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अवकाश के दिन भी खटखटा सकते हैं कोर्ट का दरवाजा, मिलेगा न्याय

पीयूष बाजपेयी, जबलपुर। आमतौर पर सभी को ये मालूम है कि अवकाश वाले दिन हाईकोर्ट बंद रहता है, लेकिन न्याय अवकाश वाले दिन भी किए जाते हैं। यदि आप चाहें तो अवकाश के दिन भी कोर्ट का दरवाजा खटखटाकर न्याय पा सकते हैं। ताजा उदाहरण तहसील भवन को तोड़े जाने से जुड़ा है।

सुबह 11 बजे तहसीली भवन का एक हिस्से को तोड़े जाने की कार्रवाई बीच में रोकना पड़ गई। संडे के दिन (26 जुलाई) महज 3 घंटे में स्पेशल बेंच बैठी। जस्टिस आलोक आराधे की बेंच ने मामला सुना और बिल्डिंग तोड़ने के लिए स्थगन आदेश जारी कर दिया।

ऐसे पहुंची सीजे तक गुहार, 3 घंटे में मिला न्याय

सुबह 11 बजे- नगर निगम का अतिक्रमण हटाने वाला अमला तहसीली चौक पहुंचा। इसी दौरान तहसीली कोऑपरेटिव सोसायटी के सदस्य भी आ गए।

- सोसायटी वालों ने निगम का स्वीकृत नक्शा, जिला प्रशासन से 1960 से जारी लीज और भवन के दस्तावेज दिखाए जिसे निगम प्रशासन नहीं माना।

सुबह 12 बजे - सोसायटी की याचिका दायर करने वालेअधिवक्ता शशांक शेखर और अंकित अग्रवाल से अध्यक्ष राजीव उपाध्याय और अन्य सदस्यों ने चर्चा की। उधर पूर्व क्षेत्र के विधायक अंचल सोनकर और सोसायटी सदस्यों ने निगम अफसरों के चर्चा करते रहे। दूसरी तरफ अधिवक्ता अंकित अग्रवाल ने प्रिंसीपल रजिस्ट्रार ज्यूडीशियल मनोहर ममतानी से संपर्क कर चुके थे। मामले की सुनवाई का आग्रह किया गया।

दोपहर 1बजे- हाईकोर्ट से वकील श्री अग्रवाल के पास फोन आया कि उनके प्रकरण का नंबर बताया जाए। इससे पहले प्रिंसीपल रजिस्ट्रार श्री ममतानी ने चीफ जस्टिस अजय माणिकराव खानविलकर को पूरे मामले से अवगत कराया। चीफ जस्टिस ने फोन पर ही स्पेशल बेंच लगाने के निर्देश दिए।

दोपहर 3 बजे- स्पेशल बेंच लगाई जाने की जानकारी मिली और जस्टिस आलोक अराधे और उनका स्टाफ कोर्ट पहुंच चुका था। तहसीली भवन के मामले पर निगम के वकील अंशुमान सिंह को भी बुलाया गया। कोर्ट में तहसीली सोसायटी के लीज, नक्शे और दो रजिस्टर्ड इंजीनीयरों के भवन जर्जर नहीं होने वाले प्रमाण-पत्र पेश किए। इसी आधार पर कोर्ट ने कार्रवाई पर स्थगन का आदेश दिया। वहीं ये कहा कि निगम की अपील समिति के सामने सुनवाई की जाए।

ये कहता है नियम

- अधिवक्ता शशांक शेखर के मुताबिक हाईकोर्ट ऐसे मामलों पर अवकाश या रात के समय भी सुनवाई कर सकता है। इसमें अर्जेन्सी यानी अवकाश पूरा होने के बाद कोर्ट खुलने तक रुका नहीं जा सकता है।

- हाईकोर्ट किसी व्यक्ति के जीवन-मरण यानी फांसी की सजा, समाजहित से जुड़े किसी भी तरह के विषय की सुनवाई कर सकता है। बशर्ते उस दौरान समय रहते मामला कोर्ट तक पहुंचाया जा सके।

- यदि चीफ जस्टिस चाहें तो स्पेशल बेंच उस जस्टिस के घर में भी लगाने के निर्देश दे सकते हैं। ऐसे ही एक प्रकरण में चीफ जस्टिस के निर्देश पर हाईकोर्ट जस्टिस दीपक मिश्रा ने दीपावली की रात में सुनवाई कर स्थगन जारी किया था।

इस तरह हो सकती अपील

- अवकाश वाले दिन सुबह 6 बजे से लेकर रात 10 बजे के बाद तक रजिस्ट्रार जनरल से संपर्क किया जा सकता है।

- यदि इनसे संपर्क नहीं हो सके तब प्रिंसीपल रजिस्ट्रार ज्यूडीशियल से बात की जा सकती है। लेकिन इसके लिए अधिवक्ता को खुद अपने पक्ष को मजबूती से पेश करना होगा।

- ये निर्णय चीफ जस्टिस ही करते हैं कि मामले की सुनवाई के लिए स्पेशल बैंच लगाई जाए या नहीं।

इस तरह के मामलों में वकील और उस प्रकरण की गंभीरता पर निर्भर करता है कि वो समय रहते कोर्ट को अपनी बात सही तरीके से बता सके। माननीय हाईकोर्ट ने समय रहते न्याय किया और राहत प्रदान की है। -अंकित अग्रवाल, अधिवक्ता, तहसीली पक्ष