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अमेरिका चुनावः बाइडन का रुख़ भारत से जुड़े कई मसलों पर ट्रंप से है अलग

-बीबीसी, 

डोनाल्ड ट्रंप को शिकस्त देने के साथ ही जो बाइडन का अमेरिकी राष्ट्रपति बनने का रास्ता साफ़ हो गया है.

77 साल के बाइडन ओबामा प्रशासन के दोनों कार्यकाल में उप राष्ट्रपति रह चुके हैं. बाइडन का राजनीतिक सफ़र बहुत लंबा रहा है.

बतौर उप राष्ट्रपति भी उनका अच्छा-ख़ासा अनुभव रहा है और उन्हें विदेश मामलों का जानकार माना जाता है.

ऐसे में दुनिया के सबसे ताक़तवर मुल्क का राष्ट्रपति बनने के बाद दुनिया के अलग-अलग देशों को लेकर उनकी नीतियां क्या रहेंगी और क्या वे ट्रंप के प्रशासन के दौरान रही नीतियों से बिलकुल अलग रास्ता अख़्तियार करेंगे, इन तमाम सवालों को लेकर विश्लेषकों ने कयास लगाने शुरू कर दिये हैं.

बतौर राष्ट्रपति बाइडन की भारत को लेकर नीतियां किस तरह की रहेंगी और क्या वे डोनाल्ड ट्रंप के दौरान भारत से क़रीबी रिश्ते रखने की नीति पर कायम रहेंगे या नए प्रशासन में भारत के साथ अमेरिका का व्यवहार बदलेगा, इस पर भी तमाम तरह के आंकलन किए जा रहे हैं.

कारोबार से लेकर एच1बी वीज़ा, अमेरिका में भारतीयों को मिलने वाली नौकरियों, रक्षा भागीदारी, पाकिस्तान को लेकर अमेरिका का रुख़, चरमपंथ, ईरान को लेकर फ़ैसले, कश्मीर पर रुख़ जैसे ऐसे कई अहम पहलू हैं जिन पर बाइडन की अगुवाई में बनने वाला नया प्रशासन किस तरह का रवैया रखता है यह देखना भारत के लिए बेहद अहम होगा.

पूर्व राजनयिक पिनाक रंजन चक्रवर्ती कहते हैं कि किसी भी देश की विदेश नीति बदलती तो है, लेकिन उसमें सततता भी रहती है.

वो कहते हैं कि क्लिंटन के ज़माने से देखें तो उस वक़्त भारत के परमाणु विस्फोट के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में दरार आई, लेकिन बाद में संबंधों में सुधार भी हुआ, क्लिंटन का भारत दौरा भी हुआ.

पिनाक कहते हैं, "यहां तक कि राष्ट्रपति बुश के ज़माने में न्यूक्लियर वाले सबसे विवादित मसले पर ही दोनों देशों के बीच डील भी हो गई. बाद में ओबामा दो बार भारत आए, ट्रंप का भी दो बार भारत दौरा हुआ."

वो कहते हैं, "डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन दोनों में विदेश नीति में एक कॉन्टिन्यूटी जारी रही है और मुझे नहीं लगता कि बाइडन के आने के बाद इसमें कोई बड़ा बदलाव आएगा."

पिनाक कहते हैं कि हालांकि, ट्रंप और बाइडन अलग-अलग पर्सनैलिटी हैं, ऐसे में ज़ाहिर है कुछ चीज़ों में अंतर होगा, लेकिन बड़े मसलों में कोई अंतर नहीं आएगा.

वो कहते हैं, "ट्रेड, सिक्योरिटी और चरमपंथ जैसे मसलों पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा. इन चीज़ों पर एक कॉमन प्लेटफॉर्म बन ही गया है. कोई भी नया प्रेसिडेंट इनमें बदलाव की कोशिश नहीं करेगा."

हर्ष पंत कहते हैं कि मोटे तौर पर तो भारत और अमेरिका के संबंधों में इंडीविजुअल्स का रोल कम होता जा रहा है और संस्थाओं की भूमिका बढ़ती जा रही है और ऐसे में बाइडन भी इन संबंधों को आगे ही ले जाएंगे.

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