Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/अब-तो-थमे-रुपए-की-फिसलन-डॉ-भरत-झुनझुनवाला-12705.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | अब तो थमे रुपए की फिसलन - डॉ. भरत झुनझुनवाला | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

अब तो थमे रुपए की फिसलन - डॉ. भरत झुनझुनवाला

पिछले दो साल से रुपए का मूल्य लगभग 64 रुपए प्रति डॉलर पर स्थिर रहा है, लेकिन पिछले दो महीनों में यह फिसलकर 68 के स्तर पर पहुंच गया है। यानी डॉलर के सामने रुपया कमजोर हो गया है। जैसे एक डॉलर के बदले पहले यदि 64 पेंसिल मिलती थीं, तो अब 68 मिलने लगी हैं। इसका अर्थ हुआ कि पेंसिल का मूल्य कम हो गया है। विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले समय में रुपए का मूल्य गिरकर 70 या इससे भी नीचे जा सकता है। रुपए का मूल्य बाजार में तय होता है। जिस प्रकार मंडी में आलू के दाम मांग और आपूर्ति से तय होते हैं, उसी प्रकार विदेशी मुद्रा बाजार में कुछ लोग डॉलर बेचते हैं और कुछ खरीदते हैं। जब डॉलर की आपूर्ति ज्यादा होती है तो डॉलर के दाम कम और रुपए के दाम ज्यादा हो जाते हैं। इसके विपरीत जब डॉलर की मांग ज्यादा होती है और आपूर्ति कम होती है तो डॉलर के दाम बढ़ते हैं और उसी के अनुरूप रुपए के दाम गिरते हैं। फिलहाल ऐसा ही हो रहा है। ऐसे में यक्ष प्रश्न यही है कि इस समय डॉलर की मांग ज्यादा और आपूर्ति कम क्यों हो रही है?

डॉलर की मांग बढ़ने का इस समय प्रमुख कारण तेल के बढ़ते मूल्य दिखता है। अप्रैल 2018 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम 70 डॉलर प्रति बैरल था जो वर्तमान में उठकर 80 डॉलर प्रति बैरल हो गया है। साथ ही साथ रुपया 64 रुपए प्रति डॉलर से गिरकर 68 रुपए प्रति डॉलर हो गया है। दोनों घटनाक्रम समांतर चल रहे हैं। तेल के दाम बढ़ने से भारत की तेल कंपनियों को तेल की खरीद के लिए डॉलर की खरीद ज्यादा करनी पड़ती है, इसलिए डॉलर की मांग ज्यादा है, डॉलर का दाम बढ़ रहा है और रुपए का दाम घट रहा है। तेल के बढ़ते दामों का तो हम कुछ नहीं कर सकते, लेकिन यदि हम ज्यादा मात्रा में डॉलर कमा लें, यानी साथ में डॉलर की आपूर्ति भी बढ़ जाए तो रुपए का दाम स्थिर हो जाएगा। चूंकि तेल कंपनियों को तेल खरीदने के लिए ज्यादा डॉलर चाहिए, इसलिए यदि भारतीय निर्यातक ज्यादा मात्रा में माल का निर्यात करके अधिक डॉलर अर्जित कर लें तो डॉलर की आपूर्ति बढ़ जाएगी और मांग एवं आपूर्ति का संतुलन पूर्ववत बना रहेगा। यूं समझिए कि मंडी में यदि आपूर्तिकर्ता और खरीददार दोनों ही साथ-साथ बढ़ जाएं तो माल के दाम नहीं बढ़ते हैं। इस समय तेल की खरीद के लिए डॉलर की मांग की काट यही हो सकती है कि हम डॉलर की आपूर्ति को बढ़ाएं।

डॉलर की आपूर्ति हमें मुख्यत: दो मदों से मिलती है। एक रास्ता हमारे निर्यात हैं। हमारे उद्यमी ऑटो पार्ट्स अथवा गलीचे जैसी वस्तुओं का निर्यात करके डॉलर अर्जित करते हैं। वे इस डॉलर को भारतीय मुद्रा बाजार में बेचते हैं। यदि हम अपने निर्यात बढ़ा सकते तो बढ़े हुए तेल के दाम को अदा कर सकते थे, लेकिन इस समय हमारे निर्यात भी दबाव में हैं। यानी एक तरफ तेल के लिए डॉलर की मांग ज्यादा है और दूसरी तरफ निर्यात दबाव में आने से डॉलर की आपूर्ति कम हो रही है।

