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अस्पताल से बाहर दवा खरीदने की छूट के लिए केंद्र में याचिका

रायपुर। मरीजों को अस्पताल के अंदर से दवा खरीदने के बजाय बाहर की किसी भी दवा दुकान से दवा खरीदने की आजादी क्यों नहीं होनी चाहिए? मरीजों पर किसी भी प्रकार की बाध्यता नहीं होनी चाहिए। आज यह मुद्दा प्रदेश के चिकित्सा जगत में चर्चा का विषय बना हुआ है। यह आम मरीज का दर्द भी है, क्योंकि दवाओं का खर्च जीवन-यापन पर भारी पड़ रहा है। इसी मुद्दे को शहर के वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. सांवर अग्रवाल ने उठाया है। उन्होंने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में एक याचिका लगाई है, जो सीधे आम मरीज से सरोकार रखने वाली है।

डॉ. अग्रवाल ने अपनी याचिका में लिखा है कि 'अस्पतालों को निर्देशित किया जाए कि वे अपने अस्पताल में एक बोर्ड लगाएं जिसमें मरीजों को अस्पताल के बाहर की दवा दुकानों से दवा खरीदी की स्वतंत्रता हो"। इस याचिका को प्रदेश के चिकित्सकों, विशेषज्ञों का खुलकर समर्थन मिल रहा है। सोशल मीडिया में भी लोग अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। 'नईदुनिया" को इंटरनेट पर उपलब्ध डॉ. अग्रवाल की याचिका से यह जानकारी मिली। कई डॉक्टर्स ने भी 'नईदुनिया" का ध्यान इस याचिका पर आकर्षित किया।

दवाओं की कीमत आसान छू चुकी हैं, जो आम मरीज की पहुंच से बाहर हैं। ऊपर से अस्पताल प्रबंधन द्वारा अस्पताल के अंदर ही दवा दुकानें खुलवा दी गई हैं, जो कमीशन पर संचालित होती हैं। मरीजों को इन्हीं दवा दुकानों से ही दवा खरीदने पर बाध्य किया जाता है, बाहर से लाई गई दवाएं लौटा तक दी जाती हैं। इसलिए मरीजों को दवा वहीं खरीदनी पड़ती है, चाहे वह किसी भी दर पर हो।

डॉ. अग्रवाल द्वारा लगाई गई याचिका पर 230 से अधिक लोग हस्ताक्षर कर चुके हैं, और रोजाना 200 लोग इस साइट पर विजिट कर रहे हैं। जब डॉ. अग्रवाल से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि उनकी याचिका में सबकुछ उल्लेखित है। उन्होंने कहा कि उनकी यह याचिका किसी व्यक्ति विशेष या फिर किसी डॉक्टर के विरुद्ध हरगिज नहीं है। बल्कि यह व्यवस्था में परिवर्तन के लिए, जनजागरूकता लाने के लिए और खामियां उजागर करने की एक मुहिम है। आप भी चाहें तो डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू,चेंज.ओआरजी पर जाकर रायपुर टाइप कर इस याचिका को अपना समर्थन दे सकते हैं।

क्या है डॉ. अग्रवाल की याचिका में

बहुत सारी दवाइयां प्राइज कंट्रोल के अधीनस्त नहीं हैं। बहुत सारे अस्पताल स्पेशल ब्रांड सप्लाई की दवा दवाएं लिखते हैं और प्रिटेंड एमआरपी का बिल लेते हैं। जबकि उसकी तुलनात्मक दवाइयां मार्केट में उपलब्ध हैं। एंटीबायोटिक पिपरासिलिन और टाजोबैक्टम 790 रुपए में बेची जाती है। जबकि सेम एंटीबायोटिक 130-200 रुपए में बाजार में उपलब्ध है। आईसीयू में इस्तेमाल में लाई जाने वाली दवाएं कितनी संख्या में और कौन से चीजें इस्तेमाल में लाई जा रही हैं, इसे लेकर कोई पारदर्शिता नहीं बरती जाती है। मरीज बिल के भुगतान के समय ही इन्हें जानता है। कई डिस्पोजेबल के दाम भी अधिक होते हैं।

मैंने भी डॉ. अग्रवाल द्वारा लगाई गई याचिका को पढ़ा है। उन्होंने जो लिखा है वह बिल्कुल सही है। मरीज को जहां उचित लगे, वे वहां से दवा खरीदें, उन्हें इसकी आजादी होनी चाहिए।

डॉ. राकेश गुप्ता, वरिष्ठ ईएनटी विशेषज्ञ

 

मुझे लगता है कि मरीजों पर दवा खरीदने को लेकर कोई दबाव नहीं होता है और हम कितने बोर्ड लगाएंगे। हर कंपनी की दवा के अपने दाम होते हैं। रेट को लेकर कोई पॉलिसी तो बनी नहीं है।

डॉ. महेश सिन्हा, अध्यक्ष, आईएमए रायपुर इकाई