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अबॉर्शन लॉ भारत में हर 10 में से 7 महिलाएं नहीं सहमत

भारत के 20 सप्ताह वाले वर्तमान अबॉर्शन लॉ से हर 10 में से 7 महिलाएं सहमत नहीं हैं। यह जानकारी फ्रांस की एक कंपनी द्वारा करवाए गए ऑनलाइन शोध में सामने आई है। इसमें 70% ने कहा कि महिला जब चाहे उसे गर्भपात की इजाजत होनी चाहिए। हालांकि 30 फीसदी इसके खिलाफ हैं। यह अध्ययन 23 देशों में ऑनलाइन किया गया। इसका मकसद इस मुद्दे पर वैश्विक राय जानना था। सर्वेक्षण में शामिल कुल 23 देशों के 74 फीसदी लोगों ने कहा कि गर्भपात की इजाजत होनी चाहिए, हालांकि 45 फीसदी ने कहा कि इसकी इजाजत तब होनी चाहिए जब महिला फैसला करे।
 
विश्व स्वास्थ्य संगठन और गुटमाकर इंस्टीट्यूट के अनुसार दुनियाभर में गर्भधारण करने वाली महिलाओं में से हर चौथी को गर्भपात का सामना करना पड़ रहा है।
जहां वर्ष 1990 से 1994 के दौरान हर साल औसतन 5 करोड़ गर्भपात हुए, वहीं 2010 से 2014 के दौरान यह आंकड़ा बढ़कर 5.6 करोड़ हो गया। यानी ऐसे मामलों में 12 फीसदी तक का इजाफा है। वर्तमान में सालाना 5 करोड़ 60 लाख गर्भपात का निर्णय सोच-समझ कर लिया जा रहा है। कई अमीर देशों में इस स्थिति में सुधार है, लेकिन गरीब देशों में बदलाव नहीं आया है। शोध में यह भी पाया गया कि जिन देशों में गर्भपात कानूनी है, वहां गर्भपात की दर उन देशों के समान ही थी, जहां ये गैरकानूनी है।

भारत में ये है वर्तमान कानून

385801-ab copyवर्तमान में चिकित्सकीय गर्भपात कानून सिर्फ 20 हफ्ते तक के गर्भ की समाप्ति की इजाजत देता है। वह भी कुछ खास परिस्थिति यों में। 1971 में संसद द्वारा यह कानून अवैध गर्भपात और मातृ मृत्यु दर को कम करने के उद्देश्य से पारित कि या गया था। यह 1 अप्रैल 1972 से लागू हुआ। हालांकि 1975 और 2002 में इसमें संशोधन भी कि ए गए। इस कानून में प्रावधान हैं कि 12 सप्ता ह से कम की गर्भावस्था की समाप्ति एक डॉक्टर की सलाह से की जा सकती है। वहीं गर्भावस्था इसके ज्यादा, लेकिन 20 सप्ताह से कम है तो दो डॉक्टरों से सलाह लेना जरूरी है। हालांकि पिछले साल कानून में सुधार को लेकर एक प्रस्ताव तैयार भी हो गया था, लेकिन पास न हो सका। बताया जा रहा है कि चिकित्सा सेवा से जुड़े लोगों और विशेषज्ञों के विरोध के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय इसे मानसून सत्र में पेश नहीं कर पाया था।

198 देशों की यह स्थिति

 

0 इनमें से 59 देशों में महिलाओं को एक तय समयावधि तक बेरोक-टोक गर्भपात का अधिकार है।
0 9 देशों में गर्भावस्था का 12वां सप्ताह शुरू होने से पहले ऐसा कि या जा सकता है।
0 36 देश ऐसे हैं जहां 12वें हफ्ते के अंत तक महिला को गर्भपात की छूट है।
0 6 देश ऐसे हैं जहां 20वें सप्ताह तक बिना किसी कानूनी अड़चन के महिलाएं गर्भ समाप्त करवा सकती हैं।
0 7 देशों ने इस समयावधि को 20 सप्ताह से आगे बढ़ा रखा है या फिर समय सीमा की बाध्यता ही नहीं रखी।
0 1 देश (ऑस्ट्रेलि या) में प्रांतों को अपने तरह से गर्भपात की समयावधि तय करने के लिए कहा गया है।

 

तय समयावधि में भी कई तरह के प्रतिबंध

 

