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आपदा फंड से बने तालाबों को भी राहत की दरकार

राज्य में हर साल 1200 से 1400 एमएम तक बारिश होती है़  लेकिन, पहाड़ी एवं पठारी क्षेत्र होने के कारण अधिकतर पानी बह जाता है़  इसे रोकने के लिए छोटे-छोटे तालाब बहुत जरूरी हैं़  पानी पुरुष राजेंद्र सिंह भी मानते हैं कि झारखंड की जो भौगोलिक परिस्थिति है उसमें छोटे तालाबों का बड़ा महत्व है़ . इस प्रकार के तालाब हर गांव में बनाया जाना चाहिए़  वह भी दर्जनों की संख्या में इस लिहाज से झारखंड सरकार ने आपदा मद एवं मनरेगा से छोटे-छोटे तालाब निर्माण की जो योजना बनायी वह बहुत अच्छी थी़  लेकिन, इन तालाबों के निर्माण के लिए स्थल चयन में तकनीकी बातों का ध्यान नहीं रखा गया़  ऐसे में इक्का-दुक्का को छोड़कर सुखाड़ राहत के लिए आपदा मद या मनरेगा से बनाये गये तालाब जल संचय के उद्देश्य में सफल नहीं हैं.  उमेश यादव की रिपोर्ट़

दुमका जिले के सरैयाहाट प्रखंड में 25 ग्राम पंचायत और 281 ग्राम हैं. वित्तीय वर्ष 2004-05 में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री अजरुन मुंडा ने सुखाड़ के मद्देनजर पूरे राज्य में एक लाख तालाब बनाने की योजना बनायी़  इसका नाम सहाय्य जलाशय योजना रखा गया़.  पूरे राज्य के लिए एक ही मॉडल इस्टीमेट बनाया गया़  इसकी संरचना 100 फीट लंबा एवं चौड़ा और 10 फीट गहरा रखी गयी़  उस समय एक तालाब की लागत 70 हजार रुपये आंकी गयी़. योजना के लिए आवंटन एवं मॉडल इस्टीमेट जिलों को भेजते हुए सरकार ने तीन माह में काम पूरा करने का निर्देश दिया़  इसके तहत यहां के सभी ग्राम पंचायत में कम से कम 230 की संख्या में तालाब बनाये गय़े  लेकिन, ये तालाब आज किस स्थिति में हैं.

इसकी जानकारी न तो उस समय योजना की कार्यकारी एजेंसी यानी अंचल कार्यालय को है न ही और ग्राम पंचायतों को है़  इस संबंध में अंचल कार्यालय से पूछने पर बताया गया कि इतनी पुरानी योजना है़  इसके बारे में जानकर क्या करेंग़े  फाइल कहीं पर रखी होगी़  खोजना मुश्किल है़ . संक्षेप में अंचल कार्यालय के अधिकारी एवं कर्मचारी भी मानते हैं कि अधिकतर तालाब तालाब नहीं रह गये हैं. इस बारे में मटिहानी ग्राम पंचायत की मुखिया रंजू देवी के प्रतिनिधि पुरुषोत्तम सिंह से से बात की गयी तो उन्होंने भी ग्राम पंचायत के किसी गांव में इस प्रकार के तालाब के अस्तित्व से इंकार किया़ हालांकि मटिहानी ग्राम पंचायत के ही जीयाजोर गांव निवासी एवं सामाजिक कार्यकर्ता शशिभूषण यादव सहाय्य जलाशय योजना से बने अपने तालाब को दिखाते हुए बताते हैं कि बारिश नहीं होने से इसमें पानी नहीं भरता था़  यह स्थिति पिछले चार-पांच साल से थी़  लेकिन, पिछले सप्ताह फैलीन के प्रभाव से जो बारिश हुई, उससे यह पूरी तरह भर गया है़ वर्तमान में पांच फीट से अधिक पानी है़. 

यही हाल देवघर जिले का भी है़  देवघर जिले में 194 ग्राम पंचायत और 2700 गांव हैं.  सहाय्य जलाशय योजना से वर्ष 2004-05 से लेकर वर्ष 2007-08 तक में लगभग 2000 की संख्या में तालाब बनाये गये हैं़  लेकिन, इन तालाबों में 90 प्रतिशत का अस्तित्व आज नहीं के बराबर है़  100 फीट लंबा एवं चौड़ा और 10 फीट गहरा तालाब एक मामूली गड्ढा नजर आता है़  इस बात की पुष्टि करते हुए जिला परिषद के उपाध्यक्ष परिमल सिंह उर्फ भूपेन सिंह कहते हैं कि सहाय्य जलाशय योजना से जो तालाब बनाये गये हैं, वह किसी काम के नहीं है़  न तो उसमें मछली पालन होता है और न ही वह सिंचाई के काम आता है़  इसका कारण यह है कि उसमें पानी ही नहीं रहता है़  उपाध्यक्ष श्री सिंह न केवल सहाय्य जलाशय योजना बल्कि मनरेगा से बन रहे छोटे-छोटे तालाबों पर भी सवाल खड़े करते हैं और कहते हैं कि इससे जल संचयन का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता है़  उनके मुताबिक मनरेगा से नये तालाब निर्माण से ज्यादा बेहतर है पुराने तालाबों का जीर्णोद्घाऱ ब्रिटिश सरकार के पैक्स कार्यक्रम से जुड़े स्वयं सेवी संस्था चेतना विकास के दुमका जिला समन्वयक पंचम प्रसाद वर्मा कहते हैं कि मनरेगा का तालाब सफल है़ .

