Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/उपज-का-घटता-भाव-संजीव-झा-6690.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | उपज का घटता भाव- संजीव झा | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

उपज का घटता भाव- संजीव झा

एक तरफ खाद-उर्वरक के बढ़ते उपयोग के चलते कृषि पैदावार में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई, तो दूसरी तरफ तेजी से बढ़ रहे शहरीकरण ने कृषि योग्य भूमि के विस्तार को सीमित कर दिया। पिछली सदी के दौरान खाद्यान्न की मांग में खासी तेजी के बावजूद खाद्यान्न की कीमत में वास्तविक अर्थों में हर वर्ष 0.7 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई। खेती की उपज को लेकर देश के साथ-साथ दुनियाभर के आंकड़ों के आधार पर खंगालती हुई लोकेश प्रसाद आनन्द और संजीव झा की रिपोर्ट...

भारत की दो तिहाई आबादी कृषि पर आश्रित है- पिछली लगभग पूरी शताब्दी यानी 20वीं शताब्दी का यह आदर्श वाक्य अब आंकड़ों के लिहाज से मानक वाक्य नहीं रह गया है। पिछली सदी के आखिरी दो दशकों में भारतीय कृषि क्षेत्र में आमूल-चूल बदलाव देखने में आए हैं।

एक तरफ खाद-उर्वरक के बढ़ते उपयोग के चलते कृषि पैदावार में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई, तो दूसरी तरफ तेजी से बढ़ रहे शहरीकरण ने कृषि योग्य भूमि के विस्तार को सीमित कर दिया। पिछली सदी के दौरान खाद्यान्न की मांग में खासी तेजी के बावजूद खाद्यान्न की कीमत में वास्तविक अर्थों में हर वर्ष 0.7 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई। उदाहरण के लिए, वर्ष 1961 से वर्ष 2000 के दौरान खाद्यान्न की मांग में सालाना आधार पर 2.2 फीसदी की बढ़ोतरी आई।

दिलचस्प तथ्य यह है कि उस दौरान खाद्य पदार्थों के दाम में गिरावट कोई खेती योग्य भूमि का आंकड़ा बढ़ जाने की वजह से नहीं हुई।

सच तो यह है कि उस अवधि के दौरान अनाज उत्पादन के लिए कृषि योग्य भूमि में महज 0.1 फीसदी सालाना की दर से विस्तार हुआ था। दाम में गिरावट की असल वजह यह थी कि खाद-उर्वरकों और कृषि उपकरणों समेत नई तकनीकों और गतिविधियों के बढ़ते उपयोग के चलते वर्ष 1961 से वर्ष 2000 के बीच खाद्यान्न उत्पादन 2.1 फीसदी की तेज गति से बढ़ा था।

हालांकि 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के वर्षों में उपज विकास दर में गिरावट देखने में आई, जिसे आने वाले वर्षों के लिए एक बड़ा संकेत दे रही थी। एक तरफ वर्ष 1961-1970 के दौरान कृषि उपज में सालाना 3 फीसदी तक की दर से बढ़ोतरी देखी गई। लेकिन वर्ष 1990-2000 के दौरान विकास की यह दर घटकर सिर्फ 1.1 फीसदी रह गई।

जब हम कम कमाई वाले खाद्यान्नों के बदले ज्यादा कमाई वाली फसलों की खेती की मिली-जुली तसवीर देखते हैं, तो यह ज्यादा डरावनी लगती है। इसकी वजह यह है कि वर्ष 1991-2000 के दौरान सीरियल्स यानी अनाजों से हासिल कमाई में महज 0.4 फीसदी सालाना की दर से बढ़ोतरी देखी गई। कृषि पैदावार में आई इस कमी के पीछे मुख्य रूप से तीन कारण रहे हैं।

पहला यह कि विकसित देशों में कृषि पैदावार का पूरा का पूरा फोकस 'बेस्ट प्रैक्टिस' यील्ड यानी पैदावार पर सिमट गया है। इन बाजारों में कृषि के लिए नवीन तकनीकों का उपयोग एक ऐसे स्तर पर पहुंच गया है, जहां इसे और आगे नहीं ले जाया जा सकता है।

विकसित देशों में बड़ी भूमि वाले किसानों की आय अब कृषि के आधुनिकतम तकनीकों के उपयोग के बाद भी समानुपातिक रूप से बढ़ नहीं पा रही है।

दूसरी प्रमुख वजह यह है कि कृषि क्षेत्र में अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) पर निवेश की मात्रा धीरे-धीरे घट रही है। तीसरी और शायद पहले के दोनों वजहों से बड़ी वजह यह है कि विकसित देशों को छोड़कर अन्य देशों में राजनीतिक, ढांचागत और सप्लाई-चेन संबंधी दिक्कतों ने कृषि तकनीक में बेहतर गतिविधियों के विकास और विस्तार की धार कुंद कर दी है।

