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उम्मीदें बजट 2020: कम बजट और उससे भी कम खर्च बिगाड़ रही देश में शिक्षा की स्थिति

उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर के सुदूर दक्षिण में स्थित प्राथमिक विद्यालय राउतपार अपने ब्लॉक का एक मात्र अंग्रेजी माध्यम का विद्यालय है। राज्य सरकार की कायाकल्प योजना के तहत इस विद्यालय को बाहर से बहुत सजाया-संवारा गया है, लेकिन इस स्कूल के छात्र कड़कड़ाती ठंड में टाइल्स पर बिछे टाट पर बैठने को मजबूर हैं क्योंकि विद्यालय में बेंच और डेस्क नहीं हैं। विद्यालय के एक अध्यापक ने नाम ना छापने की शर्त पर गांव कनेक्शन को बताया कि सभी चीजों के लिए बजट आया लेकिन डेस्क-बेंच के लिए बजट नहीं आया, इसलिए निर्माण नहीं हो सका।

राउतपार से लगभग 400 किलोमीटर दूर बिहार के झंझारपुर ब्लॉक स्थित नरुआर गांव के प्राथमिक स्कूल का भी कमोबेश यही हाल है। इस स्कूल में भी डेस्क-बेंच जैसी स्कूल की मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। वहीं, 2019 में आई बाढ़ के दौरान इस स्कूल के भवन को भी नुकसान पहुंचा था। इसलिए अब पास में बने एक दूसरे सरकारी भवन में बच्चों की पढ़ाई चलती है। यहां पर भी ना ब्लैकबोर्ड है और ना ही बच्चों की बैठने की सुविधा। किसी तरह जस-तस गुजारा चल रहा है। स्कूल के प्रधानाचार्य जगदीश प्रसाद ने बताया कि उन्होंने इसके बारे में अधिकारियों को कई बार जानकारी दी है, लेकिन वे लोग भी बजट का अभाव बताते हुए मामले को टाल देते हैं। वहीं देश भर के आधुनिक मदरसा शिक्षकों को पिछले 50 महीनों से उनका वेतन नहीं मिल पाया है। अधिकारियों से बात करने पर पता चलता है कि केंद्र सरकार का हिस्सा नहीं आने की वजह से वेतन में देर होती है। वहीं उच्च शिक्षा में पढ़ रहे छात्र लगातार फीस बढ़ने की वजह से परेशान हैं और अलग-अलग विश्वविद्यालयों में आंदोलन चल रहा है। कुल मिलाकर यहां पर भी बजट की ही समस्या सामने आती है। देश की शिक्षा व्यवस्था बजट की भारी कमी से जूझ रहा है। उच्च शिक्षा हो या स्कूली शिक्षा, हर जगह बजट की कमी है। पिछले एक दशक के दौरान शिक्षा के क्षेत्र में खर्च देश के जीडीपी के 3 प्रतिशत से भी कम रहा है, जबकि प्रस्तावित वैश्विक मानक 6 प्रतिशत है।

2014-15 में जब मोदी सरकार ने पहली बार बजट पेश किया था तो उसमें शिक्षा क्षेत्र को 83000 करोड़ रुपए का बजट दिया गया था। बाद में इसे उसी साल घटाकर 69000 करोड़ रुपए कर दिया गया। इसके बाद शिक्षा बजट उस दर से नहीं बढ़ा, जिस तरह उसे बढ़ना चाहिए था। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान निर्मला सीतारमण ने जब जुलाई, 2019 में बजट पेश किया तो शिक्षा क्षेत्र को 94,854 करोड़ रुपए का बजट मिला, जो 2014 के बजट से महज 15.68 फीसदी अधिक है। जबकि इस दौरान कुल बजट 55 फीसदी से अधिक बढ़ा। 2014-15 में सम्पूर्ण बजट की राशि 17.95 लाख करोड़ रुपये थी जो 2019-20 में बढ़कर 27.86 लाख करोड़ हो गई।
 
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