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आर्थिक मोर्चे पर बढ़ती चुनौतियां - डॉ. जयंतीलाल भंडारी

इन दिनों देश कई मोर्चों पर आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें लगातार चिंता का सबब बनी हुई हैं। इसके चलते घरेलू बाजार में भी पेट्रोल-डीजल के दाम लगातार चढ़ रहे हैं और आलम यह है कि पिछले दिनों सरकार ने इस मोर्चे पर उपभोक्ताओं को राहत देने की जो पहल की थी, वह भी अब पुन: दाम चढ़ने के साथ निस्तेज होती नजर आ रही है। इसके अलावा महंगाई भी बढ़ने लगी है, जिससे उपभोक्ताओं की परेशानियों में और इजाफा हो सकता है। एक और प्रमुख चुनौती यह है कि आयात बढ़ रहे हैं और निर्यात कम हो रहे हैं, नतीजतन विदेशी मुद्रा कोष में भी कमी आ रही है। यद्यपि इन तीनों चुनौतियों का संबंध वैश्विक घटनाक्रम से है, लेकिन इनसे देश की अर्थव्यवस्था और आम आदमी भी प्रभावित हो रहा है, लिहाजा इनके समाधान के लिए सरकार की ओर से शीघ्रतापूर्वक विशेष रणनीतिक प्रयास जरूरी हैं।


सरकार ऐसा कर भी रही है। विगत सोमवार को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में तेल उत्पादक देशों के पेट्रोलियम मंत्रियों और तेल कंपनियों के प्रमुखों के साथ बैठक में कच्चे तेल की ऊंची कीमतों के चलते भारत जैसे बड़े तेल उपभोक्ता देशों की चिंताएं बढ़ने को प्रमुख तौर पर रेखांकित किया और कहा कि अगर कच्चा तेल इसी तरह महंगा होता रहा तो इससे वैश्विक विकास की रफ्तार धीमी हो जाएगी। उन्होंने तेल उत्पादक देशों से अनुरोध किया कि वे अपने निवेश योग्य अधिशेष को विकासशील देशों में निवेश करें और साथ ही भारत को तेल की बिक्री का भुगतान डॉलर की जगह रुपए में स्वीकार करें।

 

गौरतलब है कि हालिया परिदृश्य में तेल के दाम और बढ़ने की आशंकाएं जताई जा रही हैं, जिससे हालात और विकट हो सकते हैं। वाशिंगटन पोस्ट के पत्रकार और अमेरिकी नागरिक जमाल खाशोगी के लापता होने और उसकी हत्या के संदेह में ट्रंप प्रशासन द्वारा सऊदी अरब पर आरोप लगाने के बाद यदि अमेरिका सऊदी अरब के खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई करता है, तो सऊदी अरब कच्चे तेल का उत्पादन घटा सकता है। दुनिया का सबसे बड़ा तेल निर्यातक सऊदी अरब प्रतिदिन एक करोड़ बैरल तेल का उत्पादन करता है। 1973-74 में इसरायल और अरब देशों के बीच लड़ाई के दौरान सऊदी अरब ने कच्चे तेल का इस्तेमाल एक हथियार के रूप में करके पूरी दुनिया की मुश्किलें बढ़ा दी थीं। आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि यदि सऊदी अरब तेल उत्पादन घटाकर इसका निर्यात घटाता है तथा दूसरी ओर नवंबर से ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध भी लागू हो जाएंगे, ऐसे में कुछ समय में ही कच्चे तेल के दाम 150 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकते हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2008 में कच्चे तेल की कीमतें 147 डॉलर प्रति बैरल के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई थीं। तब हमारे देश को भी बढ़ी हुई तेल कीमतों के चलते काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। वर्ष 2017-18 में कच्चे तेल की प्रति बैरल औसत कीमत 55.71 डॉलर रही थी तथा एक डॉलर की कीमत 64.47 रुपए रहने पर तेल आयात पर 5.65 लाख करोड़ रुपए व्यय हुए थे। अब यदि कच्चे तेल की कीमत 150 डॉलर पर पहुंचती है और डॉलर की कीमत 74 रुपए मानी जाए तो देश का आयात बिल 17.46 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है। कच्चे तेल के इस भारीभरकम आयात बिल से देश के सरकारी खजाने पर कितना बोझ पड़ेगा और हमें कैसी-कैसी आर्थिक दिक्कतों से जूझना पड़ सकता है, यह एक बड़ी चिंता का विषय है।