पिछली सदी के ये सब संकेत वर्तमान 21वीं सदी के शुरुआती दशक के लिए मुश्किल का बड़ा सबब बन गए हैं। कृषि पैदावार में हो रही कमी और बढ़ रही मांग के साथ-साथ सूखे, बाढ़ और बदलते तापमान जैसी सप्लाई से जुड़ी दुश्वारियों ने खाद्यान्न के दाम में खासी बढ़ोतरी कर दी है।

इसके अलावा नीतिगत मोर्चे पर आए बदलावों, मसलन कृषि उत्पादक देशों की सरकारों की तरफ से निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंध जैसे माहौल ने वर्तमान सदी में खाद्यान्न की कीमत में सालाना 6.1 फीसदी की दर से बढ़ोतरी की है। इसके चलते मौजूदा सदी में अब तक खाद्यान्न की कीमतें 120 फीसदी तक उछल गई हैं।

वर्ष 2012 के उत्तराद्र्ध में खाद्यान्न फसलों, खासकर मक्का और एक हद तक गेहूं और सोयाबीन के दाम में तेजी से उछाल आया।

इसकी मुख्य वजह यह थी कि उस दौरान अमेरिका के किसानों ने पिछले 56 वर्षों के सबसे बड़े सूखे का सामना किया। इसके साथ ही ऑस्ट्रेलिया, पश्चिमी व पूर्वी यूरोप, रूस और लैटिन अमेरिकी देशों में गर्म हवाओं और बाढ़ की मिली-जुली स्थितियों ने कृषि पैदावार के सामने बड़ी चुनौती पेश कर दी।

पाम ऑयल और शुगर जैसी अन्य फसलों के भाव में वर्ष 2012 के उत्तराद्र्ध में उस हिसाब से बढ़ोतरी नहीं हो सकी, क्योंकि उत्पादन स्तर और स्टॉक ऊंचे स्तर पर बने रहे। बीफ (गोमांस) के दाम में (सांकेतिक आधार पर) 117 फीसदी का उछाल देखा गया। लेकिन पोल्ट्री और पोर्क (सूअर के मांस) में इससे कम बढ़ोतरी देखी गई।दुनियाभर में किसी भी अन्य एग्री-कमोडिटी के मुकाबले मांस की खपत सबसे तेजी से बढ़ रही कमोडिटी में एक है।

इसकी हालत यह है कि एक तरफ उत्पादन लागत में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। दूसरी तरफ इस पर ट्रांसपोर्ट व कोल्ड सप्लाई चेन जैसी लागत का भी दबाव है।खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण और पशु-कल्याण से जुड़ी कठोर नीतियों के चलते भी मांस आधारित खाद्य पदार्थों के दाम में खासी बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

वर्तमान सदी की शुरुआत से ही मछलियों के दाम भी खासा बढ़े हैं। वर्ष 2009 के आंकड़ों के आधार पर दुनियाभर में जानवरों से हासिल प्रोटीन खुराक का लगभग 16 फीसदी हिस्सा मछलियों से आ रहा था। वहीं कुल प्रोटीन खुराक में मछलियों की हिस्सेदारी 6 फीसदी थी।

यूनाइटेड नेशंस फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (एफएओ) की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 1961 से वर्ष 2009 के बीच दुनियाभर में मछली उत्पादन में औसत 3.2 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। इस विकास दर के साथ इसने समान अवधि में वैश्विक जनसंख्या बढ़ोतरी दर को खासा पीछे छोड़ दिया। समान अवधि में जनसंख्या की औसत विकास दर 1.7 फीसदी सालाना रही थी।

वैश्विक आधार पर प्रति व्यक्ति मत्स्य खुराक 1960 के दशक में सिर्फ 9.9 किलोग्राम था, जो वर्ष 2009 में बढ़कर 18.4 किलोग्राम पर पहुंच गया।हालांकि मछली की बढ़ती मांग के हिसाब से आपूर्ति कर पाना एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरा है।

इसकी वजह यह है कि एक अनुमान के मुताबिक वैश्विक मत्स्य भंडार के करीब 30 फीसदी हिस्से का जरूरत से ज्यादा दोहन हो रहा है। इसके साथ ही अतिरिक्त 50 फीसदी से ज्यादा हिस्से का पूरी तरह दोहन हो चुका है। इसका नतीजा यह है कि 1980 के दशक के आखिरी वर्षों से अब तक मत्स्य उत्पादन का आंकड़ा करीब-करीब स्थिर रहा है।

 भारत में अनाज की उपज (किग्रा प्रति हेक्टेयर)
2.1% की तेज गति से बढ़ा था वर्ष 1961 से 2000 के बीच खाद्यान्न उत्पादन
2.2% की दर से वृद्धि हुई वर्ष 1961-2000 के दौरान खाद्यान्न मांग में
3% की दर से बढ़ोतरी देखी गई थी वर्ष 1961-70 के दौरान
1.1%की वृद्धि दर महज रह गई थी वर्ष 1990-2000 के दौरान