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उम्मीदों-आशंकाओं के बीच जीएसटी-- भरत झुनझुनवाला

मोदी सरकार ने गुड्स एण्ड सर्विस टैक्स लागू करके महान उपलब्धि हासिल की है। जीएसटी के अंतर्गत व्यापार कई तरह से सुलभ हो जाएगा। अब तक उद्योगों को एक्साइज डूयूटी तथा सेल टैक्स अलग-अलग अदा करना होता था तथा इनके रिटर्न अलग-अलग दाखिल करने होते थे। इन दोनों टैक्सों का विलय जीएसटी में हो गया है। उद्यमी को अब एक ही टैक्स अदा करना होगा एवं एक ही टैक्स अधिकारी से सम्पर्क करना होगा। अन्तर्राज्यीय व्यापार आसान हो जाएगा।

 

अब तक एक राज्य से दूसरे राज्य को माल भेजने के लिए बार्डर पर सेल टैक्स फार्म जमा करना होता था। एक राज्य में अदा किए गए वैट की क्रेडिट दूसरे राज्य में नहीं मिलती थी। अब राज्यों के बीच बेरोकटोक माल का आवागमन होगा। एक राज्य में अदा किए गए जीएसटी की क्रेडिट दूसरे राज्य में ली जा सकेगी। तीसरा अंतर है कि अब तक सर्विस टैक्स (जैसे रेल यात्रा, टेलीफोन अथवा बिजली) पर अदा किए गए सर्विस टैक्स का क्रेडिट नहीं मिलता था। अब इनकी क्रेडिट ली जा सकेगी। छोटे व्यापारियों को छूट दी गई है। 20 लाख तक का कारोबार करने वाले व्यापारियों को जीएसटी के अंतर्गत पंजीकरण से मुक्त कर दिया गया है। इन क्रांतिकारी सुधारों का अर्थव्यवस्था पर सुप्रभाव पड़ेगा। हम आशा कर सकते हैं कि आने वाले समय में अर्थव्यवस्था तेजी से दौड़ेगी जैसे गाड़ी में अच्छा मोबिल आयल डालने से उसकी रफ्तार सहज ही बढ़ जाती है।

 

 


दूसरी तरफ जीएसटी में कागजों का टंटा है। जीएसटी के नियमों का अनुपालन कठिन है। जैसे व्यापारी को माल एक स्थान से दूसरे स्थान भेजने के पहले बिल काट कर जीएसटी पोर्टल पर अपलोड करना होगा। इस बिल में माल की क्वालिटी, मात्रा, क्रेता की डिटेल तथा उस वाहन की डिटेल डालनी होगी, जिससे माल भेजा जा रहा है। इसके बाद व्यापारी को ई-वे बिल बनाना होगा जैसे वर्तमान में डिलीवरी चालान होता है। वाहन को अपने साथ इसे ई-वे बिल को रखना होगा। यदि माल काे एक गाड़ी से दूसरी में पलटी किया जाता है तो ट्रक ड्राइवर को नए ट्रक की डिटेल जीएसटी पोर्टल पर अपलोड करनी होगी और पोर्टल से नया ई-वे बिल निकालना होगा। उद्योगों के लिए कागजी कार्य बहुत बढ़ जाएगा। वर्तमान में इन्हें केवल एक कागजी बिल काटना होता था जो कि पर्याप्त होता था। अब इसमें माल का पूरा विवरण तथा वाहन की डिटेल भी डालनी होगी। इन प्रावधानों का उद्देश्य नं. 2 के धंधे पर नियंत्रण पाना है।
 

 

 


