Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/उपलब्धियों-से-अधिक-चुनौती-अजय-बोस-8383.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | उपलब्धियों से अधिक चुनौती -- अजय बोस | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

उपलब्धियों से अधिक चुनौती -- अजय बोस

केंद्र की सत्ता में एक साल पूरे होने के अवसर पर भाजपा चाहे कितना भी जश्न क्यों न मनाए, वास्तविकता यह है कि उसकी परेशानी छिपाए नहीं छिप रही। अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि कॉरपोरेट हितैषी की रही है। लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद से उनकी यह छवि कमोबेश खंडित होती दिखाई देती है।

पिछले दिनों खत्म हुए बजट सत्र में उनकी कोशिशों के बावजूद ऐसा कुछ नहीं हुआ, जिससे उद्योगों को गति मिलने का प्रमाण मिलता हो। इससे विदेशी निवेशकों और अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों का धैर्य खत्म हो रहा है। दूसरी तरफ भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर सरकार की सख्ती से गरीबों और किसानों में यह संदेश गया है कि यह सरकार कॉरपोरेट हितैषी है। इसके अलावा सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा के मद में केंद्रीय बजट में भारी कटौती करके भी सरकार ने वस्तुतः यही जताया है कि उसे न तो शहरों में मुश्किलों के साथ जीवन यापन करते गरीबों की चिंता है, न गांवों के किसानों की। लेकिन ग्रामीण भारत के क्षोभ की तुलना में कॉरपोरेट असंतोष तुलनात्मक रूप से कहीं ज्यादा दिखाई देता है। कॉरपोरेट दुनिया को यह महसूस होने लगा है कि नरेंद्र मोदी केंद्र में उनका एजेंडा आगे नहीं बढ़ाएंगे। उद्योग क्षेत्र की अनेक उम्मीदें मोदी सरकार के पिछले एक साल के कार्यकाल में टूटी हैं। हताश सिर्फ कॉरपोरेट जगत ही नहीं है। सरकार के कामकाज पर भाजपा के असंतुष्ट भी अब आगे आने लगे हैं; हालांकि इनकी संख्या छिटपुट है। इसके अलावा कॉरपोरेट समर्थक मीडिया भी सरकार से अब बहुत उम्मीदें नहीं पाल रहा। यानी उदारीकरण के समर्थकों को यह लगने लगा है कि एक वर्ष में मोदी के नेतृत्व में इस सरकार ने अवसर गंवाए ही हैं।

यह कहा जा रहा है कि विगत एक साल में विदेश नीति के मोर्चे पर नरेंद्र मोदी ने बहुत काम किया है। इसे इस दौरान की गई उनकी विदेश यात्राओं के जरिये भी देखा जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में भारत की छवि अगर पहले की तुलना में बदली है, तो इसके पीछे खुद मोदी की कोशिशों का योगदान बताया जा रहा है। लेकिन आम आदमी के लिए मोदी की इन विदेश यात्राओं का बहुत महत्व नहीं। उसे लगता है कि लगातार विदेश यात्राओं से खर्च बढ़ता है, जिससे बचा जा सकता है। दूसरे इससे यह भी धारणा बनी है कि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय समस्याओं की अनदेखी कर बाहर घूमने-फिरने और अपनी छवि बनाने में ज्यादा व्यस्त हैं। राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री पर हमला बोलते हुए पिछले दिनों कहा ही कि वह दुनिया के देशों में जाने से नहीं चूके, लेकिन अपने ही देश में उन किसानों के आंसू पोंछने नहीं जा सके, जिनकी फसल बारिश और ओलावृष्टि ने खराब कर दी।

संयोग से हाल के दिनों में राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल ने भी मोदी सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाया है। राहुल गांधी अब तक संसद में अपनी सक्रियता के लिए नहीं जाने जाते थे। लेकिन इस बार बजट सत्र के दूसरे हिस्से में उन्होंने मोदी सरकार पर हमला किया और उसे सूट-बूट की सरकार बताया। भाजपा माने या न माने, लेकिन राहुल गांधी के इस हमले ने उसे इतना रक्षात्मक बना दिया है कि उसे बताना पड़ रहा है कि वह गरीब और किसानों की विरोधी नहीं, बल्कि उनके हितों की चिंता करने वाली पार्टी है। फिर इन दिनों दिल्ली के मुख्यमंत्री अपने अधिकारों के लिए जिस तरह लड़ रहे हैं, उससे भी यह धारणा बनती है कि केंद्र एक चुनी हुई सरकार को, जिसने सत्तर में से सड़सठ सीटें जीती थीं, अस्थिर करने का षड्यंत्र रच रहा है। सामान्य आदमी इस विश्लेषण में नहीं पड़ेगा कि दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग को ज्यादा अधिकार हैं या नहीं। उसे तो यही लगेगा कि लोकतंत्र में एक चुनी हुई सरकार के कामकाज में अड़ंगा लगाया जा रहा है। और मुश्किल है कि खुद भाजपा नेता इस धारणा को हवा देते हैं, जब वे कहते हैं कि केजरीवाल नौटंकी कर रहे हैं या वह एक बार फिर भागने की तैयारी कर रहे हैं।

दरअसल नरेंद्र मोदी सरकार की छवि के बारे में बहुत कुछ आगामी बिहार विधानसभा चुनाव पर निर्भर करेगा, जो इस साल के अंत में होने वाला है। ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री मोदी के व्यक्तित्व और उनकी कुछ नीतियों के कारण भाजपा को दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार मिली। अब अगर बिहार विधानसभा चुनाव में भी ऐसा ही कुछ होता है, तो नरेंद्र मोदी की छवि को गहरा धक्का लगेगा। इसी कारण भाजपा बिहार विधानसभा चुनाव को बहुत महत्वपूर्ण मान रही है।

उद्योग घरानों के बीच अपनी छवि सुधारने और ग्रामीण समूहों के बीच अपनी लोकप्रियता बरकरार रखने के लिए प्रधानमंत्री बिहार चुनाव पर सारा जोर लगा देना चाहते हैं। इसके लिए रामधारी सिंह 'दिनकर' जैसे राष्ट्रकवि का अपने हित में इस्तेमाल किया जाए, तो भी कोई हर्ज नहीं। इसका लाभ यह होगा कि भूमिहार वोट थोक में मिलेंगे। वैसे भी अब तक ज्यादातर सवर्ण ही भाजपा के वोट बैंक माने जाते रहे हैं। लेकिन पार्टी को यह नहीं भूलना चाहिए कि दिल्ली विधानसभा में बदतरीन पराजय के बाद उसके लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं। इससे यह संदेश भी जा रहा है कि शहरी गरीब और मध्यवर्ग में अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति वैसा आकर्षण नहीं है। दिल्ली में भाजपा की पराजय में दूसरे राज्यों से रोजगार के लिए आए आम लोगों ने बड़ी भूमिका निभाई थी। ऐसे में, ग्रामीण आबादी वाले बिहार जैसे राज्य में पराजय नरेंद्र मोदी के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकती है। हालांकि यह भी सच है कि बिहार में अगर वह जीतती है, तो राहत की सांस लेने के अलावा वह भविष्य की योजना भी बना सकती है। लेकिन फिलहाल उसके लिए बहुत राहत नहीं है।