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आर्थिक संतुलन लेकिन नजर वोट पर-- कन्हैया सिंह

अर्थशास्त्र की भाषा में हम जिसे चुनावी बजट कहते हैं, वैसा यह बजट नहीं है। चुनावी बजट हम उसे कहते हैं, जिसमें सरकार तरह-तरह के मतदाताओं को तोहफे बांटते समय वित्तीय घाटे का ख्याल नहीं रखती। लेकिन इस बजट की खास बात यह है कि इसमें वित्तीय घाटे का पूरा ख्याल रखा गया और उसे एक सीमा से अधिक नहीं बढ़ने दिया गया है। अभी तक यह 3.3 फीसदी था, बजट में इसके 3.4 फीसदी तक पहुंचने का अनुमान पेश किया गया है। अगर यह 3.6 हो जाता या फिर 3.7 हो जाता, तो हम कहते कि यह चुनावी बजट है। जाहिर है, इस बजट की जो घोषणाएं हैं, वे देश की वित्तीय स्थिति को बिगाड़ने वाली नहीं हैं।

लेकिन अगर हम इसी को दूसरी तरह से देखें, तो लगता है कि सरकार ने पिछले कुछ साल से बहुत सी घोषणाएं इसी मौके के लिए रोक रखी थीं। मसलन, हर साल बजट में हम यह उम्मीद करते रहे कि सरकार मध्यवर्ग के आयकर दाताओं को कर में कुछ बड़ी राहत देगी, पचास हजार या एक लाख तो बढे़गा ही। मगर कोई बड़ी राहत कभी सामने नहीं आई। शायद योजना यह रही हो कि छोटी-छोटी राहत देने से ज्यादा बेहतर रहेगा कि एक साथ बड़ी राहत दो। और इस बार एकबारगी राहत बरस पड़ी। आयकर की सीमा बढ़ाने के अकेले फैसले का ही फायदा तीन करोड़ से ज्यादा लोगों को मिलने वाला है। ये लोग अब आयकर के जाल से बाहर हो जाएंगे। फिर सरकार ने दो एकड़ रकबे से कम जमीन की मिल्कियत वाले किसानों को जो नगदी सहायता देने की घोषणा की है, उसका फायदा सीधे तौर पर तीन करोड़ किसानों को होने वाला है। संभव है कि चुनाव से पहले ही यह रकम उनके खाते में पहुंच जाए। सिर्फ इन दोनों योजनाओं को ही जोड़ लें, तो सरकार ने15 करोड़ परिवारों को सीधा-सीधा फायदा पहुंचा दिया है। चुनाव के हिसाब से यह बहुत बड़ी संख्या है। इसके अलावा, हर क्षेत्र के मजदूरों के लिए भी कुछ न कुछ है।

आयकर को लेकर एक और महत्वपूर्ण घोषणा वित्त मंत्री ने की है। अब इसकी पूरी प्रक्रिया को कंप्यूटराइज्ड किया जा रहा है, यानी जब आप अपना आयकर रिटर्न दाखिल करेंगे, तो 24 घंटे के अंदर ही उसकी प्रॉसेसिंग भी हो जाएगी। इसके अलावा आयकर विभाग कुछ लोगों की फाइलें निकालकर उनकी आय, उनके लेन-देन की विस्तृत जांच करता है। अभी तक इस प्रक्रिया में काफी घपले होते रहे हैं और भ्रष्टाचार की गुंजाइश भी बनती रही है। लेकिन अब इसके लिए बैक ऑफिस सिस्टम काम करेगा। जिसके खाते की प्रॉसेसिंग हो रही है, उसे पता नहीं होगा कि कौन सा ऑफिसर यह काम कर रहा है। दूसरी तरफ, जो अफसर इस काम में लगा होगा, उसे पता नहीं होगा कि यह किसका खाता है?

