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अलविदा 2018: छाया रहा सरकार और आरबीआई के बीच विवाद

आरबीआई और सरकार के बीच कई आर्थिक मुद्दों पर मतभेद 2018 के आर्थिक जगत में छाए रहे। इसका गंभीर असर 10 दिसंबर को देखने को मिला, जब गवर्नर पद से उर्जित पटेल ने इस्तीफा दे दिया और नोटबंदी के प्रबल समर्थक और पूर्व वित्त सचिव शक्तिकांत दास ने कमान संभाली।


केंद्र और आरबीआई में मतभेदों की शुरुआत जनवरी में हो गई जब पीएनबी घोटाला सामने आया। रिजर्व बैंक पर आऱोप लगा कि वह आंतरिक बैंकिंग निगरानी प्रणाली में गड़बड़ियों को भांप नहीं सका। आलोचना के जवाब में उर्जित पटेल ने सरकारी बैंकों पर आरबीआई के कमजोर नियंत्रण का हवाला दिया। इसके बाद छह फरवरी को केंद्रीय बैंक ने एक सर्कुलर जारी कर उद्योगों के कर्जों के पुनर्गठन की करीब सारी योजनाओं को बंद कर दिया। इससे संकटग्रस्त उद्योगों खासकर छोटे उद्योगों की हालत बिगड़ने लगी। रही सही कसर कमजोर बैंकों के कर्ज बांटने पर आरबीआई के अंकुश ने पूरी कर दी।


ऐसे में मांग की जाने लगी कि केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए ऋण के पुनर्गठन और कर्ज वितरण में ढील दे। जुलाई में आईएलएंडएफएस का संकट सतह पर आ गया और इसका बुरा असर म्यूचुअल फंड उद्योग और अन्य गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों पर पड़ा। स्थिति बिगड़ते देख सरकार ने कंपनी का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। इस बीच रिजर्व बैंक ने लगातार दो बार ब्याज दरों में 0.25 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी, जिससे कर्ज लेना और महंगा हो गया।


डिप्टी गवर्नर के बयान से मतभेद गहराए

सरकार की विभिन्न मांगों के बीच अक्तूबर में आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य के एक बयान ने विवाद खड़ा कर दिया। बैंकों को ढील देने और बिजली क्षेत्र को विशेष रियायत देने के मुद्दों पर सरकार के दबाव के बीच आचार्य ने आगाह किया कि आरबीआई की स्वायत्तता में दखलंदाजी के बेहद गंभीर परिणाम होंगे। इस पर वित्त मंत्री अरुण जेटली को स्पष्ट करना पड़ा कि सरकार की मंशा आरबीआई की स्वायत्तता में दखलंदाजी की नहीं है, और मतभेद के मुद्दों पर चर्चा में कोई बुराई नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अर्थव्यवस्था में जनहित को प्राथमिकता देनी होगी और सरकार इसके लिए प्रयास जारी रखेगी।


धारा 7 के इस्तेमाल की नौबत तक आई

मतभेद हल न होते देख रिजर्व बैंक के कानून की धारा 7 के तहत केंद्र को मिली असाधारण शक्तियों के इस्तेमाल की नौबत आ गई। इसके तहत केंद्र को मुद्दों पर आरबीआई से औपचारिक निर्देश जारी करने का हक है। 19 नवंबर को आरबीआई बोर्ड की बैठक में कर्ज संकट दूर करने, बैंकों के कर्ज बांटने पर लगे अंकुश, रिजर्व बैंक के फंड से केंद्र को एक हिस्सा देने जैसे मुद्दों पर विचार विमर्श हुआ। आरबीआई ने तब रिजर्व फंड पर समिति का गठन किया और कर्ज वितरण में ढील पर फैसले का हक वित्तीय निगरानी बोर्ड को दिया। यह मांग भी उठी कि गवर्नर-डिप्टी गवर्नर अकेले निर्णय की बजाय बोर्ड के जरिये फैसले लें।