व मेडिकल कॉलेजों को दवाएं भेजी जाती हैं. जिले या मेडिकल कॉलेज का बजट पहले से तय होता है. कॉरपोरेशन ने हाल ही में व्यवस्था की है कि गुणवत्ता जांच में सफल होने के बाद ही दवाओं को अस्पतालों में भेजा जाये.

स्वास्थ्य विभाग के उपसचिव अनिल कुमार ने कहा : अगर कॉरपोरेशन कहेगा कि दवा खरीद में कोई दिक्कत आ रही है, तो स्वास्थ्य विभाग अपने स्तर से खरीद की वैकल्पिक व्यवस्था करेगा.

भाजपा नेता सुशील कुमार ने कहा : राज्य स्वास्थ्य समिति ने दवा खरीद बंद कर दी है. बिहार में दवा का संकट है. स्वास्थ्य मंत्री ने 48 घंटे में दोषियों पर कार्रवाई की घोषणा की थी, लेकिन पांच दिन हो गये. अब तक किसी पर कार्रवाई नहीं हुई है.

घोटाले में नाम उछाले जाने पर नीतीश ने पहली बार रखी अपनी बात, मोदी को लिखा पत्र मांगे कई जवाब

पटना. दवा घोटाले को लेकर विपक्ष का प्रहार ङोल रहे पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी चुप्पी तोड़ी है. नीतीश कुमार ने भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी को गुरुवार को पत्र लिखा है. नीतीश कुमार ने कहा कि दवा व उपकरण खरीद को लेकर भाजपा नेता द्वारा भ्रामक बयान दिये जा रहे हैं. बयानों में मुख्य रूप से आरोप लगाया जा रहा है कि जिस दौरान स्वास्थ्य विभाग उनके (नीतीश कुमार) प्रभार में था, तब दवा खरीद में अनियमितता हुई. फिलहाल इस मामले से संबंधित कोई आधिकारिक सूचना नहीं है. सुशील मोदी द्वारा ही हर दिन दावे के साथ मामले को उठाया जा रहा है. नीतीश कुमार ने सुशील मोदी से जानना चाहा है कि बिहार स्वास्थ्य समिति और बिहार मेडिकल सर्विसेज इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीएमएसआइसीएल) में दवा खरीद की निविदा के मामले में कब-कब मंत्री का आदेश लिया गया? साथ ही यह भी बताएं कि दवा व उपकरण खरीद मामले में निविदा कब निकाली गयी और क्रय समिति या तकनीकी समिति का गठन कब हुआ और उनके कामों व निर्णयों में स्वास्थ्य मंत्री की क्या भूमिका थी? पत्र में नीतीश कुमार ने कहा कि इस पूरे प्रकरण में एक पदाधिकारी संजय कुमार का भी नाम लेकर मेरे साथ जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है. जहां तक मुङो याद है कि मेरे शुरुआती कार्यकाल में इस पदाधिकारी ने कुछ महीने के लिए मेरे आप्त सचिव के रूप में काम किया था और बाद में स्वास्थ्य कारणों से अपने पैतृक संवर्ग में लौट गये थे. पूर्व मुख्यमंत्री से सुशील मोदी से पूछा है कि आप हर दिन इस विषय पर बोल रहे हैं और उस समय आप भी सरकार के अंग थे. ऐसे में संजय कुमार किस प्रक्रिया के तहत फिर से बिहार में काम करने के लिए चयनित हुए और क्या ये केंद्रीय सेवाओं के अकेले पदाधिकारी हैं, जो बिहार में काम करने के लिए आये? नीतीश कुमार ने कहा कि यहां पर यह भी जानना आवश्यक है कि जब वे स्वास्थ्य विभाग में संयुक्त सचिव के रूप में पदस्थापित हुए, तो इन्हें क्या-क्या काम दिये गये और किस स्तर पर काम का आवंटन हुआ. साथ ही संजय कुमार का स्वास्थ्य विभाग में संयुक्त सचिव के रूप में किये गये कामों को इनके मुख्यमंत्री के आप्त सचिव के कार्यकाल से कैसे लिंक स्थापित किया जा रहा है? नीतीश कुमार ने सुशील मोदी को पत्र लिख कर इन सवालों को जवाब देने की मांग की है, ताकि पूरे प्रकरण को वह समझ कर अपनी बातें कह सकें.

 

इन बिंदुओं पर मांगा जवाब

बिहार स्वास्थ्य समिति और बीएमएसआइसीएल में दवा खरीद की निविदा के मामले में कब-कब मंत्री का आदेश लिया गया?

क्रय समिति के कार्य व निर्णयों में स्वास्थ्य मंत्री की क्या भूमिका थी?

संजय कुमार किस प्रक्रिया के तहत फिर से बिहार में काम करने के लिए चयनित हुए?

क्या ये केंद्रीय सेवाओं के अकेले पदाधिकारी हैं, जो बिहार में काम करने के लिए आये?

वे स्वास्थ्य विभाग में संयुक्त सचिव के रूप में पदस्थापित हुए, तो उन्हें क्या-क्या काम दिये गये?

