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ईमानदार हो पुलिस-प्रशासन-- जगमती सांगवान

देश में आये दिन जघन्य आपराधिक घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं. हरियाणा में घटी हालिया तीन घटनाएं इसकी सबूत हैं. हरियाणा के जींद में एक दलित लड़की की रेप के बाद बुरी तरह से हत्या कर दी गयी.

एक दूसरी खबर है कि पानीपत में हत्या के बाद दलित लड़की की लाश के साथ रेप हुआ. वहीं फरीदाबाद में एक लड़की का पहले अपहरण किया गया, फिर चलती कार में उसका सामूहिक बलात्कार किया गया. गौरतलब है कि रेप की घटनाओं में हरियाणा शीर्ष पर है. अब सवाल यह उठता है कि इसके क्या कारण हैं? इसके कई कारण हैं, लेकिन एक छुपा हुआ कारण महत्वपूर्ण है. और वह है- लूटो-खाओ वाली आर्थिक नीति. इस नीति के चलते ही भ्रष्टाचार की जड़ें मजबूत हुई हैं, और रोजगार का संकट उत्पन्न हुआ है. आर्थिक नीतियों के जरिये समाज में आर्थिक समानता लायी जा सकती है और यह समाज में बदलाव का कारण बन सकता है.

हमारी सरकारें रोजगार को लेकर सिर्फ राजनीति कर रही हैं, उसके अवसर नहीं बढ़ा पा रही हैं. और जाहिर है कि आर्थिक और सामाजिक नीतियों का सीधा असर हमारे समाज पर पड़ता है और वह अपने रास्ते से भटक जाता है. सरकारें और प्रशासन इसके लिए ज्यादा जिम्मेदार हैं, क्योंकि नीतियां बनाने और उनके क्रियान्वयन का अधिकार इन्हीं के पास है.

दूसरी बात यह भी है कि सरकार में मंत्री, अधिकारी, सरकारी संगठन आदि सब रेप पीड़िता को ही दोषी ठहराने लगते हैं. इससे एक तरफ पीड़िता में हताशा बढ़ता है, तो दूसरी तरफ अपराधियों के हौसले बुलंद होते हैं. यह स्थिति महिला सुरक्षा के एतबार से बहुत दुखद है और सच कहें तो एक हिंसक समाज बनाने में यह उर्वरक सरीखा है.

अगर आपको याद हो, तो 2014 के आम चुनाव में नारी सुरक्षा को लेकर भाजपा ने नारा दिया था- बहुत हुआ नारी पर वार... लेकिन आज भी महिला सुरक्षा को लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखती है. यहां तक कि महिलाओं की सुरक्षा के प्रावधान में भी कटौती कर दी गयी.

वहीं, समय-समय पर लड़कियों को लेकर नेताओं की ऐसी गलतबयानियां सामने आती रहती हैं, जो सामाजिक वातावरण में आपराधिक प्रदूषण फैलाती हैं. इससे अपराधी निरंकुश महसूस करने लगते हैं कि उनका तो कोई कुछ बिगाड़ ही नहीं सकता. यह स्थिति सिर्फ महिलाओं की सुरक्षा पर ही नहीं, बल्कि लोकतंत्र पर भी खतरा पैदा करता है, क्योंकि समाज में सबकी बराबर की हिस्सेदारी और सबको बराबर सम्मान से ही हमारा लोकतंत्र मजबूत होता है.

यहां एक तथ्य पर भी गौर करना जरूरी है. वह यह कि शारीरिक शोषण की ज्यादातर शिकार गरीब और दलित लड़कियां-महिलाएं हैं.
इनके प्रति पुलिस का रवैया बहुत ही विडंबनापूर्ण है. एक तरफ तो शोषण की घटना की सूचना मिलने के बाद भी अक्सर पुलिस नहीं हिलती और अगर रेप पीड़िता रिपोर्ट दर्ज कराने पुलिस स्टेशन पहुंच भी जाती है, तो उसकी रिपोर्ट दर्ज करने की जगह उसको ही डरा-धमका कर भगा दिया जाता है.

ज्यादातर लोग तो इस वजह से रिपोर्ट दर्ज नहीं करा पाते, क्योंकि उनकी शिकायतें सुनी ही नहीं जातीं. पुलिस प्रशासन की यही वह घोर नाकामी है, जिसके चलते ज्यादातर मामले में पीड़िताओं को न्याय नहीं मिल पाता और समाज अपना पितृसत्तात्मक और सामंती रवैया नहीं छोड़ पाता. उसकी इस घोर नाकामी के लिए उचित सजा के कुछ प्रावधान भी होने चाहिए, ताकि पुलिस प्रशासन में अपने काम के प्रति ईमानदारी आये और वह पीड़िता को न्याय दिलाने में सहायक बन सके. सरकारी तंत्र और प्रशासनिक ढांचे की जिम्मेदारी मुख्य है, और इनकी ईमानदार सक्रियता से ही अपराधियों में डर आयेगा.

देश में ‘वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर' बनाने की बातें तो हुई हैं, लेकिन ये अभी कुछ ही राज्यों में बन पाये हैं. यह सेंटर पीड़ित महिलाओं और बच्चों को तमाम तरह की कानूनी, स्वास्थ्य, प्रशासनिक आदि सहायता देने के उद्देश्य से बनाया जाता है. अगर यौन हिंसा की घटनाएं नहीं रुक रही हैं, तो कम से कम पीड़िताओं के साथ उसके बाद तो ज्यादती न होने पाये, इसके लिए ये सेंटर बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं. सरकार को इस बारे में राष्ट्रीय स्तर पर सोचना चाहिए.

देश में महिलाओं के खिलाफ होनेवाले शारीरिक अत्याचार में कमी लाने के लिए सिर्फ प्रशासनिक पहलू पर ही ध्यान देने की जरूरत नहीं है, बल्कि समाज के हर हिस्से, जैसे परिवार, शिक्षण संस्थान, पंचायतें, न्यायालय, नागरिक समाज, नेता-मंत्री, शिक्षक आदि ये सभी मिलकर ही समाज के अमानवीकरण को बढ़ने से रोक सकते हैं.

जिस तरह से कहीं-कहीं सरकारी तंत्र अपराधियों को संरक्षण देता दिखता है, उससे तो यही सवाल उठता है कि हमारी सरकारें क्या सामाजिक प्रदूषण की एजेंसी बन गयी हैं? विकास बराला का मामला हम जानते हैं कि किस तरह से उसको राजनीतिक संरक्षण मिल रहा था. वह तो जनदबाव इतना मजबूत था कि उस पर लगी हल्की धाराएं बदली गयीं.

हमें इसी तरह की सक्रियता अपनाने की जरूरत है, ताकि पीड़िताओं को न्याय मिल सके और निरंकुश अपराधियों में डर बनाया जा सके. समाज के हर स्तर पर जागरूकता और पुलिस प्रशासन एवं कानून की ईमानदार सक्रियता से महिलाओं के खिलाफ होनेवाली शारीरिक हिंसा रोकी जा सकती है.