बजट से पहले तक यह चर्चा थी कि सरकार गरीबों के लिए यूबीआई, यानी यूनिवर्सल बेसिक इनकम जैसी कोई योजना लाने जा रही है। यह इसलिए भी लग रहा था, क्योंकि कुछ ही दिनों पहले राहुल गांधी ने इसकी घोषणा भी कर दी थी, लेकिन बजट बनाते समय सरकार उस ट्रैप में नहीं आई और उसकी नगद हस्तातंरण योजना सिर्फ सीमांत किसानों तक सीमित रही। कई राज्यों में ऐसी योजनाएं चल भी रही हैं। केंद्र सरकार ने जो घोषणा की है, वह बहुत कुछ झारखंड की सीमांत किसानों के लिए बनी योजना जैसी है। अच्छी बात यह है कि इस योजना में राज्यों की कोई हिस्सेदारी नहीं होगी। यह ऐसा मामला नहीं है, जिसमें राज्य यह चुने कि वे इसमें शामिल होंगे या नहीं। इसमें उन्हें कोई वित्तीय योगदान भी नहीं करना होगा, केंद्र सरकार इसे शत-प्रतिशत अपने संसाधनों से ही करेगी। इसका एक दूसरा अर्थ यह भी है कि राज्यों की जो इस तरह की योजनाएं चल रही हैं, वे भी इसके साथ ही चलती रह सकती हैं।

वित्त मंत्री के भाषण में किसानों से संबंधित एक और बात कही गई है, जो बड़ा महत्व रखती है। इस बजट में कृषि के कर्ज को क्वांटीफाई किया गया है। यह बताया गया है कि देश का कृषि कर्ज 15 लाख करोड़ रुपये है। इतना तो हमारा बजट खर्च ही नहीं है। अब जब भी कृषि कर्जमाफी की बात होगी, तो यह आंकड़ा हमारे सामने होगा। हालांकि इससे यह नहीं जाहिर होता कि इस आंकडे़ से सरकार कहना क्या चाहती है? किसानों के कर्ज को लेकर देश में राजनीति चलती रही है, सरकार ने यह बता दिया है कि चुनौती कितनी बड़ी है।

इस बजट में रोजगार के बारे में ज्यादा कुछ कहा नहीं गया। अभी चंद रोज पहले ही कुछ आंकड़े आए थे, जो विश्वसनीय नहीं हैं और उनका खंडन भी हो गया है। लेकिन हमारे लिए चिंता की बड़ी बात यह है कि हमारे पास रोजगार के भरोसेमंद आंकडे़ हैं ही नहीं। सिर्फ भविष्य निधि कार्यालय के आंकड़े हैं, जो इसे तय करने के लिए अपने आप में पर्याप्त नहीं हैं। नीति आयोग को इस मसले पर गंभीरता से सोचना चाहिए और बेरोजगारी के प्रामाणिक आंकड़ों की कोई व्यवस्था करनी चाहिए।

वैसे इसे अंतरिम बजट कहा जा रहा है, लेकिन पूरे बजट को देखने के बाद कहीं से नहीं लगता कि यह अंतरिम बजट है। एक तरह से यह पूर्ण बजट ही है। राजस्व और खर्च वगैरह के सारे सालाना अनुमान वित्त मंत्री ने दे ही दिए हैं। पहले बजट में एक चीज होती थी, तमाम वस्तुओं और सेवाओं पर लगने वाला कर। जीएसटी लागू हो जाने के बाद अब इसकी कोई जरूरत रही नहीं। और जहां तक प्रत्यक्ष करों की बात है, तो सरकार ने इसमें कुछ छोड़ा नहीं। वित्त मंत्री ने यह तर्क जरूर दिया कि मध्यवर्ग के लोग, पेंशनधारी वगैरह इसी समय अपनी सालाना बचत योजनाएं बना लेते हैं, इसलिए इसकी घोषणाएं जरूरी हैं। जाहिर है, उन्होंने अंतरिम बजट में पूर्ण बजट वाली घोषणाएं करने का बहाना तलाश लिया।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)