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इनसे एक बार का लिया कर्ज़ पुश्तें चुकाती हैं

आप सभी से एक सवाल है, अगर आपने कभी किसी से 5,000-10,000 रुपए का कर्ज लिया है तो उसे चुकाने में आपको कितना वक़्त लगता है?

इस सवाल का जबाब आपकी आमदनी के अनुसार अलग-अलग हो सकता है। लेकिन बिहार के गया जिले के फेंकू के लिए इस कर्ज का दर्द 30 साल का है।

फेंकू माझी (46 वर्ष) को ठीक से याद नहीं है कि उनके परिवार ने ठेकेदार से 30 साल पहले कितने रुपए का कर्ज लिया था। पर फेंकू को लगता है कि जब वह 15-16 साल के होंगे तब उनके परिवार ने ठेकेदार से लगभग 5,000-10,000 रुपए का ही कर्ज लिया होगा। तबसे फेंकू इस कर्ज की गिरफ्त में है। इस कर्ज को फेंकू ने काम करते हुए चुका दिया था लेकिन जरूरत पड़ने पर ठेकेदार से दोबारा कर्ज ले लिया। तभी से फेंकू की जिंदगी की कहानी इस कर्ज में उलझ गयी है। इस कर्ज का मकड़मजाल ही कुछ ऐसा है जो एक बार इसमें फंस गया उसके लिए बाहर निकलना बहुत मुश्किल होता है।

मौजूदा वक्त में कानपुर में 240 भट्टे हैं। एक भट्टे पर 50-100 परिवार काम करते हैं। इस हिसाब से एक भट्टे पर लगभग 200-250 लोग रहते हैं। ये मजदूर अलग-अलग राज्यों जैसे बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, असम, यूपी-एमपी (बुन्देलखण्ड) से हैं। इनमें से 90 फीसदी मजदूर बिहार के मुसहर समुदाय से होते हैं।

"तीस साल से बंधुआ मजदूरी कर रहे हैं। अगर हमने गलती से भी ठेकेदार से एक बार कर्ज ले लिया तो उस कर्ज से बाहर निकलना हमारे लिए आसान नहीं है। चाहते हैं कि कर्ज जल्दी खत्म करें, तभी 12-15 साल के अपने बच्चों को भी काम पर ले आते हैं।" यह बताते हुए फेंकू (46 वर्ष) के चेहरे पर उदासी और मजबूरी साफ़ दिख रही थी, "हमारे बच्चों का बचपन इन्हीं चिमनियों के धुएं में खत्म हो जाता है। कई बार मजबूरी में इन बच्चों पर भी 10,000-12,000 रुपए का कर्ज ले लेते हैं।"

चौबेपुर के दो तीन ईंट भट्टों पर जब हमने कई परिवारों से बात की तो हमें पता चला कि ठेकेदार एक परिवार को 30,000-40,000 रुपए का कर्ज दे देते हैं। ये कर्ज की राशि ये परिवार उस समय लेते हैं जब जून से अक्टूबर तक बिहार में होते हैं। भूमिहीन होने की वजह से खेतों में भी कोई काम नहीं होता। रोजगार मिलता नहीं है। इस दौरान खर्चा कैसे चले इसलिए ठेकेदार से यह कर्ज मजबूरी में ले लेते हैं। इसी बीच अगर कोई बीमार पड़ गया या लड़की की शादी करनी है तो भी इन्हें ठेकेदार से कर्ज लेना पड़ता है।

कानपुर मंडल के अपर श्रमायुक्त एस पी शुक्ल गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "अगर हमें ऐसी कोई शिकायत मिलती हैं तो हम तुरंत कार्रवाई करते हैं। मजदूरों को रिलीज करवाते हैं, उन्हें तुरंत 20,000 रुपए देते हैं। उनके पुनर्वास के लिए लगभग एक लाख रुपए की राशि देते हैं।"

जब हमने उनसे पूछा क्या यह बंधुआ मजदूरी वाला मामला आपके संज्ञान में है इस पर एस पी शुक्ल बोले, "यह मामला हमारे संज्ञान में नहीं है। आप मजदूरों से कहिए वो हमें लिखित शिकायत दें हम 100 प्रतिशत उस पर कार्रवाई करेंगे।"

ये मजदूर श्रम विभाग में लिखित रूप से शिकायत क्यों नहीं करते जब हमने यह जानने के लिए लक्ष्मीकांत शुक्ल से बात की जो 20 वर्षों से इन मजदूरों के साथ काम कर रहे हैं इस पर वह बोले, "ये ठेकेदार अपने क्षेत्र के रंगदार (दबंग) होते हैं। अगर किसी मजदूर ने इनके खिलाफ लिखित शिकायत दे दी तो यह इनकी वहां क्या दुर्दशा करेंगे यह बात मजदूर अच्छे से जानते हैं। यह उनके साथ मारपीट करेंगे, उन्हें 10-10 दिन घर में बंद रखेंगे। इसी वजह से ये वर्षों से खामोश हैं।"
 
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