Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/अभिजीत-मुखोपाध्याय-अभिजीत-मुखोपाध्याय-12009.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | अभिजीत मुखोपाध्याय-- अभिजीत मुखोपाध्याय | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

अभिजीत मुखोपाध्याय-- अभिजीत मुखोपाध्याय

विमुद्रीकरण की घोषणा के ठीक एक साल बाद, यह पूरी तरह स्पष्ट है कि यह कदम विशुद्ध रूप से एक राजनीतिक हथकंडा था. जिसका मकसद प्रधानमंत्री को काला धन से लड़नेवाले एक ऐसे जेहादी अवतार के तौर पर पेश करना था, जो भ्रष्ट अमीरों की जान के पीछे पड़ा है.

 

8 नवंबर, 2016 को स्पष्ट उनके अपने शब्दों में- ‘इसलिए, भ्रष्टाचार, काला धन, नकली नोटों और आतंकवाद के विरुद्ध इस लड़ाई में, देश के विशुद्धीकरण के इस अभियान में क्या हमारे लोग कुछ दिनों की कठिनाइयों को सहन नहीं करेंगे? मुझे पूरा भरोसा है कि देश का हर नागरिक उठ खड़ा होगा और इस महायज्ञ में भागीदार बनेगा.' 

 

यह राजनीतिक चाल उत्तर प्रदेश के अहम चुनावों में सत्तारूढ़ दल के पक्ष में अच्छी तरह काम कर गयी. बहरहाल, यदि इस कदम का मूल्यांकन आर्थिक शर्तों के लिहाज से किया जाये, तो कहा जा सकता है कि ‘काला धन के खात्मे के इरादे से उठा कदम, ऐसा करने में नाकाम रहा.'

और सबसे बुरा तो यह कि ‘एक कदम, जिसने सभी सामान्य आर्थिक तर्कों की अवज्ञा की.' वापस आये 500 और 1000 रुपये के प्रतिबंधित नोटों की ठीक-ठीक संख्या के साथ अभी आरबीआइ को सामने आना बाकी है, जैसा कि कहा जा रहा है कि ‘गिनती अभी भी जारी है.'

अगस्त 2017 में प्रकाशित अपनी सालाना रिपोर्ट में इस केंद्रीय बैंक ने बताया था कि जून के अंत तक रद किये नोटों का 98.96 प्रतिशत वापस आ चुका था. कुछ रपटों के मुताबिक, निःसंदेह ऐसी ‘पाइपलाइन' हैं, जिनमें विमुद्रीकृत धन फंसा हुआ है और इसमें से कुछ धन का आरबीआइ में वापस आना है. इन पाइपलाइनों के संग्रह में विमुद्रीकृत करेंसियों में, (अ) नेपाल में नागरिकों के पास पड़े प्रतिबंधित नोट, क्योंकि आरबीआइ और नेपाल राष्ट्र बैंक ऐसे नोटों के विनिमय को लेकर वार्ता कामयाब नहीं हुई, (ब) जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (डीसीसीबीएस) में जमा प्रतिबंधित करेंसी की एक बड़ी राशि, (स) छापों के दौरान आयकर विभाग द्वारा जब्त प्रतिबंधित नोट तथा (द) दंड अथवा जुर्माने के तौर पर अदालतों में जमा धन, शमिल है.

सुप्रीम कोर्ट में 15 नवंबर, 2016 को विमुद्रीकरण के निर्णय के बचाव में, तत्कालीन महाधिवक्ता ने दलील दी थी कि सरकार का अनुमान 15 से 16 लाख करोड़ रुपये के कालाधन होने का है तथा 10 से 11 लाख करोड़ रुपये लोगों द्वारा बैंकों में जमा करने की अपेक्षा है. उन्होंने कहा, ‘शेष 4-5 लाख करोड़ रुपये भारत में गड़बड़ी भड़काने में जम्मू और कश्मीर तथा उत्तर-पूर्व में इस्तेमाल किये जा रहे हैं, जो निष्क्रिय हो जायेंगे.'
विमुद्रीकरण के समर्थकों के लिए यह अपेक्षा सही थी, लेकिन काला धन को समाप्त करने का मकसद पूरी तरह नाकाम रहा. इस तरह, स्पष्टतः विमुद्रीकरण का पहला लक्ष्य ही हासिल नहीं हुआ.

सुप्रीम कोर्ट में सरकार द्वारा पेश हलफनामे में भारतीय अर्थव्यवस्था में लगभग 400 करोड़ रुपये की नकली करेंसी के प्रसार का अनुमान व्यक्त किया गया था. यह अनुमान भारतीय सांख्यिकी संस्थान(आइएसआइ) द्वारा 2016 में किये एक अध्ययन पर आधारित था.

