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अब गुग्गल की खुशबू से महकेंगे चंबल के बीहड़

मुरैनाः चंबल के बीहड़ों में अब बंदूकों की आवाज की जगह औषधीय पौधे ‘गुग्गल’ की सुगंध महकेगी. चंबल की करीब 100 हेक्टेयर जमीन पर वन विभाग यहां के निवासियों के साथ मिलकर गुग्गल की खेती करने जा रहा है. एक सर्वे रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि गुग्गल के लिए चंबल के बीहड़ की जमीन बेहद अनुकूल है.

वन विभाग के अनुसार इस योजना के पहले चरण में यहां करीब एक करोड़ सोलह लाख रुपए की लागत से 100 हेक्टेयर जमीन में गुग्गल लगाया जायेगा. चम्बल में बीते वर्ष वन विभाग ने जड़ी बुटियों की खोज के लिये एक सर्वे कराया था. सर्वे की रिपोर्ट में पाया कि यहां की जमीन जड़ी-बूटी गुग्गल के उत्पादन के लिये काफ़ी उपयुक्त है. यहां के बीहड़ों में प्राकृतिक तौर से 48 झाड प्रति हेक्टेयर के हिसाब से गुग्गल के पौधे मौजूद है. इनमें से कई पौधे 12 फ़ीट तक की उंचाई के है जबकि आम तौर पर गुग्गल के पौधे की उंचाई चार से छह फ़ीट तक की होती है.

पर्यावरणविदों के अनुसार गुग्गल एक औषधीय पौधा है. इसके रस से मोटापा घटाने वाली, डायबटीज कन्ट्रोल करने वाली और दर्द निवारक आयुर्वेदिक एवं एलोपैथिक दवायें बनती है. इसके पत्ते व छिलके को सुखाकर इससे हवन सामग्री धूप आदि‍ बनायी जाती हैं. सूत्रों के अनुसार ताजा गुग्गल को दवायें बनाने वाली कंपनियां 900 से 1000 तक रुपए प्रति किलो के हिसाब से खरीदती है. हिमालय फ़ार्मेसी व झंडू जैसी दवा कंपनी इस जड़ी-बूटी की बड़ी खरीदारों में से एक हैं. मुरैना के वन मंडलाधिकारी आर एस सिकरवार के अनुसार चंबल के बीहड़ में करीब 100 हैक्टेयर भूमि गुग्गल लगाने के लिये चिन्हित की गई है. करीब एक करोड़ 16 लाख रुपए की लागत से यह योजना शुरु होगी.

सिकरवार ने बताया कि सर्वे रिपोर्ट आने के बाद कुछ फ़ार्मेसी कंपनियों ने गुग्गल की खेती के लिये रुचि दिखाई है. पर्यावरणविदों के अनुसार गुग्गल महंगी जड़ी बूटी है. यह कटक, मारावार व सौराष्ट्र में अधिक होती है. पश्चिमी मध्यप्रदेश में भी यह बहुतायत मात्रा में पाया जाता है. इसे दिन में आठ घंटे लगातार सूर्य का प्रकाश चाहिये जो चंबल में उपलब्ध रहता है.