59 के अलावा शेष रह गए 133 देशों (जि नमें भारत भी शामि ल है) में गर्भपात को लेकर कुछ तरह की शर्तें लागू हैं। जैसे कि महिला की जान को खतरा या सामाजिक- आर्थि क तथा स्वास्थ्य कारण होने की स्थिति में ही गर्भपात की अनुमति देना।
इन 6 देशों में तो हर हाल में अमान्य
दुनिया के छह देश ऐसे भी हैं, जहां किसी हाल में गर्भपात मान्य नहीं है, चाहे गर्भ संबंधी जटि लताओं के कराण महिला की जान क्यों न चली जाए। इनमें लैटिन अमेरिका के चार देश (चिली, डोमिनिकन गणराज्य, अल सल्वा डोर तथा नि कारागुआ) वहीं यूरोप के दो देश (वेटिकन सिटी और माल्टा ) शामिल हैं।

 

 

12 फीसदी बढ़े मामले
 
इससे पहले यह थी व्यवस्था
1971 से पहले भारत में गर्भपात कानून ब्रिटेन के कानूनों से प्रेरित था। इसलि ए कि 1860 से लागू हुई भारतीय दंड संहिता तत्कालीन ब्रिटिश कानून के आधार पर ही लिखी गई थी । इसमें अगर महिला को जान का जोखिम न हो तो किसी भी हाल में गर्भपात कानूनन अपराध माना गया था। इसके तहत गर्भपात करवाने वाली महिला को सात साल कारावास अथवा जुर्माना या दोनों तरह की सजा साथ देने का प्रावधान था। वहीं गर्भपात करवाने वाले डॉक्टर को तीन साल तक की सजा दी जा सकती थी ।
 
दी गई छूट

 

 

0 जब महिला की जान को खतरा हो या उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को किसी प्रकार का जोखिम हो।
0 विभिन्न प्रकार की जांच में बच्चे में विकलांगता के लक्षण सामने आएं या किसी प्रकार की विकृति हो।
0 युवती बलात्कार का शिकार हो जाने के कारण गर्भवती हुई हो।
0 18 साल से कम आयु की अविवाहित लड़की या विक्षिप्त महिला के मामले में परिजन की रजामंदी से गर्भपात वैध है। उन मामलों में भी गर्भपात को कानूनी मान्यता दी गई है, जब परिवार नियोजन का उपाय नाकाम होने से महिला गर्भवती हो गई हो।

 

सुप्रीम कोर्ट ने दी है गर्भपात की इजाजत

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए एक महिला को 24 हफ्ते के भ्रूण के गर्भपात की इजाजत दे दी। कोर्ट ने यह इजाजत मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेगनेंसी (एमटीपी) एक्ट की धारा-5 के तहत दी। कोर्ट के अनुसार एक्ट की धारा-3 कहती है कि 20 हफ्ते से ज्यादा होने पर गर्भपात नहीं हो सकता लेकिन इसी एक्ट की धारा-5 में कहा गया है कि अगर किसी महिला की जान को खतरा हो तो कभी भी गर्भपात किया जा सकता है। रेप पीड़िता महाराष्ट्र की इस महिला ने सुप्रीम कोर्ट से 24 हफ्ते के भ्रूण के गर्भपात की इजाजत मांगी थी। तब कोर्ट ने महिला की मेडिकल रिपोर्ट देखने के बाद ही सुनवाई का फैसला किया था।

 

देश में छिड़ी है बहस 
 
कोर्ट के इस फैसले के बाद इस मुद्दे पर देश में एसक व्यापक बहस छिड़ गयी है। भारत में गर्भपात कानून में संशोधन को लेकर मांग लंबे समय से उठती रही है। पिछले साल मानसून सत्र में सरकार इसके लि ए प्रस्ताव भी संसद में रखना चाहती थी, मगर ऐसा हो न सका। हालांकि इस मामले में दुनिया के ज्या दातर देशों की स्थिति भारत जैसी ही है। सिर्फ 7 ही देश हैं, जहां 20 हफ्ते बाद भी महिला को गर्भपात की इजाजत है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को गर्भपात के नियमों को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई शुरू कर दी है । याचिका में महाराष्ट्र की एक 26 वर्षीय कथित बलात्कार पीड़िता ने चिकित्सकीय गर्भपात कानून-1971 की धारा 3 (2) (बी) को निष्प्रभावी किए जाने की मांग की है। इसलिए कि वह 24 हफ्ते की गर्भावस्था के बावजूद गर्भपात करवा सके। मगर हकीकत तो यह है कि वर्तमान में दुनिया में सिर्फ सात ही देश हैं, जहां मामूली कारणों के चलते 20 सप्ताह की गर्भावस्था के बाद गर्भ समाप्ति कानून का उल्लंघन नहीं है। ये देश अमेरिका, चीन, उत्तर कोरिया, वियतनाम, सिंगापुर, कनाडा तथा नीदरलैंड्स हैं।