संजय कुमार के संयुक्त सचिव के रूप में किये गये कामों को सीएम के आप्त सचिव के कार्यकाल से कैसे लिंक स्थापित किया जा रहा है?

 

स्टॉक कम, नहीं पहुंच रहीं दवाएं कन्नी काट रहे सदस्य

दवा खरीद के लिए 25 अगस्त को बैठक थी, लेकिन 10 सदस्यों में से तीन नहीं पहुंचे. दवा घोटाले के बाद कॉरपोरेशन का प्रबंधन कोई जोखिम मोल नहीं लेना चाहता है. प्रबंधन से जुड़े एक अफसर की मानें, तो किसी तरह के संभावित झंझट से बचने के लिए जरूरी है कि दवा खरीद पर सभी सदस्यों की सहमति बन जाये.

घोटाले में उठी है अंगुली
हाल ही में उजागर हुए कथित दवा घोटाले में कॉरपोरेशन पर आरोप लगा है कि उसने निर्धारित दर से ज्यादा पर दवाएं खरीदीं. साथ ही दूसरे राज्यों में ब्लैकलिस्टेड तीन कंपनियों में से दो से दवाएं खरीदी गयीं. पिछले साल करीब 150 करोड़ रुपये की दवाएं खरीदी गयी थीं.

अगर निगम की ओर से ऐसी लिखित जानकारी दी जायेगी कि परचेज कमेटी में पदाधिकारी नहीं पहुंच रहे हैं, तो इसको लेकर विभाग निर्णय लेगा. क्योंकि किसी दवा परचेज की प्रक्रिया में लगभग 15 से 20 दिन का समय लगता है. इसलिए भंडार में दवा खत्म होने के पहले दवा मंगवाने का ऑर्डर दे दिया जायेगा.

अनिल कुमार, स्वास्थ्य विभाग के उप सचिव

इधर मोदी के नये आरोप,घोटाले में नीतीश के करीबी भी

पटना: पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने कहा है कि नीतीश कुमार के स्वास्थ्य मंत्री के प्रभार में रहते बिहार में नर्स व मेडिकल ऑफिसर्स आवास, डीपीएम ऑफिस सह आवास और ड्रग वेयर हाउस के निर्माण में करोड़ों का घोटाला हुआ है. एजी की ऑडिट में इसका खुलासा हुआ है. उन्होंने कहा कि दवा, मेडिकल उपकरण और भवन निर्माण घोटाला की भी सीबीआइ जांच होनी चाहिए. वह पार्टी मुख्यालय में जानकारी दे रहे थे. दवा, मेडिकल उपकरण और भवन निर्माण घोटाले में नीतीश

कुमार के कई करीबी भी शामिल हैं. उनसे पूछताछ होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि भाजपा कई और घोटालों का परदाफाश करेगी.

भवन निर्माण में 8.62 करोड़ की अनियमितता : मोदी ने एजी ऑडिट रिपोर्ट की प्रतियां भी बांटीं. उन्होंने बताया कि भवन निर्माण में 8.62 करोड़ की अनियमितता हुई है. सिंगल टेंडर पर प्रतिबंध के बावजूद 23 जिलों में एकल निविदा के आधार पर डीएम ऑफिस और आवास का काम ठेकेदारों को दिया गया. ऑडिट रिपोर्ट में यह बात भी सामने आयी है कि मेडिकल ऑफिसर्स और नर्स क्वार्टरों के निर्माण में 4.97 करोड़ की अनियमितता हुई है. 49 भवनों के निर्माण में 21 का काम ठेकेदारों को एकल निविदा के आधार पर दिया गया. 12 ड्रग वेयर हाउसों में पांच का निर्माण एकल निविदा के आधार पर कराया गया. तीन से अधिक ठेकेदारों को, तो 15 प्रतिशत कम पर ठेका भी दिया गया. मोदी ने बताया कि एजी की ऑडिट रिपोर्ट में मेडिकल भवनों के निर्माण में अनियमितताएं मिलीं. रिपोर्ट में कहा गया है कि बिना तकनीकी स्वीकृति के ही भवन निर्माण कराया गया. तकनीकी अधिकारियों से नहीं, बल्कि प्राइवेट कंसल्टेंट की मापी के आधार पर ही ठेकेदारों को भुगतान कर दिया गया. कई टेंडर काफी कम दर पर स्वीकृत किये गये. रिपोर्ट में गैर तकनीकी पदाधिकारी द्वारा टेंडर फाइनल करने पर भी गंभीर आपत्ति की गयी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार की स्वीकृति लिये बिना एकल निविदा से काम कराना अनियमितता है.

सीबीआइ जांच की मांग : चारा घोटाला मामले की सीबीआइ जांच कराने से पूर्व की सरकार कतरा रही थी. वर्तमान सरकार भी दवा, उपकरण खरीद व बिल्डिंग घोटाले की सीबीआइ जांच कराने से कतरा रही है. सीबीआइ जांच नहीं कराये जाने से सरकार की बदनामी हो रही है. मौके पर प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय, विधायक संजय टाइगर, विधान पार्षद संजय मयूख और प्रदेश महामंत्री सुधीर शर्मा मौजूद थे.