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आरटीआई की वजह से गई 39 जानें, 275 हुए प्रताड़ि‍त

नई दिल्‍ली। सूचना के अधिकार को कानून बने 10 साल हो चुके हैं। इस एक दशक में लोगों ने इस कानून का लाभ उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। सूचना के अधिकार से जहां लोगों की पहुंच, सरकारी दफ्तरों की तथाकथित गोपनीयता के बीच पहुंची है, वहीं तीन दर्जन से ज्‍यादा लोगों ने इसकी वजह से अपनी जान भी गंवाई है।

पूरे देश में आरटीआई का इस्‍तेमाल करने वाले लोगों में से 39 को मौत के घाट उतारा जा चुका है। ये वो लोग थे, जिनके द्वारा मांगी गई सूचना से 'किसी न किसी' को आपत्ति थी। या यूं कहें कि इन लोगों को जानकारी मिलती तो न जाने कितनों की पोल खुल जाती।

इस साल के शुरुआती 5 महीनों तक मौत के घाट उतारे जा चुके आरटीआई एक्टिविस्‍ट्स की संख्‍या 38 थी। लेकिन पिछले महीने जून में उत्‍तर प्रदेश के बहराइच जिले में आरटीआई एक्टिविस्‍ट गुरु प्रसाद शुक्‍ला की पीट-पीटकर हत्‍या कर दी गई। उन्‍होंने अपने गांव में मनरेगा योजना के तहत हुए कार्यों और भुगतान की गई राशि की जानकारी जो मांग ली थी। इस मौत के साथ मरने वालों की संख्‍या 39 तक पहुंच गई है।

इतना ही नहीं पूरे देश में 275 ऐसे लोग भी हैं, जिन्‍हें केवल इसलिए प्रताड़ि‍त किया गया, क्‍योंकि उन्‍होंने आरटीआई के तहत ऐसी जानकारियां मांगी थीं, जिससे किसी की पोल खुल सकती थी।

कानून की कमजोरी

हमारे देश में आरटीआई का इस्‍तेमाल करने वाले आवेदक की सुरक्षा या उसकी पहचान गोपनीय बनाए रखने का कोई प्रावधान नहीं है। यदि कोई आवेदक आरटीआई के तहत किसी जानकारी की मांग करता है, और उस आवेदन से किसी का हित प्रभावित होता है, तो वह आवेदक को हानि पहुंचा सकता है।

गौरतलब है कि सिविल सोसायटी के दबाव में यूपीए सरकार ने सूचना के अधिकार को कानून तो बना दिया, लेकिन व्हिसलब्‍लोअर की सुरक्षा का कोई प्रावधान नहीं किया। मौजूदा एनडीए सरकार ने भी इस मुद्दे को संसद की समिति के समक्ष लंबित रखा है।

कानून बना मजाक

वर्ष 2011 में बिहार में 54 वर्षीय राम विलास सिंह नाम के शख्‍स की गोली मारकर हत्‍या कर दी गई। सिंह ने एक आरटीआई के जरिए पुलिस से पूछा था कि हत्‍या के एक आरोपी को पुलिस क्‍यों नहीं पकड़ रही है। उसे आवेदन वापस लेने के लिए धमकियां मिलती रहीं और ऐसा न करने पर उसकी हत्‍या कर दी गई। इस मामले में राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बिहार पुलिस से जवाब तलब किया था।

ऐसा ही एक मामला झारखंड के नियामत अंसारी का भी था। उन्‍होंने आरटीआई के जरिए प्रदेश में मनरेगा में हुए घोटाले की जानकारी मांगी थी। गुजरात के गिर जंगलों में चल रही अवैध खदानों के बारे में अमित जेठवा ने और पुणे में जमीनों बंदरबाट पर सतीश शेट्टी ने आरटीआई से जानकारी मांगी थी। लेकिन इन तीनों को केवल मौत मिली।