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ईमानदार और गरीबों के हमदर्द के रूप में जाने जाते हैं जस्टिस आरए मेहता

नई दिल्ली। गुजरात हाईकोर्ट में 14 वर्षो तक अपनी सेवाएं देने के बाद पद से रिटायर हुए जस्टिस आरए मेहता राज्य के लोकायुक्त पद को अस्वीकार कर देने के बाद से सुर्खियों में हैं। उनकी छवि एक ईमानदार और गरीबों के हमदर्द के रूप में है। गुजरात की राज्यपाल कमला बेनीबाल ने अगस्त 2011 में जस्टिस आरए मेहता को राज्य का लोकायुक्त नियुक्त किया था। लेकिन इसके बाद हुई खींचतान से नाराज होकर जस्टिस मेहता ने इस पद को ठुकरा दिया।

आरए मेहता को वर्ष 1983 में गुजरात हाईकोर्ट का जज नियुक्त किया गया था। जस्टिस मेहता को राज्य में दिए गए कई बडे़ निर्णयों के लिए भी जाना जाता है।

इसमें गोलाना हत्याकांड, स्ट्रीट हॉकर्स मामले में बड़ा निर्णय देने के लिए, सरकार और पुलिस को कई गाइड लाइंस देना भी शामिल हैं। गुजरात हाईकोर्ट को कंप्यूटराइज्ड करने में भी जस्टिस मेहता का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वर्ष 1979 में उन्हें मोरवी बांध टूटने से मची तबाही की जांच के लिए बनाए गए कमीशन का सदस्य बनाया गया था। इस बांध के टूटने से मची तबाही में करीब 25 हजार लोगों की जान चली गई थी।

अगस्त 2011 में जस्टिस आरए मेहता को गुजरात का लोकायुक्त नियुक्त किया गया। गुजरात के राज्यपाल ने इसमें मंत्रिपरिषद की राय शामिल नहीं थी। गुजरात सरकार राच्यपाल के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में गई। जहां से याचिका खारिज होने पर सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा याचिका दायर की गई। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए राच्यपाल के फैसले को सही ठहराया।

इस फैसले के खिलाफ गुजरात सरकार ने फिर उपचारात्मका याचिका [क्यूरेटिव पेटीशन] दायर की फाइल की। इसमें भी उसे कामयाबी नहीं मिली, लेकिन कोर्ट ने इस फैसले में राच्यपाल और मंत्रिपरिषद के अधिकार स्पष्ट कर दिए। साथ ही विधानसभा के संदर्भ में अधिकारों की भी व्याख्या कर दी । कानूनी राय में मद्रास हाईकोर्ट के 1963 में दिए फैसले को भी शामिल किया गया है। निष्कर्ष के रूप में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 174 दो के तहत विधानसभा के सत्रावसान के लिए मंत्रिपरिषद [काउंसिल आफ मिनिस्टर्स] की सलाह मानने के लिए बाध्य है। दो वर्ष तक चली कानूनी जंग से तंग आकर पूर्व जस्टिस आरए मेहता अब गुजरात लोकायुक्त के पद को अस्वीकार कर चुके हैं।