आशंका है कि यह व्यवस्था नं. 2 को बंद करने में नाकाम होगी। एक कारण है कि एक्साइज ड्यूटी तथा सेल टैक्स का विलय दोतरफा तलवार है। एक तरफ इससे टैक्स व्यवस्था का सरलीकरण होता है तो दूसरी तरफ इससे नं. 2 का धंधा भी आसान हो जाता है। एक उद्यमी ने बताया कि वर्तमान में उन्हें नं. 2 में माल उठाने के लिए एक्साइज और सेल टैक्स के अधिकारियों का अलग-अलग हिस्सा बांधना होता है। उनके अनुसार अब यह कार्य आसान हो जाएगा चूंकि अब केवल एक जीएसटी अधिकारी का हिस्सा बांधना होगा। नं. 2 को रोकने के लिए ई-वे बिल की व्यवस्था की गई है। वर्तमान में व्यापारी एक ही बिल पर कई बार गोदाम से माल निकाल लेते हैं। ट्रक के साथ बिल गन्तव्य स्थान को जाता है। माल पहुंच जाने के बाद बिल वापस लाकर उसी बिल पर दुबारा माल भेजा जाता है। यह व्यवस्था पूर्ववत जारी रहेगी। अंतर मात्र यह पड़ेगा कि निर्धारित अवधि में उसी वाहन से दुबारा माल को भेजना होगा। जैसे 120 किलोमीटर दूर क्रेता को माल भेजने का ई-वे बिल 3 दिन के लिए वैध होता है। सोनीपत से दिल्ली की 120 किलोमीटर की दूरी उसी वाहन द्वारा 3 दिन में 6 बारी पूरी की जा सकती है।
 

 

 


नं. 2 के जारी रहने का तीसरा कारण टैक्स कर्मियों का मूल चरित्र है। हम देख चुके हैं कि नोटबंदी को किस प्रकार बैंक कर्मियों ने फेल किया है। छोटे लोग 4,000 रुपए बदलने के लिए घंटों लाइन में लग रहे थे जबकि बड़ी मछलियां तीन दिन बाद ही नए नोटों में लाख-लाख रुपए का नगद में धंधा पूर्ववत कर रही थीं। देश के टैक्स कर्मी यदि ईमानदार होते तो नं. 2 का धंधा होता ही नहीं। जैसा ऊपर बताया गया है कि नं. 2 के माल में टैक्स कर्मियों का हिस्सा बंधा होता है।
 

 

 


इन कारणों से जीएसटी व्यवस्था से नं. 2 को बंद करने में मदद कम ही मिलेगी। कच्चे माल की खरीद पर अदा किए गए एक्साइज ड्यूटी तथा वैट का क्रेडिट पहले भी उपलब्ध था लेकिन नं. 2 का धंधा चलता रहा। तब जीएसटी में इस क्रेडिट के कारण नं. 2 का धंधा बंद क्यों होगा? यूं समझिए कि अच्छी कंपनी का ठप्पा लगे डुप्लीकेट मोबिल आयल को डालने से गाड़ी नहीं दौड़ती है। इसी प्रकार जीएसटी की दिखावटी कागजी कार्यवाही बढ़ाने से चोरी कम नहीं होगी।
 

 

 


सरकार को समझना चाहिए कि ताले शरीफों के लिए लगाये जाते हैं। चोर के लिए ताले को खोलना आसान काम होता है। टैक्स की चोरी बंद करने का मूल मंत्र नैतिक दबाव होता है। जनता को महसूस होना चाहिए कि टैक्स देना उसकी जिम्मेदारी है। उसे लगना चाहिए कि टैक्स अदा न करना पाप होगा। यह नैतिक दबाव तब बनेगा जब मोदी सरकार ने गुड्स एण्ड सर्विस टैक्स लागू करके महान उपलब्धि हासिल की है। जीएसटी के अंतर्गत व्यापार कई तरह से सुलभ हो जाएगा। अब तक उद्योगों को एक्साइज डूयूटी तथा सेल टैक्स अलग-अलग अदा करना होता था तथा इनके रिटर्न अलग-अलग दाखिल करने होते थे। इन दोनों टैक्सों का विलय जीएसटी में हो गया है। उद्यमी को अब एक ही टैक्स अदा करना होगा एवं एक ही टैक्स अधिकारी से सम्पर्क करना होगा। अन्तर्राज्यीय व्यापार आसान हो जाएगा।
 

 