आरबीआइ की सालाना रिपोर्ट बताती है कि मार्च 2017 तक कुल 41.5 करोड़ रुपये के 500 और 1000 के जाली नोटों का पता चला है, जो 2014-2015 के लिए आइएसआइ के अनुमान का महज दसवां भाग है. विमुद्रीकरण के बाद बैंकों में लौटे 15.28 लाख करोड़ रुपयों का 0.003 प्रतिशत ठहरता है. यानी 41.5 करोड़ रुपये की जाली नोटों को निष्क्रिय करने के लिए देश की 84 प्रतिशत करेंसी को रद्द करना किसी आर्थिक समझ वाला तर्क नहीं दिखता. अतः विमुद्रीकरण का दूसरा लक्ष्य भी हवा में विलीन हो गया.

भारत में आतंकवाद से जुड़ी कुल मौतों पर एक नजर डालें, तो 2015 में 722 मौतें हुई थीं, जो 2016 में बढ़कर 898 हो गयीं. वहीं अक्तूबर, 2017 तक 654 मौतों का आंकड़ा आ चुका है. इन आंकड़ों को देखते हुए भी यदि कोई कहे कि विमुद्रीकरण से आतंकवाद पर रोक लगी है, तो आंकड़ों की समझ पर तरस खाया जा सकता है. यह तीसरा लक्ष्य भी औंधे मंुह गिरा दिखता है.

यदि डिजिटलीकरण, कर आधार का विस्तार, कैशलेस इकोनॉमी के प्रोत्साहन पर गौर करें, तो ये महज उत्तर विचार हैं. ये तब सामने आये, जब यह स्पष्ट हो गया कि नोटबंदी से कोई भी लक्ष्य हासिल नहीं होने जा रहा है.

स्वतंत्र भारत की सबसे विघटनकारी इस आर्थिक नीति ने अर्थव्यवस्था के साथ क्या किया है. वैश्विक आर्थिक निराशा के बीच विमुद्रीकरण के पूर्व 2016 ने प्रारंभ में कुछ चमकीले बिंदु लक्ष्य किये थे.

एक- लगभग एक सामान्य मानसून के जरिये, दो- सूक्ष्म, लघु, मध्यम निर्माण इकाई में छोटे किंतु अहम उछाल के जरिये, तीन- कुछ निवेशक भावों में पुनरुत्थान के जरिये (हालांकि यह उपभोक्ता ड्यूरेबल वस्तुओं, आटोमोबाइल्स, सड़क तथा नवीनीकरण सरीखे क्षेत्रों तक सीमित था), चौथा- सेवा क्षेत्र में नियमित विकास के जरिये. विडंबनात्मक ढंग से ये क्षेत्र विमुद्रीकरण से सर्वाधिक प्रभावित हुए. कृषि, ग्रामीण लघु उद्योग तथा असंगठित अनौपचारिक क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुए, क्योंकि इन क्षेत्रों में नकदी चलती है. काम छूटने या रोजगार के अवसर घटने की अधिकतर सूचनाएं भी इन्हीं क्षेत्रों से थीं.

सेवाओं में, खासकर व्यापार, रीयल इस्टेट, होटल्स एवं रेस्टोरेंट निर्माण व परिवहन बुरी तरह प्रभावित हुए. पहले से ही कमजोर निवेश की स्थितियां और बिगड़ीं- पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन में लगातार गिरावट और औसत वाणिज्यिक बैंक क्रेडिट वृद्धि दर की गिरावट आयी. यह वृद्धि दर, जनवरी से अक्तूबर 2016 में 9.9 प्रतिशत से गिरकर नवंबर 2016 से सितंबर 2017 में 5.6 प्रतिशत पर आ गयी. कई सूक्ष्म व लघु कंपनियां बंद हो गयीं, क्योंकि वो कार्यशील पूंजी नहीं पा सकीं और ऐसा ही काॅरपोरेट आय में भी दिखा.

इन सबके नतीजे के तौर पर जीडीपी तेजी से गिरी. जो, 2016-17 की अंतिम तिमाही में 6.1 प्रतिशत थी, 2017-18 की पहली तिमाही में 5.7 प्रतिशत पर आ गयी.

यह कहना जल्दबाजी होगी कि सरकार ने कुछ राजनीतिक लाभ पाने हेतु आर्थिक मोर्चे पर अपने पैर में कुल्हाड़ी मारी है, लेकिन निष्चित तौर पर कहा जा सकता है कि ‘भ्रष्टाचार, काला धन, नकली करेंसी तथा आतंकवाद' को उखाड़ फेंकने के मूल लक्ष्यों के लिहाज से यह विघटनकारी आर्थिक नीति औंधे मुंह गिरी है.
(अनुवाद : कुमार विजय)