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अभावों की कोख से जन्मा वैज्ञानिक

पूर्णिया [विनय कुमार अजय]। साइकिल मरम्मत की दुकान चलाने वाले खुद्दार पिता के इस होनहार बेटे की उपलब्धि पर आज पूर्णिया ही नहीं पूरा बिहार गर्व कर रहा है। मुफलिसी की आग में तप कर कुंदन बने विवेक ने न सिर्फ आईआईटी में बाजी मारी बल्कि अब उसका चयन मुंबई के भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर [बार्क] में रिसर्च के लिए हुआ है।

इस सेंटर में चयनित पूरे देश के कुल 17 छात्रों में से विवेक बिहार का इकलौता है। विवेक का चयन कम्प्यूटेशनल केमिस्ट्री में रिसर्च के लिए हुआ है। विवेक के फर्श से अर्स तक के सफर के लिए उसके परिवार की कुर्बानी भी सलाम करने लायक है। उसे इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए उसके परिवार वालों को कई बार भूखे पेट भी सोना पड़ा।

साइकिल मरम्मत की दुकान चलाने वाले पूर्णिया के सुदीन चौक निवासी महेश प्रसाद सिन्हा और रीना सिन्हा की दो संतानों में छोटे विवेक की जिंदगी अभावग्रस्त विद्यार्थियों के लिए एक मिसाल है। बचपन से ही अपनी प्रतिभा से चौंकाते रहने वाले विवेक की जिंदगी किसी मुंबइया फिल्म की पटकथा की तरह रोचक लेकिन सीख लेने वाली है। टयूशन के पैसे नहीं होने के कारण उसकी मां ने ही सातवीं कक्षा तक उसे पढ़ाया। पूर्णिया के ब्राइट कैरियर स्कूल के प्राचार्य गौतम सिन्हा ने भी उसकी प्रतिभा को देखते हुए मुफ्त में मैट्रिक तक की शिक्षा दी।

विवेक ने पूर्णिया से ही वर्ष 2006 में मैट्रिक तथा 2008 में इंटर की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की। वर्ष 2009 में विवेक पहली बार देश की सबसे कठिन प्रतियोगिता माने जाने वाले आईआईटी एंट्रेंस के लिए बैठा और इसमें उसने बाजी मारी। कोलकाता स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस एंड टेक्नालाजी रिसर्च सेंटर [आईआईटी से संबद्ध संस्था] में दाखिला लेने के बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उसकी प्रतिभा व लगन को देखते हुए वर्ष 2010 में शुरू होने वाले बैच में उसका चयन देश के प्रतिष्ठित मुंबई के भाभा रिसर्च सेंटर में रिसर्च के लिए किया गया है।

उसकी पढ़ाई जारी रखने के लिए उसके पिता ने साइकिल मरम्मत की दुकान तक बेच दी। इतना ही नहीं दिल्ली की गलियों में घर-घर बोतल बंद पानी पहुंचाकर उसके पिता ने विवेक की पढ़ाई जारी रखी। इसी बीच उसके पिता दिल्ली में ऐसे बीमार हुए कि दो महीने तक अस्पताल में पड़े रहे। किस्मत की मार से नहीं घबराते हुए उसकी मां रीना सिन्हा तथा बड़ी बहन सोनालिका ने ट्यूशन पढ़ाकर उसकी पढ़ाई जारी रखी। जब ये पैसे पढ़ाई के लिए कम पड़े तो परिवार ने पुरखों की जमीन भी बेच दी। विवेक की मां ने बताया कि भूखे पेट रहकर भी वे लोग विवेक का हौसला बढ़ाते रहे। इस बीच कभी पड़ोसी से कर्ज लेकर तो कभी दूसरों की दुकान पर काम कर उसके पिता महेश सिन्हा ने बेटे की पढ़ाई जारी रखी।

विवेक भी जानता था कि उसकी कामयाबी से ही उसके परिवार की जिंदगी जुड़ी हुई है, इसलिए उसने भी कड़ी मेहनत की। वह बताता है कि रात में नींद आ जाने पर मिर्च खाकर नींद तोड़ता था और फिर पढ़ाई में लग जाता था।