कच्चे तेल की लगातार बढ़ती कीमतों से महंगाई बढ़ने की भी आशंका गहराने लगी है। पिछले एक वर्ष में तेल की कीमत रुपए के लिहाज से 70 फीसदी तक बढ़ गई है। उल्लेखनीय है कि 15 अक्टूबर को केंद्र सरकार ने महंगाई के जो आंकड़े पेश किए हैं, वे चिंताजनक रुझान का संकेत देते हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक विगत सितंबर में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई यानी मुद्रास्फीति 5.13 फीसदी रही, जबकि अगस्त में यह आंकड़ा 4.53 फीसदी था। इतना ही नहीं, पिछले महीने पेट्रोल की कीमत 17.21 फीसदी बढ़ी, जबकि डीजल के दाम में 22.18 फीसदी इजाफा हुआ।


बहरहाल, 15 अक्टूबर को नई दिल्ली में तेल निर्यातक देशों के साथ बैठक में भारत ने कच्चे तेल का बहुत बड़ा ग्राहक होने के नाते रुपए में भुगतान की जो सहूलियत मांगी है, उस दिशा में प्रयास तेज करने होंगे। वैश्विक अर्थ विशेषज्ञों का कहना है कि महंगे होते कच्चे तेल के मद्देनजर डॉलर की बढ़ती हुए चिंताओं से बचने के लिए भारत को ईरान के साथ-साथ रूस और वेनेजुएला के साथ रुपए में कारोबार की संभावनाओं को साकार करने की रणनीति पर आगे बढ़ना चाहिए। रूस को सोना व हीरा का भुगतान रुपए में करने और चीन के साथ रुपया-रेनमिनबी व्यापार के विचार पर भी आगे बढ़ा जाए। चूंकि बढ़ते आयात और घटते निर्यात के कारण विदेशी मुद्रा कोष का आकार घटकर लगभग 400 अरब डॉलर रह गया है, ऐसे में रुपए को मजबूत बनाने के लिए जहां गैरजरूरी आयात नियंत्रित किए जाने जरूरी हैं, वहीं चीन और अमेरिका सहित दुनिया के विभिन्न् बाजारों में निर्यात बढ़ाने की संभावनाओं को साकार करने की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे। दुनियाभर में भारत से खाद्य निर्यात की नई संभावनाएं भी तलाशी जाएं। वर्ष 2018 में देश में 6.8 करोड़ टन गेहूं और चावल का जो भंडार है, वह जरूरी बफर स्टॉक से करीब दोगुना है। ऐसे में खाद्यान्न् निर्यात से भी डॉलर की कमाई बढ़ाई जा सकती है।


इसी तरह प्रवासी भारतीयों से भी अधिक विदेशी मुद्रा प्राप्त करने के प्रयास किए जाने चाहिए। हालांकि इस मामले में हम पहले ही अच्छी स्थिति में हैं। विदेश में बसे प्रवासियों द्वारा स्वदेश धन भेजे जाने वाले धन (रेमिटेंस) से संबंधित विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस मामले में भारत शीर्ष पर है। वर्ष 2017 में विदेशों में बसे भारतीयों ने अपने घर-परिवार के लोगों को 69 अरब डॉलर की धनराशि भेजी, जो इससे पिछले साल यानी 2016 की तुलना में 9.9 प्रतिशत अधिक है। विदेशी मुद्रा की आवक में कमी के वर्तमान दौर में विदेशों में बसे भारतीयों को इस दिशा में प्रोत्साहित करना उपयुक्त होगा कि वे और अधिक धनराशि भेजें।