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आइटी नौकरियां घटने का संकट-- आकार पटेल

अर्थव्यवस्था से जुड़ी कुछ चिंताजनक खबरें आ रही हैं, जिनकी चर्चा व्यापारिक अखबारों तक ही सीमित है. ये समाचार भारत के बड़ी सूचना तकनीक और सॉफ्टवेयर उद्योग की इंफोसिस, टीसीएस और विप्रो जैसी कंपनियों से संबंधित हैं. पिछले दो दशकों से तेजी से बढ़ रही इन संस्थाओं की वृद्धि धीमी पड़ गयी है.

अब इन कंपनियों की वार्षिक बढ़ोतरी एकल अंकों में हो रही है और इसके लिए भी उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. ऐसे में यह आशंका जतायी जा रही है कि भारत में यह उद्योग गहरे संकट में है. इस धीमी गति का एक कारण यह है कि ऑटोमेशन यानी स्वचालित प्रणाली से मानवीय पूंजी स्थानापन्न हो रही है. इससे इन कंपनियों द्वारा दी जा रही सेवाओं और उनके हजारों कर्मचारियों पर खराब असर पड़ा है.

इन्फोसिस के पूर्व शीर्ष अधिकारी टीवी मोहनदास पई ने इस मुद्दे को प्रासंगिक संदर्भों के साथ विश्लेषित करते हुए एक अच्छा आलेख लिखा है. मोहनदास पई का कहना है कि हालात में बदलाव के आसार हैं और इसमें तीन से पांच साल का समय लग सकता है. इस लिहाज से भारत की सूचना तकनीक के क्षेत्र में काम कर रही कंपनियां समस्या का समाधान कर पाने के लिए अच्छी स्थिति में हैं.

मोहनदास पई कहते हैं- 'चलिए हम आज के हालात का जायजा लेते हैं. भारतीय सॉफ्टवेयर का निर्यात उद्योग करीब 110 बिलियन डॉलर है. इस क्षेत्र में कार्यरत लोगों की संख्या 42.5 लाख के आसपास है. इसके पास आउटसोर्सिंग के वैश्विक बाजार में 60 प्रतिशत की हिस्सेदारी है और इसमें उसका प्रभुत्व है. बाजार पूंजी के लिहाज से दुनिया की 10 शीर्ष सॉफ्टवेयर सेवा कंपनियों में पांच भारतीय कंपनियां हैं. सबसे बड़ी पांच ऐसी कंपनियों में तीन भारतीय हैं.

इनमें से सभी कंपनियों की भारत में बहुत बड़ी मौजूदगी है. शीर्ष की 10 कंपनियों के करीब 20 लाख कर्मचारियों में 70 प्रतिशत भारत में कार्यरत हैं या वे भारत से बाहर गये हैं. विदेशों में सक्रिय भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग का वैश्विक सॉफ्टवेयर सेवाओं में वर्चस्व है और उनकी बराबरी में कोई भी नहीं है.'

बड़ी भारतीय कंपनियों के पास दुनियाभर में अगुवाई करने का अनुभव है और इनके पास असाधारण प्रतिभाशाली प्रबंधन भी है. इस स्थिति में हम सभी को यह अपेक्षा रखनी चाहिए कि वे बदलाव का सामना अपनी क्षमता के मुताबिक बेहतरीन तरीके से करेंगे. परंतु, इस मसले में यह भी है कि बदलाव संरचनात्मक और उथल-पुथल पैदा करनेवाला है.

कुछ सप्ताह पहले मैं हैदराबाद में एक सेमिनार में बोल रहा था. आइबीएम के आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस प्रोग्राम वाॅटसन के प्रभारी मनोज सक्सेना ने भी इस आयोजन में अपनी बात रखी थी. वहां मनोज सक्सेना ने जो कुछ कहा, वह बहुत चिंताजनक बात है.

सक्सेना ने अगले दशक में तकनीक में होनेवाले बदलावों को विश्लेषित किया. उनके विचार में सूचना तकनीक की हमारी कंपनियां उस बदलाव के लिए तैयार नहीं हैं, जो अरबों डॉलर के कारोबार पर नजर जमाये रखने के साथ वक्त की जरूरत हैं. उन्होंने कहा कि यह सौ मील प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही कार के टायर बदलने की तरह है.

ऑटोमेशन यानी स्वचालित प्रणाली हममें से अधिकतर की कल्पना से कहीं ज्यादा तेजी से हमारी तरफ आ रहा है. जुलाई में प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया को दिये गये एक साक्षात्कार में मोहनदास पई ने कहा था- 'आज बहुत सारे लोग (मध्य स्तर के प्रबंधक) 30 से 70 लाख रुपये हर साल कमा रहे हैं. इनमें से आधे अगले दस सालों में अपनी नौकरी से हाथ धो बैठेंगे. मोहनदास पई के कहे मुताबिक, सूचना तकनीक उद्योग में मध्य स्तर के प्रबंधकों की संख्या 10 फीसदी यानी 4.50 लाख है. और, इनमें से 2.25 लाख लोगों की नौकरी आगामी दस सालों में चली जायेगी, क्योंकि तब इनका काम स्वचालित प्रणाली से होने लगेगा.

कई कारणों से यह एक मनहूस खबर है. पहला कारण, इसका मतलब यह है कि भले ही सूचना तकनीक के क्षेत्र में काम कर रही कंपनियां सॉफ्टवेयर बाजार में अपनी हिस्सेदारी को बरकरार रखने में सफल हो जायें, परंतु इसमें स्वचालित प्रणाली लगेगी, जिसमें कम कर्मचारियों की जरूरत होगी.

दूसरा कारण, मैनुफैक्चरिंग क्षेत्र में ऑटोमेशन से पूरी दुनिया में नौकरियां घट रही हैं और यह भी एक तथ्य है कि रोबोटिक्स तकनीक ने कुछ मैनुफैक्चरिंग नौकरियों को वापस पश्चिमी देशों में जाना संभव बनाया है.

तीसरा कारण, सूचना तकनीक के क्षेत्र में बदलाव ऐसे समय पर सामने आया है, जब भारत रोजगार के नये अवसरों को पैदा करने के लिए जूझ रहा है.

चौथा कारण, आबादी के बड़े हिस्से में रोजगार के मसले पर पहले से ही रोष व्याप्त है. देश के तीन सर्वाधिक औद्योगिकीकृत राज्यों- गुजरात, हरियाणा और महाराष्ट्र- में प्रभावशाली समुदाय इसी मसले पर आंदोलनरत हैं. इसे विस्तार से ऐसे समझते हैं. पाटीदार, जाट और मराठा लोग यह मानते हैं कि उन्हें रोजगार के लिए राजकीय सहायता चाहिए. ये किसी भी तरह से शहरी समुदाय नहीं हैं. बेंगलुरु, मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद और गुड़गांव में स्थित सूचना तकनीक उद्योग शहरी ऊंची जातियों को रोजगार देता है. यह वर्ग आरक्षण-विरोधी है, क्योंकि इसके लिए अंगरेजी शिक्षा और सेवा क्षेत्र की नौकरियों तक पहुंच आसान रही है.

दुनिया में तकनीक के जरिये तेजी से हो रहे बदलाव का मतलब यह है कि अब ऐसी स्थिति नहीं रहेगी. मेरी राय में यह सरकार के लिए कोई मुद्दा नहीं है, लेकिन यह जरूरी है कि भारतीय उन मूलभूत बदलावों से आगाह रहें, जिनसे निकट भविष्य में उनका सामना होना है, और किस तरह से ये बदलाव उनके जीवन को प्रभावित कर सकते हैं.