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अब बड़ा मसला है डाटा की सुरक्षा-- पवन दुग्गल

आधार पर सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ का फैसला उम्मीद के मुताबिक है। यह माना ही जा रहा था कि इतना आगे बढ़ जाने के बाद आधार से मुंह मोड़ा नहीं जा सकता। मगर हां, जिन शर्तों के साथ इसे कानूनी जामा पहनाया गया है, उसमें कई संदेश छिपे हैं। शीर्ष अदालत ने यह साफ कर दिया है कि कुछ सेवाओं को छोड़कर अब आधार का उपयोग अनिवार्य नहीं होगा। यह आम आदमी के लिए राहत की बात है, क्योंकि उससे जहां-तहां आधार मांगा जा रहा था। इससे उसके सामने कई मुश्किलें खड़ी हो रही थीं। मगर अब खासतौर से बैंकों, निजी कंपनियों और स्कूलों में इसे मांगने पर रोक लगा दी गई है। इससे आधार की सुरक्षा भी कुछ हद तक मजबूत हुई है, क्योंकि इन संस्थानों में आधार डाटा में सेंधमारी के खतरे कहीं ज्यादा हैं। बावजूद इसके सर्वोच्च न्यायालय के ताजा फैसले को मैं एक शुरुआती कदम मानता हूं। देखा जाए, तो इस फैसले के साथ आधार की अधिकृत यात्रा अब शुरू हुई है।


आधार को सांविधानिक रूप से वैध बताना एक तरह से सरकार की जीत है। मगर कानूनी रूप से इसका वैध होना और इसकी चाक-चौबंद सुरक्षा, दोनों अलग-अलग मुद्दे हैं। सुप्रीम कोर्ट नेआधार को लेकर जितनी भी टिप्पणियां की हैं, उनमें इसकी सुरक्षा को लेकर ज्यादा कुछ नहीं कहा गया। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि सुरक्षा यहां बहस का मुख्य मुद्दा नहीं था। मगर इससे सरकार के सामने कहीं बड़ी चुनौती आन पड़ी है। उसने एक कानूनी जंग जरूर जीत ली है और आधार की कानूनी मान्यता हासिल कर ली है, पर अब यह उसी का दायित्व है कि वह आधार की सुरक्षा को चाक-चौबंद बनाए।


संविधान पीठ के तमाम जज इस पर सहमत थे कि इससे निजता के अधिकार का हनन नहीं होता, लेकिन उन्होंने यह भी कहा है कि डाटा सुरक्षा को लेकर अपने यहां कानून होना चाहिए। सवाल अपनी जगह कायम है कि अगर सरकार ही आधार डाटा का दुरुपयोग करती है, तब...? वह ऐसा आसानी से कर सकती है, क्योंकि ‘चेक ऐंड बैलेंस' की पर्याप्त व्यवस्था अपने देश में नहीं है। इसलिए मैं मानता हूं कि जस्टिस चंद्रचूड़ की ‘माइनॉरिटी जजमेंट' कहीं अधिक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाती है। अगर उनके फैसले में उठाए गए मुद्दों पर पर्याप्त चिंतन नहीं किया गया, तो यह आने वाले दिनों में कई चुनौतीपूर्ण हालात पैदा कर सकता है। जाहिर है, यह फैसले का पहला पड़ाव है, अभी इसके कई सारे अध्याय लिखे जाने शेष हैं, और ये तमाम अध्याय निश्चय ही आधार की सुरक्षा से जुड़े होंगे।


इस संदर्भ में भारत को अभी कई सबक सीखने हैं। आधार की पहुंच इतनी दूर तक बढ़ चली है कि इसे अब वापस नहीं लिया जा सकता। अदालत ने भी अपने फैसले से यह साफ कर दिया है। ऐसे में, जरूरी है कि हमारी हुकूमत इसे अधिक से अधिक सुरक्षित और सुदृढ़ बनाने का अपना कर्तव्य निभाए। आधार पर ‘स्टेट और नॉनस्टेट एक्टर्स' (सरकारी और गैर-सरकारी संगठन) कई तरह के हमले करते रहे हैं। भले ही सरकार ऐसे किसी हमले को सिरे से खारिज कर देती है, पर हैकर्स किस कदर आधार डाटा में सेंध लगा रहे हैं, यह जगजाहिर है। हाल ही में ट्राई के चेयरमैन ने अपना आधार नंबर सार्वजनिक करके यह साबित करने की कोशिश की थी कि इसकी सुरक्षा में कोई खामी नहीं है। मगर हैकर्स ने जिस तरह से उनके आधार नंबर के सहारे उनके बैंक खातों तक अपनी पहुंच बना ली, उससे सरकार के दावे पर संदेह बढ़ता है।


आधार डाटा को सुरक्षित बनाने के लिए काफी कुछ किए जाने की जरूरत है। दरअसल, आधार का ढांचा साइबर सुरक्षा के लिहाज से नहीं बनाया गया है। लिहाजा सबसे पहले यह तय करना होगा कि हमारे यहां साइबर सुरक्षा में कहां-कहां सेंध लग सकती है? फिर खामियों को पहचानकर उन सबको दूर करना होगा। जरूरी यह भी है कि आधार डाटा के जितने भी साझीदार हैं, उन सबकी जिम्मेदारी तय की जाए। उपाय यह भी करना होगा कि आधार की पूरी व्यवस्था में पारदर्शिता लाई जाए। फिर, उस ढांचे की सुरक्षा पर भी खासा ध्यान देना होगा, जो आधार के बायोमेट्रिक डाटा ट्रांसमिशन (हस्तांतरण) या प्रबंधन से जुड़ा है।


मुश्किल यह भी है कि भारत की राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति आधार की सुरक्षा को लेकर कुछ नहीं कहती, बल्कि हमारे पास कोई साइबर सुरक्षा कानून तक नहीं है। इसकी वेबसाइट भी इन सभी सवालों पर मौन है। हमारे अटॉर्नी जनरल दावा करते हैं कि 13 फीट ऊंची और पांच फीट मोटी दीवार के भीतर आधार की सभी जानकारियां सुरक्षित हैं। मगर ऐसा कहते हुए शायद वह भूल जाते हैं कि आज किसी भी डाटा को दीवारों के भीतर सुरक्षित नहीं रखा जा सकता। इसे हम नई तकनीक और प्रौद्योगिकी की सहायता से ही सुरक्षित रख सकते हैं। आधार में सेंधमारी की कई खबरें अब तक आ चुकी हैं। एक रिपोर्ट में तो यह भी दावा किया गया है कि इसकी अधिकांश बायोमेट्रिक जानकारी देश से बाहर जा चुकी है। साफ है, आधार की कानूनी वैधता से कहीं ज्यादा बड़ा मसला इसकी डाटा-सुरक्षा है।


अगर शीर्ष अदालत आधार की सुरक्षा को ज्यादा तवज्जो देती, वह कहीं ज्यादा राष्ट्र के लिए हितकारी होता। महज कानूनी मान्यता से आधार के डाटा की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो सकती। सरकार को इसकी सुरक्षा के लिए जल्द से जल्द ठोस कदम उठाने ही होंगे। ऐसा किया जाना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि यदि इस पर हमला होता है, तो हमारे देश की संप्रभुता और अखंडता नकारात्मक रूप से प्रभावित होगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)