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इनके लिए क्या: दूसरों के घर रोशन करने वालों की जिंदगी में अंधेरा

सासाराम। वैदिक काल से लेकर अब तक दीया और बाती की परंपरा को कायम रखने वाले कुम्हारों के हाथ भले ही दूसरों के घर रौशन कर दे, मगर उनकी जिंदगी तंगहाली की चाक पर नाच रही है। बदलते समय में कसीदाकारी में दक्ष हाथों की लकीरों को ऐसी धुंधली कर दी है कि अब इनके लिए दो जून का रोटी भी भारी पड़ने लगा है। महंगी होती केरोसिन तेल के कारण मोमबत्ती व इलेक्ट्रिक उपकरणों के प्रयोग की नई परंपरा ने इनके हाथों बने दीपों की खूबसूरती और पवित्रता को धूमिल कर दिया। तभी तो सासाराम के गौरक्षणी में रहने वाले अनिरुद्ध कुम्हार ने अपनी पुस्तैनी चाक को खड़ी कर मिट्टी के बर्तन बनाने वाले धंधे को अलविदा कह दिया। यही नहीं बदले में उसने आटा-चक्की मिल लगा ली। अब उसका परिवार हंसी-खुशी दो जून की रोटी जुटा लेता है।


ग्रामीण क्षेत्रों में भी मोमबत्ती और इलेक्ट्रिक उपकरणों के बढ़ते प्रचलन में इस परंपरा को समाप्त करने में कोई कसर नहीं उठा रखा। गम्हरिया का प्रवेश प्रजापति पुस्तैनी धंधा छोड़कर सासाराम में खाने-पीने का होटल खोल दिया। ऐसे असंख्य कुम्हार जाति के नौजवान हैं जो बदलते समय चक्र के बीच अपने पुस्तैनी धंधे को त्यागकर दूसरे धंधे को अपनाने लगे हैं। आने वाले दिनों में मिट्टी के बने बर्तनों और दीया अब सपने सरीखे हो जाएंगे। ना उनसे निकलने वाली सोंधी महक ही मिलेगी और न ही उनकी पवित्रता का आभास होगा।


प्रशासन उदासीन


जिले में कुम्हार जाति के पुश्तैनी धंधे को बचाने के लिए अब तक कोई प्रोत्साहन योजना नहीं बनाई गई जिसके कारण आदि-काल की यह कसीदाकारी समाह्रश्वत होने की स्थिति में है। जब इस संदर्भ में जिलाधिकारी अनुपम कुमार से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि अन्य योजनाओं के तहत कुम्हार जाति को प्राथमिकता के आधार पर रोजगार मुहैया कराया जाता है। अभी तक सरकार की तरफ से ऐसा कोई निर्देश नहीं आया जिससे कोई विशेष प्रोत्साहन दिया जा सके। उन्होंने कहा कि हालांकि बैंक प्रबंधकों को निर्देश दिया गया है कि कुटीर उद्योग से जुड़े आवेदकों को ऋण मुहैया कराया जाए।