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अब शनिवार को जारी होगा जलवायु समझौते का नया मसौदा

पेरिस : अहम जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के वार्ता के अंतिम चरण में पहुंचने के बीच आज अधिकारिक रूप से यह घोषणा की गयी कि अब इस सम्मेलन का नया मसौदा शनिवार को जारी होगा.

गौरतलब है कि गहन बातचीत के बाद मतभेद के बावजूद कल गुरुवार को एक नया अपेक्षाकृत और छोटा मसौदा जारी किया गया था, जिसमें ‘‘स्थायी जीवनशैली' की तरह भारत द्वारा उठाई गई कई बातों को शामिल किया गया था. इस नए मसौदे में पहले मसौदे से दो पृष्ठ कम थे. कुल 27 पृष्ठों का यह मसौदा दो दिनों तक चले मंत्रिस्तरीय विमर्श के बाद कल जारी किया गया और इसमें पहले मसौदे की तुलना में काफी प्रगति हुई थी, लेकिन कई बातों पर अभी भी सहमति नहीं बन पायी थी. विकसित और विकासशील देश मसौदे के कई प्रावधानों पर अभी भी असहमत हैं. संभवत: यही कारण है कि अब सम्मेलन का नया मसौदा शनिवार को जारी किया जायेगा.

 

कई अहम बातों को किया गया है शामिल
फ्रांस के विदेश मंत्री लारेंत फैबियस द्वारा पेश इस मसौदे में यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कंवेन्शन फॉर क्लाइमेट चेंज :यूएनएफसीसीसी: में शामिल किए गए इक्विटी और आम लेकिन भिन्न जिम्मेदारियों पर आधारित सिद्धांतों और ‘‘स्थायी जीवनशैली' जैसी कई उन अहम बातों को शामिल किया गया है जो भारत ने उठाई थीं. फैबियस ने कहा, ‘‘ हमारे सम्मेलन के घोषित समापन की पूर्व संख्या पर, हम एक अंतिम समझौते पर पहुंचने के लिए एक निर्णायक कदम उठा सकते हैं. मैं आपके समक्ष एक नया मसौदा पेश कर रहा हूं.' फैबियस ने कहा, ‘‘मैं चाहूंगा कि आप :सभी देश: अंतिम समझौते को ध्यान में रखते हुए इस दस्तावेज को एक नए परिप्रेक्ष्य में देखें। हम एक समझौता चाहते हैं. हम अंतिम रेखा के बेहद करीब हैं. अब समझौते को मूर्त रुप देने का समय आ गया है.' हालांकि विभिन्न पर्यावरणीय समूहों ने कहा कि मसौदे में वर्णित बातें ‘‘पर्याप्त रुप से अच्छी' नहीं हैं. समय तेजी से निकला जा रहा है और मंत्रियों द्वारा लंबित मुद्दों को सुलझाए जाने की जरुरत अभी बनी हुई है. समझौते पर वार्ता के पाठ के नए मसौदे पर मंत्रियों के बीच चर्चा हो रही है ताकि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को काबू करने के लिए संयुक्त राष्ट्र का समझौता किया जा सके.

 

 

 

दस्तावेज थोडा और संक्षिप्त
फैबियस ने इस संबंध में जानकारी देते हुए कहा कि दस्तावेज थोडा और संक्षिप्त है. इसमें कई कोष्ठक हैं. वित्त, भिन्नता और महत्वाकांक्षा जैसे कई जटिल मुद्दे अभी भी इन कोष्ठकों में बने हुए हैं और इन पर आगामी घंटों में चर्चा की जाने की जरुरत है.' इस मसौदे को कल देर रात आयोजित सत्रों में से एक सत्र में वितरित किया गया। प्रमुख मुद्दों को सुलझाने के लिए विभिन्न देशों के बीच बेहद व्यस्तता से भरी चर्चाएं चल रही हैं, जो कि सुबह तक जारी रह सकती हैं. इससे पूर्व भारत ने अपनी ‘‘ जरुरत आधारित खपत' के मुकाबले विकसित देशों द्वारा ‘‘ खर्चीली' जीवनशैली अपनाने पर हमला किया और वह इस बात पर जोर देता आया है कि केवल ‘‘स्थायी' जीवनशैलियां ही जलवायु परिवर्तन की चुनौती को कम कर सकती हैं. भारत सरकार से जुडे सूत्रों ने बताया कि हालांकि देश द्वारा उठाए गए कई मामलों को शामिल किया गया है लेकिन अब भी ऐसे कुछ विषय है जिन पर काम किए जाने की आवश्यकता है. फैबियस ने कल की बैठक को ‘‘महत्वपूर्ण' बताते हुए कहा कि मसौदे के बारे में हर पक्ष अपनी राय रखने में समर्थ है और मसौदे की बारीकियों के स्पष्टीकरण के लिए ये हस्तक्षेप उपयोगी हैं. उन्होंने कहा, ‘‘ रात में गहन और काफी देर तक काम किया गया. इससे हमें आगे बढने में मदद मिली. ' फैबियस ने कहा कि प्रगति के आधार पर हम एक अंतिम मसौदे के लिए प्रस्ताव पेश कर सकेंगे.

 

 

अंतरराष्ट्रीय असमर्थता
इस बीच नए मसौदा पाठ पर टिप्पणी करते हुए ग्रीनपीस के मार्टिन कैसर ने कहा कि मेज पर जो मसौदा रखा गया वह पर्याप्त रुप से अच्छा नहीं है. कैसर ने कहा, ‘‘ यह एक बडी समस्या है कि मेज पर रखे गए उत्सर्जन संबंधी लक्ष्य हमें ग्लोबल वार्मिंग के 1.5 डिग्री से नीचे के स्तर पर नहीं रख पाएंगे और इस मसौदे में इसे बदलने के लिए कुछ भी नहीं किया गया. हम इस समय अंतरराष्ट्रीय असमर्थता देख रहे हैं.' अन्य भी कई लोगों का अब भी यही कहना है कि मौजूदा मसौदा और मजबूत हो सकता था लेकिन समय के साथ महत्वाकांक्षा को बढाने के दरवाजे अब भी खुले हैं. पेरिस में संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ताओं के प्रतिनिधि मंडल में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के प्रमुख तसनीम एसोप ने कहा, ‘‘समय बीत रहा है और मंत्रियों को लंबित मामलों को सुलझाने की आवश्यकता है. हम 2020 से पहले देश संकल्पों की समीक्षा पर एक समझौते के निकट पहुंच सकते है. लेकिन 2019 तक की मौजूदा समयसीमा संकल्पों को बढाने के लिए देशों के पास बहुत कम समय छोडती है. ' एसोप ने कहा, ‘‘ उन्हें यह जल्दी करने की आवश्कता है. अब भी काफी काम किया जाना बाकी है. मौजूदा मसौदे में हानि एवं क्षति के विकल्पों के साथ एक बडी समस्या है. मौजूदा विकल्प उन लोगों के लिए कोई उम्मीद नहीं देते जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सबसे अधिक प्रभावित होंेगे।' उन्होंने कहा कि वार्ता के मसौदे में अब वार्मिंग के दो डिग्री सेल्सियस नीचे के स्तर पर रखने का लक्ष्य रखा गया है और 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान सीमा का जिक्र किया गया है. उन्होंने कहा, ‘‘ यह उत्साहवर्धक है क्योंकि यह उत्सर्जन कम करने की अधिक मजबूत इच्छा की ओर संकेत करता है. हालांकि देशों को अब भी यह रेखांकित करने की आवश्यकता है कि वे इन लक्ष्यों को कैसे हासिल करेंगे.'