अब तक एक राज्य से दूसरे राज्य को माल भेजने के लिए बार्डर पर सेल टैक्स फार्म जमा करना होता था। एक राज्य में अदा किए गए वैट की क्रेडिट दूसरे राज्य में नहीं मिलती थी। अब राज्यों के बीच बेरोकटोक माल का आवागमन होगा। एक राज्य में अदा किए गए जीएसटी की क्रेडिट दूसरे राज्य में ली जा सकेगी। तीसरा अंतर है कि अब तक सर्विस टैक्स (जैसे रेल यात्रा, टेलीफोन अथवा बिजली) पर अदा किए गए सर्विस टैक्स का क्रेडिट नहीं मिलता था। अब इनकी क्रेडिट ली जा सकेगी। छोटे व्यापारियों को छूट दी गई है। 20 लाख तक का कारोबार करने वाले व्यापारियों को जीएसटी के अंतर्गत पंजीकरण से मुक्त कर दिया गया है। इन क्रांतिकारी सुधारों का अर्थव्यवस्था पर सुप्रभाव पड़ेगा। हम आशा कर सकते हैं कि आने वाले समय में अर्थव्यवस्था तेजी से दौड़ेगी जैसे गाड़ी में अच्छा मोबिल आयल डालने से उसकी रफ्तार सहज ही बढ़ जाती है।

दूसरी तरफ जीएसटी में कागजों का टंटा है। जीएसटी के नियमों का अनुपालन कठिन है। जैसे व्यापारी को माल एक स्थान से दूसरे स्थान भेजने के पहले बिल काट कर जीएसटी पोर्टल पर अपलोड करना होगा। इस बिल में माल की क्वालिटी, मात्रा, क्रेता की डिटेल तथा उस वाहन की डिटेल डालनी होगी, जिससे माल भेजा जा रहा है। इसके बाद व्यापारी को ई-वे बिल बनाना होगा जैसे वर्तमान में डिलीवरी चालान होता है। वाहन को अपने साथ इसे ई-वे बिल को रखना होगा। यदि माल काे एक गाड़ी से दूसरी में पलटी किया जाता है तो ट्रक ड्राइवर को नए ट्रक की डिटेल जीएसटी पोर्टल पर अपलोड करनी होगी और पोर्टल से नया ई-वे बिल निकालना होगा। उद्योगों के लिए कागजी कार्य बहुत बढ़ जाएगा। वर्तमान में इन्हें केवल एक कागजी बिल काटना होता था जो कि पर्याप्त होता था। अब इसमें माल का पूरा विवरण तथा वाहन की डिटेल भी डालनी होगी। इन प्रावधानों का उद्देश्य नं. 2 के धंधे पर नियंत्रण पाना है।

 


आशंका है कि यह व्यवस्था नं. 2 को बंद करने में नाकाम होगी। एक कारण है कि एक्साइज ड्यूटी तथा सेल टैक्स का विलय दोतरफा तलवार है। एक तरफ इससे टैक्स व्यवस्था का सरलीकरण होता है तो दूसरी तरफ इससे नं. 2 का धंधा भी आसान हो जाता है। एक उद्यमी ने बताया कि वर्तमान में उन्हें नं. 2 में माल उठाने के लिए एक्साइज और सेल टैक्स के अधिकारियों का अलग-अलग हिस्सा बांधना होता है। उनके अनुसार अब यह कार्य आसान हो जाएगा चूंकि अब केवल एक जीएसटी अधिकारी का हिस्सा बांधना होगा। नं. 2 को रोकने के लिए ई-वे बिल की व्यवस्था की गई है। वर्तमान में व्यापारी एक ही बिल पर कई बार गोदाम से माल निकाल लेते हैं। ट्रक के साथ बिल गन्तव्य स्थान को जाता है। माल पहुंच जाने के बाद बिल वापस लाकर उसी बिल पर दुबारा माल भेजा जाता है। यह व्यवस्था पूर्ववत जारी रहेगी। अंतर मात्र यह पड़ेगा कि निर्धारित अवधि में उसी वाहन से दुबारा माल को भेजना होगा। जैसे 120 किलोमीटर दूर क्रेता को माल भेजने का ई-वे बिल 3 दिन के लिए वैध होता है। सोनीपत से दिल्ली की 120 किलोमीटर की दूरी उसी वाहन द्वारा 3 दिन में 6 बारी पूरी की जा सकती है।

 

 