 इससे मजदूरों को काम और गांव को जल संचयन का साधन प्राप्त होता है़  सरैयाहाट प्रखंड क्षेत्र में ही मनरेगा के दर्जनों तालाब सफल साबित हुए हैं़  सहाय्य जलाशय योजना के तहत बने तालाब के जल संचय में फेल हो जाने के पीछे श्री वर्मा जन भागीदारी की कमी मानते हैं. उनके मुताबिक 70 हजार की लागत से बनने वाले तालाब में बिचौलियागिरी खूब हुई़  ग्राम सभा में व्यापक विचार-विमर्श के बाद तालाब के लिए स्थल चयन नहीं किया गया़  बिचौलियों को जहां सुविधा हुई, वहां तालाब बना दिया गया़  नतीजन तालाब जल्द ही मिटने लग़े  सहाय्य जलाशय योजना एवं मनरेगा के तालाब के जल संचयन में फेल हो जाने की वजह क्या है़. 

जल संसाधन विभाग के अभियंता संतोष सिंह कहते हैं कि इन तालाबों के फेल हो जाने के पीछे सबसे बड़ी वजह सही स्थल का चयन एवं खुदाई नहीं होना है़  अभियंता श्री सिंह के मुताबिक गांव में तालाब के लिए अधिकतर उपयुक्त जगह पर ग्रामीण तालाब खुदवाने की तुलना में धान की खेती करना ज्यादा पसंद करते हैं. यही वजह है कि पूर्व की योजना से या मनरेगा से बने छोटे-छोटे तालाब जहां-तहां बना दिये गये हैं. इससे इन तालाबों में जल संचय नहीं होता है़  मनरेगा का तालाब असफल होने के पीछे उसका सही खुदाई नहीं होना भी है़  श्री सिंह के  मुताबिक मनरेगा में मशीन का प्रयोग वजिर्त है़  ऐसे में जल संचय के उद्देश्य से बनाये जाने वाले तालाब में मजदूर दूर तक मिट्टी नहीं फेंक पाते हैं. तालाब की गहराई सही नहीं होती है़  उनके मुताबिक मनरेगा के तालाब में ट्रेक्टर का प्रयोग करने से इसकी खुदाई सही हो सकती है़

इस तालाब में रहता है साल भर पानी
सहाय्य जलाशय योजना के तहत 70 हजार की लागत से ही बने कई तालाब ऐसे भी हैं जिसमें सालोंभर पानी रहता है.  इसी में शामिल है सरैयाहाट प्रखंड के दिग्घी ग्राम पंचायत अंतर्गत भलुआ गांव का तालाब़  इस गांव में मनोज मंडल की जमीन पर बने तालाब की गहराई 10 फीट से अधिक है़  वर्तमान में 10 फीट तक पानी भी है़  इस तालाब में सालोंभर पानी रहता है़  इस तालाब के बारे में ग्रामीण गोपाल मंडल बताते हैं कि उनके गांव में ऐसा एक भी तालाब नहीं था जिसमें सालोंभर पानी रहता हो.  इससे ग्रामीणों को कई समस्याओं से जूझना पड़ता था.

खास कर शादी एवं श्रद्घ के अवसर पऱ  श्रद्घ कार्यक्रम में घाट पर जाने की  प्रथा है. यह नहीं हो पाता था. लेकिन, यह तालाब बनने से सभी समस्याओं का समाधान हो गया. गरमी में मवेशियों को भी पानी के लिए नहीं भटकना पड़ता है.  सहाय्य जलाशय योजना के अधिकतर तालाब फेल हो गये फिर आपका कैसे सफल हुआ़  इस बारे में मनोज मंडल बताते हैं कि जिस जगह पर तालाब बना है, वहां पर पहले धान का खेत था.  लेकिन, धान की फसल नहीं होती थी.  सालोंभर पानी का रिसाव होने से धान का पौधा सड़ जाता था. 

उक्त योजना जब आयी तो तालाब खुदवा लिया और अब यह तालाब सफल है.  पानी कभी नहीं सूखता है. वर्तमान में 10 फीट से अधिक पानी है.  खुदाई कैसे हुई इस बारे में वे स्पष्ट कहते हैं कि जेसीबी मशीन ने खुदाई में 32 घंटे का समय लिया था.  चार-पांच हजार रुपये घर से लगाना पड़ा था.  इस तरह यह प्रमाणित है कि सुखाड़ से निबटने के लिए बनाये गये तालाब इसलिए फेल हो गये, क्योंकि उसमें सही स्थल का चयन नहीं किया गया. खुदाई के सही मानकों का पालन नहीं किया गया.