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असम में बार-बार भड़कती हिंसा का समाधान क्या है- विनोद रिंगानिया

असम में दो साल पहले बोडो बहुल इलाकों में हुई हिंसा में सौ से ज्यादा लोगों की जान गई थी। इस साल फिर वहां हिंसा भड़क उठी है। पिछली बार की हिंसा की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी। उसने जांच रिपोर्ट सौंपी और दोषियों के खिलाफ मामले दायर किए। मामले अब भी चल रहे हैं, पर उस रिपोर्ट के आधार पर सरकार को जो कदम उठाने चाहिए थे, वे नहीं उठाए गए।

इस बार की हिंसा की आशंका थी। गुवाहाटी के एक दैनिक अखबार में यह खबर छप चुकी थी कि मतदान के बाद बोडोलैंड में हिंसा हो सकती है। खबर खुफिया सूत्रों के हवाले से छपी थी।

असम के बोडो बहुल चार जिलों को मिलाकर एक स्वायत्तशासी क्षेत्र का गठन किया गया है, जिसे बीटीएडी या बोडोलैंड क्षेत्रीय स्वायत्तशासी जिले कहा जाता है। इस इलाके में पड़ने वाला कोकराझार लोकसभा चुनाव क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। इस सीट पर बोडो प्रत्याशी ही वर्षों से जीतता आया है। पर इस बार वहां उल्फा के एक पूर्व कमांडर ने अपनी दावेदारी ठोक दी। एक खेमे में बोडो जनजाति के लोग थे, जबकि गैर-बोडो लोग उल्फा प्रत्याशी का समर्थन कर रहे थे। बोडो बहुल इलाके में अलग बोडोलैंड राज्य का मुद्दा बहुत गर्म है। जबकि गैर-बोडो संगठन, जिनमें असमिया भाषी, बांग्लाभाषी हिंदू, बांग्लाभाषी मुस्लिम और असमिया बोलने वाले राजवंशी समुदाय के लोग हैं, किसी भी कीमत पर बोडोलैंड का गठन रोकना चाहते हैं।

आग में घी डालने का काम स्वायत्तशासी क्षेत्र में प्रशासन संभालने वाले बोडो पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) की एक नेत्री ने किया। उन्होंने कहा कि कोकराझार सीट पर मुस्लिम मतदाताओं ने कांग्रेस के कहने पर बीपीएफ उम्मीदवार के विरुद्ध वोट डाला है। कांग्रेस के दो प्रभावशाली मंत्रियों के मुताबिक, ताजा हिंसा का कारण यह बयान था।

इधर राज्य के पुलिस महानिदेशक कहते हैं कि हिंसा उग्रवादी संगठन एनडीएफबी (नेशनल डेमोक्रैटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड) के (संगबिजित) गुट ने फैलाई है। पुलिस और सुरक्षा बलों ने पिछले दिनों इस संगठन के कई सदस्यों का सफाया कर दिया था। मुस्लिमों को निशाना बनाने का कारण यह है कि इससे कांग्रेस को चोट पहुंचती है। इसी तरह वह कांग्रेस पर दबाव डाल सकता है कि अपने विरुद्ध चल रहे अभियान को रुकवा सके।

बोडो इलाकों में होने वाली हिंसा में हमेशा ही अत्याधुनिक हथियारों का इस्तेमाल किया जाता है। यहां की सत्ताधारी पार्टी बीपीएफ भी पहले अलग बोडोलैंड के लिए सशस्त्र आंदोलन करने वाला उग्रवादी संगठन था, जिसे बोडो टाइगर फोर्स कहा जाता था। उसका प्रतिद्वंद्वी संगठन एनडीएफबी भी हिंसक तरीके से इलाके में समानांतर तांडव मचाता रहा है। इस कारण इलाके में भारी संख्या में अवैध हथियार जमा हो गए हैं। जब भी पुलिस-प्रशासन ने इन हथियारों को जब्त करने की कोशिश की है, राजनीतिक दबाव डालकर उसे रुकवा दिया गया है। इसलिए बोडो इलाकों में जब हिंसा भड़कती है, तो यह समझना मुश्किल हो जाता है कि इसके पीछे कौन हो सकता है।

इस तरह की हिंसा का नुकसान अक्सर मुसलमानों को ही झेलना पड़ता है, इसी कारण बांग्लादेश से होने वाली अवैध घुसपैठ, भूमि पर अवैध कब्जे जैसे मुद्दे अपने-आप चर्चा में आ जाते हैं। बीपीएफ सभी समुदायों के साथ भाईचारे की रट तो लगाता है, पर यह भी कहता है कि पुलिस और सामान्य प्रशासन विभाग उसके पास नहीं है, इसलिए सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। कांग्रेस-बीपीएफ गठजोड़ वाली राज्य सरकार आज तक बोडो बहुल इलाके से अवैध हथियार जब्त करने की इच्छाशक्ति नहीं दिखा पाई। जब हिंसा की आशंकाओं को रोकने की ही योजना नहीं है, तो समाधान बहुत दूर की बात है।