नं. 2 के जारी रहने का तीसरा कारण टैक्स कर्मियों का मूल चरित्र है। हम देख चुके हैं कि नोटबंदी को किस प्रकार बैंक कर्मियों ने फेल किया है। छोटे लोग 4,000 रुपए बदलने के लिए घंटों लाइन में लग रहे थे जबकि बड़ी मछलियां तीन दिन बाद ही नए नोटों में लाख-लाख रुपए का नगद में धंधा पूर्ववत कर रही थीं। देश के टैक्स कर्मी यदि ईमानदार होते तो नं. 2 का धंधा होता ही नहीं। जैसा ऊपर बताया गया है कि नं. 2 के माल में टैक्स कर्मियों का हिस्सा बंधा होता है।

 

 


इन कारणों से जीएसटी व्यवस्था से नं. 2 को बंद करने में मदद कम ही मिलेगी। कच्चे माल की खरीद पर अदा किए गए एक्साइज ड्यूटी तथा वैट का क्रेडिट पहले भी उपलब्ध था लेकिन नं. 2 का धंधा चलता रहा। तब जीएसटी में इस क्रेडिट के कारण नं. 2 का धंधा बंद क्यों होगा? यूं समझिए कि अच्छी कंपनी का ठप्पा लगे डुप्लीकेट मोबिल आयल को डालने से गाड़ी नहीं दौड़ती है। इसी प्रकार जीएसटी की दिखावटी कागजी कार्यवाही बढ़ाने से चोरी कम नहीं होगी।

 

 


सरकार को समझना चाहिए कि ताले शरीफों के लिए लगाये जाते हैं। चोर के लिए ताले को खोलना आसान काम होता है। टैक्स की चोरी बंद करने का मूल मंत्र नैतिक दबाव होता है। जनता को महसूस होना चाहिए कि टैक्स देना उसकी जिम्मेदारी है। उसे लगना चाहिए कि टैक्स अदा न करना पाप होगा। यह नैतिक दबाव तब बनेगा जब सरकार

 

पारदर्शी तरीके से जनता को दिखा सकेगी कि वसूले गए राजस्व का जनहित में सदुपयोग हो रहा है। मोदी सरकार सरकारी धन के उपयोग में निश्चित रूप से सुधार लायी है। परन्तु राजस्व का बड़ा हिस्सा भ्रष्ट सरकारी कर्मियों को उत्तरोत्तर अधिक सुविधाएं मुहैया कराने में किया जा रहा है।

 


मोदी के वैभव से भी जनता में सौहार्द उत्पन्न नहीं होता है। जैसे सोने के तार से ‘मोदी' लिखे कपड़े की महंगी सूट पहन कर प्रधानमंत्री चाय वाले से जीएसटी अदा करने को कहें तो नैतिक दबाव नहीं बनता है। नैतिक दबाव के अभाव में कागजी प्रपंच बढ़ाने का परिणाम होगा कि टैक्स कर्मियों का हिस्सा बढ़ेगा, व्यापार की गति धीमी होगी और नं. 2 का धंधे में मामूली अंतर पड़ेगा, इसमें वृद्धि भी हो सकती है।

 

 


जीएसटी के साथ-साथ मोदी सरकार की कर्मठता के अर्थव्यवस्था पर दो परस्पर विरोधी प्रभाव होंगे। जीएसटी लागू होने से अंतर्राज्यीय व्यापार सरल हो जाएगा। सर्विस टैक्स का क्रेडिट लिया जा सकेगा। इससे अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। लेकिन कागजी कार्यों की वृद्धि के कारण यह सुप्रभाव कुछ मंद पड़ जाएगा। कितना मंद पड़ेगा, यह समय ही बताएगा। हो सकता है कि सरलीकरण का सुप्रभाव कम और कागजी कार्य का कुप्रभाव ज्यादा हो। दूसरी तरफ सरकार के वैभव तथा भ्रष्ट सरकारी कर्मियों के उत्तरोत्तर बढ़ते

 

 

वेतन से टैक्स की चोरी करने का नैतिक आधार पूर्ववत बना रहेगा। जीएसटी का अंतिम परिणाम नोटबंदी की तरह घातक सिद्ध हो सकता है।
(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।)