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आबादी बढ़ी, सिमटता गया योजनाओं का दायरा

सीकर. सीकर जिले की आबादी हर साल दो लाख 67 हजार तो बढ़ रही है, लेकिन बढ़ती आबादी के बीच जिन बुनियादी सुविधाओं की जरूरत हैं, वो आज भी नहीं मिल पाई है। बात चाहे सड़क की हो, पेयजल निकासी की या फिर पार्किग व स्ट्रीटलाइट की।

यह स्थिति हमें इसलिए भी सोचने पर मजबूर कर रही है कि हर जेब में मोबाइल, घरों में टीवी, फ्रिज और वाहन की सुविधा लगातार बढ़ रही है, लेकिन मुलभूत सुविधाओं की पहुंच दस साल में भी कुछ खास नहीं है। बढ़ते शहर के दायरे को सरकार अभी तक कागजों में पुराने दायरे के हिसाब से ही मान रही है। इसका सबसे बड़ा नुकसान यही है कि योजनाएं सिर्फ सीमित दायरे को रखकर ही बनाई जा रही है। जबकि शहर का दायरा बढ़ती आबादी के बीच लगातार बढ़ रहा है। दैनिक भास्कर ने एक्सपर्ट्स से बात कर कुछ पहलुओं पर फोकस किया।

कॉलोनियों में पार्क तक नहीं: आबादी और उसके हिसाब से कॉलोनियां तो बढ़ रही है, लेकिन लोगों के लिए कुछ पल सुकून के बिताने के लिए पार्क की सुविधा तक नहीं है। साल में अकेले सीकर शहर में 15 से अधिक कॉलोनियों पर काम होता है, लेकिन पार्क की व्यवस्था एक में भी नहीं की जाती। शहर में दस पार्क हैं, जिनकी देखभाल तक नगर परिषद की तरफ से नहीं की जा रही है। हालात यह है कि हाउसिंग बोर्ड के लोग सालों से पार्क के विकास की मांग उठा रहे हैं, लेकिन आज तक दो कदम भी आगे नहीं बढ़ सके हैं। नियमों की बात करें तो कॉलोनी का 60 फीसदी एरिया कवर और 40 फीसदी एरिया खुला होना चाहिए। जिसमें सड़क, पार्क व पार्किग की सुविधा आती है। मगर ऐसा कुछ भी नजर नहीं आता।

नए एरिया बनें, लेकिन सड़क नहीं: आबादी बढ़ने का नुकसान नए डवलप हो रहे एरिया के लोगों को उठाना पड़ रहा है। स्थिति यह है कि पार्क व पार्किग जैसी सुविधा को छोड़ दे तो यहां के लोग पानी व सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं से महरूम है। फिलहाल पुराने शहर का 200 किमी का दायरा ही सड़कों से जुड़ा है। यहां भी टूटी सड़कें परेशानी का सबब है। जबकि पिपराली रोड, नवलगढ़ रोड, फतेहपुर रोड, जयपुर रोड व सावली रोड इलाकों में बसी नई कॉलोनियों तक पहुंचने के लिए सड़कें अभी भी नहीं बन पाई है।

40 फीसदी इलाके को ही सीवरेज: शहर के 40 फीसदी एरिया को ही सीवरेज से जोड़ा गया है। जबकि पुराने शहर का 60 फीसदी एरिया ही अभी तक सीवरेज प्लान में नहीं है तो नए डवलप एरिया में सीवरेज की बात सोचने में अभी अगली जनगणना का इंतजार करना पड़ेगा। जानकारों की मानें तो नए एरिया कृषि भूमि पर बसाए जा रहे हैं। जबकि नगर परिषद से ज्यादातर इलाकों की स्वीकृति ही नहीं है।

पानी निकासी तक नहीं: आबादी और सुख सुविधाओं में इजाफा चौंकाने वाला है, लेकिन घरों के बाहर गंदे पानी के तालाब आज भी विकास की असली तस्वीर पेश कर रहे हैं। दस सालों में आम व्यक्ति के पास मोबाइल, टीवी और डिश की सुविधा तो पहुंची है, लेकिन पानी निकासी की व्यवस्था आज भी जस की तस है। ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि हम क्या विकास की राह पर चल रहे हैं।

सोचने पर मजबूर करता सवाल: हर जेब में मोबाइल, घर में एसी, फ्रीज, कलर टीवी और डिश की पहुंच। लेकिन, घर के बाहर सड़क, पार्किग, पार्क, स्ट्रीट लाइट और पानी निकासी की समस्या। आखिर क्यों? इसके लिए जिम्मेदार कौन है? क्या बढ़ती आबादी या फिर सरकार जो सिर्फ बड़ी योजनाएं बनाती है, या फिर मुलभूत सुविधा के लिए वो ज्यादा फोकस नहीं करती। उत्तर जो भी हो, हमें आबादी की रफ्तार पर ब्रेक लगाना होगा ही और घर के साथ—साथ गली-मोहल्ले के विकास के लिए भी कदम आगे बढ़ने होंगे।

हर साल 25 हजार नए वाहन: जिले में हर साल ढाई लाख से अधिक की आबादी बढ़ती है और उसके हिसाब से 25 हजार नए वाहन आरटीओ कार्यालय में पंजीकृत होते हैं, लेकिन लगातार बढ़ते जाम की स्थिति और पार्किग व्यवस्था नहीं होने से आने वाले भविष्य पर सवाल खड़े होते नजर आ रहे हैं। तंग बाजारों को अगर हम पार्किग व्यवस्था से छोड़ भी दे तो नई कॉलोनियों में भी पार्किग बड़ा संकट बनकर उभर रहा है। फिलवक्त जिले में डेढ़ लाख वाहन पंजीकृत हैं और हालात की संजीदगी कल्याण सर्किल, डिपो तिराहा इलाके को देखकर सोची जा सकती है। इन दस सालों में भी सरकार बाजार में पार्किग की व्यवस्था सुनिश्चित नहीं कर पाई है।