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उनकी साख डूबी और इनकी संभावनाएं

नई दिल्ली [अंशुमान तिवारी]। दुनिया की आर्थिक तस्वीर बिगड़ते ही रोजगारों का पूरा परिदृश्य तब्दील होने लगा है। वर्ष 2011 की शुरुआत में रोजगारों का बाजार मंदी से उबरने की उम्मीदें और सूचना तकनीक, रिटेल के अलावा इंजीनियरिंग व शोध विकास जैसे क्षेत्रों में नए अवसरों की संभावना से सराबोर था। वहीं, आज सन्नाटा और आशका मुश्किलें आ जमी हैं। नौकरियों के लिए मुश्किलें तितरफा हैं। घाटे से परेशान सरकारें खर्च व रोजगार के अवसर घटा रही हैं। सरकारों की यह हमलावर मुद्रा अमेरिका व यूरोप के रोजगार बाजारों में आतंक बन गई है।

मंदी से डरी कंपनियों को देख एशिया व दक्षिण अमेरिका के उभरते बाजारों मे रोजगार चाहने वाली की सासें अटकी हुई हैं। रही बची कसर लंदन में भड़की हिंसा ने पूरी कर दी है। वित्तीय संकट की हताशा प्रवासियों और मूल निवासियों के बीच तनाव की वजह बन रही है, जबकि राजनीति इसे भड़का रही है।

मंदी से उबरने की कुछ ठोस उम्मीदों के मद्देनजर इस साल की शुरुआत में नौकरियों के बाजार का नजरिया बदलता दिख रहा था। सीएनबीएसी और करियर बिल्डर्स जैसे नामचीन जॉब आउटकलुक सर्वेक्षण रोजगार बाजार के अच्छे दौर की तरफ इशारा कर रह थे। मगर अब रोजगारों के पारंपरिक व नए सभी क्षेत्रों पर निराशा का साया है। भर्ती मैनेजरों व निवेशकों की निगाहें गुरुवार को आने वाली अमेरिका की इनीशियल क्लेम्स रिपोर्ट पर हैं। यह अमेरिका बाजार में रोजगारों की स्थिति की बताएगी। पिछली रिपोर्ट ने कुछ उम्मीद बंधाई थी, मगर अमेरिका की रेटिंग घटने के बाद बहुत कुछ बदल गया है।

रोजगारों पर सबसे बड़ा खतरा सरकारों की तरफ से आया है, जो कि रोजगारों का एकमुश्त बड़ा स्त्रोत हैं। घाटे और दमघोंट कर्ज से घिरी सरकारें खर्च घटाने पर बाध्य हैं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरून के रणनीतिक सलाहकार स्टीव हिल्टन की रोजगार विरोधी सूझ ब्रिटेन में राजनीतिक विवादों की वजह बनी है। खर्च कम करने के लिए स्टीव हिल्टन ने सरकारी रोजगार घटाने और अस्थायी श्रमिकों के लिए श्रम कानून सख्त करने की राय दी है। लंदन में भड़के दंगों के पीछे इस रणनीति को लेकर उभरी आशकाएं भी एक वजह हैं। अस्थायी नौकरियां प्रवासियों का प्रमुख आकर्षण हैं और ताजा दंगों में प्रवासियों को शामिल बताया गया है। अमेरिका में कर्ज की सीमा बढ़ाने की राजनीतिक सहमति का प्रमुख आधार खर्च में कमी है। अमेरिका में राज्यों व स्थानीय सरकारें पहले ही नौकरिया काट रही हैं।

करियर बिल्डर व सीएनबीसी ने सूचना तकनीक यानी आइटी (जॉब लिस्टिंग 45 फीसदी बढ़ी) और वित्तीय सेवाओं जैसे पारंपरिक क्षेत्रों के अलावा इंजीनियरिंग, प्रशासन, हेल्थकेयर, शोध व विकास, रिटेल व एकाउंटिंग भर्तियों के नए सरताज बताया था। मानव संसाधन मैनेजरों व भर्ती एजेंसियों के बीच हुए इन सर्वे में पाया गया कि इन्नोवेशन के कारण शोध विकास, लागत घटाने के कारण इंजीनियरिंग और प्रशासनिक पुनर्गठन के कारण प्रशासन में रोजगार बढ़ने की उम्मीद है। साथ ही नए एकाउंटिंग नियमों के कारण एकाउंटिंग और संगठित रिटेल के विस्तार के चलते रिटेल व सेल्स में रोजगार बढ़ने की उम्मीद की जा सकती है। मगर आर्थिक सुस्ती सब चौपट कर रही है।

ब्रिटेन में फैक्टरी उत्पादन गिरा है। अमेरिका में मंदी के कारण आउटसोर्सिंग राजनीतिक निशाने पर होगी। चीन व भारत जैसी बड़ी आर्थिक मशीनें धीमी पड़ गई है। मंदी से रोजगार घटने की चिंता सबसे ज्यादा एशिया, अफ्रीका व लैटिन अमेरिका के बाजारों में हैं, क्योंकि उत्पादन का प्रमुख स्त्रोत यही बाजार हैं।