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इंटरनेट पीढ़ी ही गढ़ेगी नया भविष्य-- इरा सिंघल

इतिहास में जब किसी मोड़ पर मानव सभ्यता को अपने अस्तित्व के लिए एक नई दिशा की जरूरत पड़ी, तब यह युवा पीढ़ी ही है, जिसने बदलाव का बीड़ा उठाया। बतौर युवा इंसान में दो तरह के खास गुण होते हैं। पहला, उसमें इतनी स्फूर्ति या ऊर्जा होती है कि वह कुछ नया कर दिखाए। और दूसरा, तब तक जीवन में उसे इतनी ठोकरें नहीं मिली होतीं कि वह निराश हो जाए और प्रयास करना छोड़ दे। इसका अर्थ यह है कि युवा पीढ़ी सकारात्मक ऊर्जा व सोच की धनी होती है। यही गुण उसे बदलाव का वाहक बनाता है। इन्हीं खासियतों की वजह से विश्व में जब कभी किसी क्रांति या बदलाव की जरूरत आन पड़ी, तो नौजवानों ने आगे बढ़कर मोर्चा संभाला। आज दुनिया का कोई भी देश यदि बीते कल को पीछे छोड़कर एक नई ऊर्जा के साथ अपना वर्तमान जी रहा है, तो इसका श्रेय युवा पीढ़ी को है। उसकी स्फूर्ति और कार्य करने की सदिच्छा को सही मौका मिले, तो यह पीढ़ी काफी कुछ अच्छा कर जाती है, लेकिन जब-जब इसे गलत दिशा मिली है, यह विनाशकारी साबित हुई है।


आज भारत उस मुकाम पर खड़ा है कि युवा शक्ति बीते सात दशकों या आजादी के समय के तमाम सपनों को सच करके दिखा सकती है। बस इसे सही रास्ता दिखाना होगा, वरना हम अपना सुनहरा भविष्य गंवा सकते हैं। आज युवा ताकत के मामले में हम दुनिया में सबसे आगे हैं। यह मौका हमें फिर कभी नहीं मिलेगा। लिहाजा हमें अपनी युवा शक्ति को सही राह दिखानी ही होगी। इसमें कोई दोराय नहीं है कि भारत का युवा न केवल सकारात्मक सोच रखता है, बल्कि मेहनती भी है और अनवरत काम में विश्वास करता है। सामाजिक कार्यों में भी यह बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहा है। आलम यह है कि इंजीनिर्यंरग, मेडिकल जैसे प्रोफेशनल कोर्स करने वाले युवा भी सामाजिक कार्यों के तहत स्वयंसेवक बनकर हमारे गांवों की सेवा कर रहे हैं, जो साबित करता है कि युवा पीढ़ी देश के लिए कुछ करना चाहती है।


हालांकि दो मोर्चों पर हमारी कमजोरी भी दिखती है। पहली और बड़ी कमजोरी युवाओं में मौजूद उतावलापन है। उन्हें सचमुच अनुभव कमाने और धैर्य रखने की जरूरत है। असल में, पिछले कुछ वर्षों में हमारी यह पीढ़ी ‘इंटरनेट जेनरेशन' में बदल गई है। धैर्य रखना हमारे युवा भूलते जा रहे हैं। यह समझने की जरूरत है कि किसी बड़े काम को करने के लिए लंबे वक्त की दरकार होती है। हमें अपने जीवन से उन समयों को खर्च करना होगा, तभी सफलता कदम चूमेगी। यह ठीक वैसे ही है कि यदि किसी मकान की हर मंजिल पर धैर्यपूर्वक काम नहीं किया गया, तो वह इमारत टिकाऊ नहीं बनेगी।


इंटरनेट पीढ़ी सब कुछ तेजी से करने में विश्वास रखती है, इसलिए उसका सब्र खोना हमारे देश को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है। अगर इंतजार का धैर्य नहीं होगा, तो युवा निराश हो सकते हैं और जो वे करना चाहते हैं, कतई नहीं कर पाएंगे। अगली किसी पहल की तो वे सोच भी नहीं सकते। नौजवानों में निराशा बढ़ने पर कई पीढ़ियां प्रभावित होती हैं। कई लोगों की ऊर्जा का स्रोत यही युवा ताकत होती है। लिहाजा वे यह गांठ बांध लें कि दीर्घावधि की योजना बनाने से ही सफलता टिकाऊ बन सकती है। आजादी हासिल करने में ही हमें 90 साल लग गए, जबकि सन् 1857 में ही हमने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ पहली बड़ी जंग छेड़ दी थी।


एक और तथ्य युवा भूल जाते हैं कि हमसे पहले वाली पीढ़ी के लोगों ने भी कुछ करने की कोशिश की थी। उनके प्रयासों को बेकार समझने की भूल न करें। हरसंभव उनसे सीखने का प्रयास करें। कुछ नया वे तभी कर पाएंगे, जब पुरानी गलतियों या सफलताओं को देखकर नई जगहों पर कदम रखेंगे। बड़े-बुजुर्गों की उपलब्धियों को नकारकर अपनी ऊर्जा फिर से उसी काम में खर्च करना उचित नहीं। अनुभव मूल्यवान है। नए आइडिया का सृजन तभी किया जा सकता है, जब अनुभव से सीखा जाए और उसका गहन विश्लेषण किया जाए। सीखने की मानसिकता रहने पर ही युवा कुछ नया कर सकते हैं। उन्हें अति आत्मविश्वास से बचना चाहिए। पुरानी उपलब्धियों को खुले दिल से कुबूलना और आत्मसात करना चाहिए।


अगर ऐसा संभव हो सका, तो निश्चय ही हमारी नई पीढ़ी काफी कुछ नया कर सकती है। कई नई उपलब्धियां अपने खाते में जोड़ सकती है। युवाओं के पास ऊर्जा है, सकारात्मक सोच है और इतनी इच्छाशक्ति है कि वे देश को नई ऊंचाई पर ले जा सकते हैं। आज ऐसे-ऐसे स्कूली प्रोजेक्ट दिख रहे हैं, जो बड़े-बड़े वैज्ञानिकों को भी दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर कर देते हैं। जाहिर है, हमारे यहां प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। जरूरत है, तो उसे दिशा देने और उसका नजरिया दुरुस्त रखने की।


आवश्यकता भारतीयता की पहचान को अपनाने की भी है। नहीं भूलना चाहिए कि हम सब भारतीय हैं और ताउम्र हमारी पहचान भारत से ही जुड़ी रहेगी। एक उदाहरण साझा करती हूं। दक्षिण प्रशांत महासागर में एक देश है फिजी। यहां 200-300 साल पहले भारतीय गए थे। मगर आज भी वहां उन्हें ‘इंडियन' कहकर पुकारा जाता है। भारतीयता की उनकी पहचान खत्म नहीं हो सकी है। युवा पीढ़ी भी इस पहचान से बच नहीं सकती। उसके वजूद से यह जुड़ा है। इसीलिए इस पहचान को गर्व से जोड़ने की कोशिश करें। इसे नया स्वरूप मिलना चाहिए। हमारी पुुरानी पीढ़ी ऐसा कर चुकी है। तभी आज दुनिया भर में भारत को सम्मान की नजरों से देखा जाता है। आज के युवाओं को इसे और बेहतर बनाना होगा। उन्हें यह समझना होगा कि भारतीयता हमारी सभ्यता, हमारा मूल्य है। इसे अच्छा या बुरा बनाना हमारे हाथों में ही है। राष्ट्रीय युवा दिवस के मौके पर हम तमाम युवा आज यह संकल्प ले सकते हैं।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)