यह आश्चर्यजनक है कि इस समय निर्यात दबाव में है, जबकि एनडीए सरकार के पिछले चार वर्षों में हाईवे और बिजली की आपूर्ति जैसे बुनियादी ढांचे में काफी सुधार हुआ है। इन सुधारों के चलते हमारे उद्योगों की उत्पादन लागत कम हुई है और उनके लिए व्यापार करना सरल हुआ है। इसलिए विश्व बाजार में हमारी प्रतिस्पर्धा शक्ति बढ़ी है। इस स्थिति में तो हमें अधिक मात्रा में डॉलर अर्जित करने थे, किंतु यहां दबाव में दिखता निर्यात हैरान करता है।

अंतरराष्ट्रीय बैंक बीएनपी पारिबास के माइकल सैंड ने भारत के निर्यात दबाव में होने के तीन कारण बताए हैं। पहला कारण शिक्षित एवं कुशल कर्मियों की अनुपलब्धता है। हमारी शिक्षा व्यवस्था मुख्यत: सरकारी विश्वविद्यालयों द्वारा संचालित हो रही है, जहां पर काम सरकारी नौकरियों के लिए सर्टिफिकेट छापकर देने मात्र का रह गया है। अर्थव्यवस्था में सक्षम कर्मियों का नितांत अभाव है। लगभग एक वर्ष पहले विश्व बैंक ने ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की रैंक में भारत को 30 देशों से आगे कर दिया था, लेकिन गहराई से पड़ताल करने पर पता लगा कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की रैंक में यह सुधार मुख्यत: भारत में दीवालिया कानून के लागू होने के आधार पर हुआ था, जिसमें दीवालिया कंपनियों को दी गई रकम को बैंकों द्वारा वसूल करना आसान हो गया था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि बिजली कनेक्शन लेना अथवा न्यायालय से किसी वाद का निपटारा होने में परिस्थिति यथावत एवं बदतर है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के इन अहम पहलुओं मे कोई सुधार नहीं हुआ था। बीएनपी पारिबास के अधिकारी कह रहे हैं कि भारत में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस अभी भी कमजोर है और उत्पादन लागत के ऊंचा होने का यह दूसरा कारण है। तीसरा कारण यह है कि भारत में श्रम की उत्पादकता चीन की तुलना में कम है। गाजियाबाद में बाइक और कार के लिए केबल बनाने वाली एक कंपनी के प्रमुख अधिकारी ने बताया कि भारत और चीन के कर्मियों का वेतन बराबर है। लगभग उसी प्रकार की मशीनों पर वे उत्पादन करते हैं, लेकिन चीन के कर्मी दोगुना उत्पादन करते हैं। इसलिए उत्पादन लागत में श्रम का हिस्सा भारत में चीन की तुलना में दोगुना है और इस कारण भारत में उत्पादन लागत ज्यादा आती है। इस परिप्रेक्ष्य में यदि निर्यात को बढ़ाना है तो हमें शिक्षा, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और श्रम की उत्पादकता बढ़ाने के लिए मौलिक कदम उठाने होंगे।

डॉलर की आपूर्ति का दूसरा स्रोत विदेशी निवेश है। यहां भी परिस्थिति विपरीत हो गई है। अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आने के बाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था में तेजी के संकेत मिल रहे हैं। दुनियाभर के निवेशक अमेरिका में निवेश को सुरक्षित मानते हैं, इसलिए पूंजी का बहाव एक बार फिर विकाशसील देशों से वापस अमेरिका की तरफ हो गया है। प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि 2017 में जनवरी से अप्रैल के बीच चार माह में भारत को 14 अरब डॉलर का विदेशी निवेश शेयरों और बांड बाजार में मिला था। वर्ष 2018 की इसी अवधि में यह घटकर मात्र 0.3 अरब डॉलर रह गया है। साफ है कि विदेशी निवेश से पहले हमें जो रकम मिल रही थी, वह अब मिलनी बंद हो गई है। इस प्रकार डॉलर की आपूर्ति के दोनों स्रोत, निर्यात और विदेशी निवेश, संकट में पड़ गए हैं। हमारे मुद्रा बाजार में डॉलर की आपूर्ति कम हो गई है और साथ ही तेल की मांग बढ़ने से भी हमारा रुपया फिसल रहा है।

हम तेल के दामों में हो रही वृद्धि अथवा विश्व पूंजी के अमेरिका की तरफ हो रहे बहाव को नहीं रोक सकते। यह हमारी सरकार के अधिकार के बाहर की बातें हैं, लेकिन अपनी अर्थव्यवस्था में उत्पादन की लागत को कम करना हमारी सरकार के नियंत्रण में है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि शिक्षा, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और श्रम की उत्पादकता बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाए, अन्यथा रुपए की फिसलन और ज्यादा बढ़ती जाएगी।