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अविरलता बिना निर्मलता नहीं-- भरत झुनझुनवाला

देश के मुख्य न्यायाधीश प्रयाग संगम पर पूजा अर्चना करने गये तो पंडित ने दक्षिणा में गंगा की निर्मलता और अविरलता मांगी. मांग बिल्कुल सही है, चूंकि गंगा को निर्मल बनाने के लिए उसका अविरल बहना अनिवार्य है. गंगा जल में कुछ विशेष सुकीटाणु होते हैं, जो जहरीले कीटाणुओं को खा जाते हैं. इन्हें कालीफाज कहा जाता है. ये कालीफाज गंगा में प्रवेश करनेवाले सीवेज में विद्यमान हानिप्रद कीटाणुओं को खाकर पानी को निर्मल बना देते हैं.

ये लाभप्रद कीटाणु गंगा की मिट्टी के साथ बह कर नीचे तलहट में पहुंचते हैं. गंगा पर बने हाइड्रोपावर के बांधों के पीछे यह मिट्टी जमा हो जाती है और सिंचाई के बराजों से निकाल ली जाती है, फिर नीचे नहीं पहुंचती है. फलस्वरूप मैदानी गंगा में इन लाभप्रद कीटाणुओं की मात्रा कम हो जाती है और गंगा की निर्मलता नष्ट हो जाती है.

गंगा को निर्मल बनाने में मछलियों की अहं भूमिका है. ये जल की गंदगी को खाकर उसकी सफाई करती हैं. इन्हें पानी में पर्याप्त मात्रा में आॅक्सीजन की जरूरत होती है. बहता पानी हवा से आॅक्सीजन सोखता है और मछलियों को जीवित रखता है.

नदी का पानी बांधों के पीछे रुक जाने से पानी द्वारा ऑक्सीजन कम सोखी जाती है और मछलियों को आॅक्सीजन नहीं मिलती है. अतएव निर्मल बनाने के लिए जरूरी है कि गंगा का पानी अविरल बहे, जिससे जिससे कालीफाज तलहटी में पहुंचे और मछलियों को पर्याप्त आॅक्सीजन मिले.

गंगा में सीवेज न डाला जाये, तो भी पानी साफ नहीं होगा चूंकि नदी में प्राकृतिक कूड़ा तो पहुंचता ही है जैसे पशुओं के शव तथा टहनियां एवं पत्तियां. इनके सड़ने से पानी में आॅक्सीजन समाप्त हो जाती है. नेशनल इनवायरमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट नागपुर के एक शोध में पाया गया कि टिहरी बांध में सूक्ष्म मात्रा में मीथेन गैस निकल रही है.

अर्थ है कि पानी सड़ रहा है. पानी में आॅक्सीजन उपलब्ध हो, तो झील की तलहटी में सड़नेवाली पत्तियां सड़ कर कार्बन डाइआक्साइड गैस बनाती हंै. पानी में आॅक्सीजन उपलब्ध न हो, तो वही कार्बन डाइआक्साइड मीथेन गैस में परिवर्तित हो जाती है. मीथेन गैस का निकलना इस बात का प्रमाण है कि झील के नीचे तलहटी के पानी में आॅक्सीजन समाप्त हो गयी है और वहां का पानी सड़ रहा है.

सीवेज को रोकना भी कठिन चुनौती है. सरकार द्वारा गंगा के किनारे बसे शहरों की नगरपालिकाओं को सीवेज को साफ करने के लिए ट्रीटमेंट प्लांट लगाने को आर्थिक मदद दी जा रही है. लेकिन इन्हें चलाने में नगरपालिका को भारी मात्रा में बिजली खर्च करना पड़ता है.

नगरपालिका के सामने च्वॉयस होती है कि बिजली को सड़कों पर लाइट जलाने के लिए उपयोग किया जाये या सीवेज ट्रीटमेंट के लिए. जनता को सड़क की लाइट से सीधे सरोकार होता है, जबकि सीवेज का प्रभाव अप्रत्यक्ष है. इसलिए सीवेज प्लांट कम ही चलाये जाते हैं. इसका उपाय है कि सरकार के द्वारा साफ पानी को खरीदा जाये. निजी उद्यमियों द्वारा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाये जायें और इनके द्वारा उत्पादित पानी को सरकार खरीद कर किसानों को सिंचाई के लिए उपलब्ध करा दे. तब सरकार को उतना ही खर्च करना होगा, जितना पानी साफ किया जायेगा.

अर्थशास्त्र में कहावत है कि कुछ भी मुफ्त नहीं होता है. गंगा की अविरलता और निर्मलता का भी मूल्य अदा करना होगा. समस्या है कि जनता को नदी की निर्मलता के आर्थिक लाभ न तो बताये जाते हैं न ही समझ आते हैं. आज घरों में पीने के साफ पानी के लिए आरो लगाये जाते हैं. यात्रा में लोग 20 रुपये की बोतल पानी खरीदते हैं. यदि हम नदी के पानी को साफ कर दें, तो हमें इस खर्च से मुक्ति मिल जायेगी. प्रदूषित पानी का स्वास्थ पर भयंकर दुष्प्रभाव पड़ता है.

नदी के साफ पानी का सीधे आर्थिक लाभ भी है. सर्वे में पाया गया कि गंगा में डुबकी लगानेवालों को तमाम आर्थिक लाभ हुए. जैसे किसी को नौकरी मिली, कोई परीक्षा में पास हुआ और किसी का कारोबार चल निकला इत्यादि. यह आर्थिक लाभ भी सफाई से ही मिलती है.

गंगा को अविरल एवं निर्मल बनाने में खर्च आता है. गंगा की अविरलता बनाये बनाये रखते हुए हाइड्रोपावर बनाने के लिए बांध के स्थान पर ठोकर बना कर पानी निकालना होगा. इसमें खर्च आयेगा.

सीवेज से उत्पादित साफ पानी को खरीदने का भी खर्च आयेगा. समस्या है कि हाइड्रोपावर और सीवेज साफ करने के खर्च दिखते हैं, जबकि स्वास्थ आदि के लाभ नहीं दिखते. सरकार को चाहिए कि सफाई से होनेवाले आर्थिक लाभों से जनता को अवगत कराये, जिससे जनता गंगा को साफ करने के लिए खर्च करने का अनुमोदन करे.