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इस अस्‍पताल में मरीज ही कर रहे खुद का इलाज

मुंबई। वडाला स्थित मुंबई के एकमात्र कुष्‍ठरोग अस्‍पताल में मरीज ही खुद का इलाज करने को मजबूर हैं। यह अक्‍वर्थ म्‍यूनिसिपल हॉस्पिटल फॉर लेप्रसी बीएमसी(वृहन मुंबई महानगर पालिका) द्वारा संचालित किया जा रहा है। डॉक्‍टरों द्वारा पर्याप्‍त ध्‍यान न दिए जाने से यह बदहाली की कगार पर पहुंच गया है।

यहां समाज से बाहर किए गए कुष्‍ठ रोगी और कुछ अपने परिवार के साथ इलाज के लिए आए थे। लेकिन अब वे खुद ही अस्‍पताल के फर्श और टायलेट साफ करने के साथ अपना इलाज और साथी मरीजों का भी इलाज करते हैं।

आरोप तो यह भी लग रहे हैं कि इस तरह का मामला पिछले एक दशक से चल रहा है। इसका खामियाजा एक मरीज को अपना हाथ गंवाकर भी देना पड़ा है। डॉक्‍टरों ने उस पर जरा भी ध्‍यान नहीं दिया, जबकि उसकी हड्डी भी बाहर दिखने लगी थी। अस्‍पताल में एक मरीज ने बताया कि यहां कोई डॉक्‍टर और प्रोफेशनल ड्रेसर भी नहीं जो मरीज की मरहम-पट्टी कर दे।

जख्‍मों पर नमक

अस्‍पताल में ज्‍यादातर मरीजों को उनके परिजन इलाज के लिए लाए थे और उन्‍हें यहीं छोड़कर चले गए। कुछ तो यहां करीब एक दशक पहले इलाज के लिए आए थे और अब भी यही हैं। इनके परिवार में से किसी ने उनका हाल जानने की कोशिश नहीं की। अस्‍पताल में मरीजों की देखभाल के लिए कोई भी नहीं है ताकि वह साल में कम से कम एक बार तो खुशी के पल जी सकें।

डॉक्‍टरों और प्रोफेशनल ड्रेसर के इस अस्‍पताल से दूर होने के पीछे जो कारण निकलकर आया है उसमें कुष्‍ठरोग को लेकर समाज में फैली भ्रांतियां और कलंक जैसी बात भी शामिल है। अक्‍वर्थ म्‍यूनिसिपल हॉस्पिटल फॉर लेप्रसी के आरएमओ(रेसिडेंट मेडिकल ऑफिसर) अविनाश खाड़े ने बताया कि हम कुछ-कुछ समय बाद विज्ञापन भी देते हैं, लेकिन इसका कोई खास रिस्‍पांस नहीं मिलता। उनका कहना है कि इस बीमारी से लेकर कुछ सामाजिक भ्रांतियां फैली है जो लोगों को आवेदन करने से रोकती है।

अस्‍पताल के एक कर्मचारी ने बताया कि यहां कुछ ही डॉक्‍टर, नर्स और वॉर्ड बॉय काम करते हैं। इनमें से ज्‍यादातर अपने आस-पास मरीजों को देखकर अच्‍छा महसूस नहीं करते और हमेशा ट्रांसफर के प्रयास करते हैं। यहीं कारण है कि 3-4 डॉक्‍टर और एक वार्ड बॉय दोपहर करीब 3.30 अस्‍पताल से चले जाते हैं।

वार्ड बॉय और नर्सों के पास अस्‍पताल में मरीजों की मरहम-पट्टी का काम है, लेकिन यहां का अकेला वार्ड बॉय भी इससे इनकार करता है। ऐसे में मरहम-पट्टी की जिम्‍मेदारी भी मरीजों या उनके परिजनों पर आ जाती है।