Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/आरक्षण-का-आधार-संपादकीयजनसत्ता-8067.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | आरक्षण का आधार- संपादकीय(जनसत्ता) | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

आरक्षण का आधार- संपादकीय(जनसत्ता)

सर्वोच्च न्यायालय ने जाट समुदाय को केंद्रीय सेवाओं और शैक्षणिक संस्थानों में पिछड़े वर्ग के तहत दिए गए आरक्षण की अधिसूचना रद्द कर दी। न्यायालय का यह फैसला राजनीतिक दलों के लिए एक सबक है, जो सियासी गरज से आरक्षण की नई-नई मांगों को हवा देते रहते हैं। इस क्रम में वे कई बार यह देखना भी गवारा नहीं करते कि कोई समुदाय आरक्षण का हकदार है या नहीं। जाटों को ओबीसी की केंद्रीय सूची में रखने के यूपीए सरकार के फैसले के राजनीतिक कोण को इसी से समझा जा सकता है कि इसकी अधिसूचना उसने लोकसभा चुनाव की घोषणा से महज एक दिन पहले जारी की थी। इस पर तमाम समाजविज्ञानी और कानूनविद हैरत में पड़ गए। इसलिए कि इस संबंध में तत्कालीन सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की राय नहीं ली थी। जबकि सर्वोच्च न्यायालय यह हिदायत दे चुका था कि ओबीसी सूची में किसी नए लाभार्थी समुदाय को दाखिल करने के लिए आयोग की सहमति जरूरी है।

सितंबर 1992 में ही आयोग ने कह दिया था कि जाटों को ओबीसी की श्रेणी में शामिल नहीं किया जा सकता। यानी यूपीए सरकार को यह अंदाजा था कि आयोग से अगर पूछा गया तो उसका क्या मत होगा। इसलिए जान-बूझ कर उसकी अनदेखी की गई। पर हासिल क्या हुआ? चुनाव में यूपीए को निराशा मिली। दूसरी तरफ, जाटों को ओबीसी की श्रेणी में रखने का उसका निर्णय न्यायिक समीक्षा में टिक नहीं पाया। यूपीए सरकार के इस फैसले का समर्थन तब राजग ने भी किया था। उसका भी कहना था कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की राय को मानना सरकार के लिए जरूरी नहीं है।

जाहिर है, वोटों को साधने की कवायद में कोई किसी से पीछे नहीं रहना चाहता। लेकिन सर्वोच्च अदालत ने उन्हें अहसास कराया है कि आरक्षण मनमाने ढंग से तय नहीं किया जा सकता। इसी के साथ अदालत ने कुछ नए मापदंड भी सुझाए हैं। उसने माना है कि भारतीय समाज में खासकर हिंदुओं में पिछड़ेपन का एक प्रमुख कारक जाति है, पर इसे एकमात्र आधार नहीं बनाया जाना चाहिए। पिछड़ेपन की कुछ और भी कसौटियां होनी चाहिए। दूसरे, पिछड़ेपन का पैमाना केवल अतीत में हुआ अन्याय नहीं हो सकता। आरक्षण का निर्धारण इस बात से होना चाहिए कि मौजूदा वक्त में किसी समुदाय की स्थिति कैसी है। इसलिए पुराने आंकड़ों को नहीं, नए प्रामाणिक सर्वेक्षणों का सहारा लिया जाए। किन्नरों को आरक्षण का लाभ देने के अपने निर्णय का उदाहरण देते हुए अदालत ने कहा कि ऐसे वंचित समूहों की पहचान की जा सकती है, जो वास्तव में विशेष अवसर की सुविधा के हकदार हैं, पर उन्हें यह हक नहीं मिल रहा है।

अदालत ने सवाल उठाया है कि ओबीसी की सूची में लाभार्थी समुदायों की संख्या जरूर बढ़ी है, पर किसी को उससे बाहर क्यों नहीं किया गया है? क्या सूची में शामिल समुदायों में से कोई पिछड़ेपन से बाहर नहीं आ सका है? फिर, ओबीसी आरक्षण शुरू होने के समय से अब तक देश में हुई प्रगति के बारे में हम क्या कहेंगे? मगर राजनीति का खेल ऐसा है कि आरक्षण का लाभ पा रहे बेहतर स्थिति वाले किसी समुदाय को उससे बाहर करने की बात कभी नहीं उठती, अलबत्ता दूसरे उनसे भी बीस पड़ने वाले लोग आरक्षण के दावेदार बना दिए जाते हैं। इस तरह आरक्षण वंचित समुदायों के सशक्तीकरण का जरिया बनने के बजाय आरक्षित सूची की ताकतवर जातियों के बीच लाभ हड़पने की होड़ का मैदान बन जाता है। जाटों को केंद्रीय सेवाओं में ओबीसी-आरक्षण सर्वोच्च अदालत ने खारिज कर दिया है, पर आरक्षण की कई विसंगतियां बनी हुई हैं। उन्हें दूर किया जा सकता है, बशर्ते सरकारें और राजनीतिक दल उन मापदंडों को गंभीरता से लें, जो अदालत ने अपने फैसले में सुझाए हैं।