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एएमआरआई अस्पताल अग्निकांड में मरने वालों की संख्या 93 हुई

कोलकाता, 12 दिसंबर (जनसत्ता)। महानगर के ढाकुरिया स्थित एएमआरआई अस्पताल में पिछले शुक्रवार को हुए भयावह अग्निकांड में मरने वालों की संख्या 93 हो गई है। रविवार को इसी अस्पताल के साल्टलेक स्थित परिसर में बाबूलाल भट््टाचार्य व बेल व्यू क्लीनिक में नीला दासगुप्त की मौत हो गई।

अस्पताल के सूत्रों ने बताया कि भट्टाचार्य को हृदय की बीमारी के इलाज के लिए एएमआरआई अस्पताल के ढाकुरिया परिसर में भर्ती किया गया था। दो दिन पहले इस अस्पताल में आग लगने के बाद उनको अस्पताल के साल्टलेक परिसर में स्थानांतरित कर दिया गया था, जहां रविवार तड़के उनकी मौत हो गई। भट्टाचार्य दक्षिण चौबीस परगना जिले के सोनारपुर के निवासी थे और वे न्यू टाउन पुलिस स्टेशन में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत थे। दूसरी ओर, बेल व्यू क्लीनिक में 82 साल की नीला दासगुप्त को एएमआरआई अस्पताल में आग लगने के बाद भर्ती किया गया था। बेल व्यू क्लीनिक के मेडिकल डायरेक्टर पीके टंडन ने कहा कि दासगुप्त की मौत स्वाभाविक कारणों से हुई है। उन्होंने कहा कि यह एक हृदयाघात का मामला है। नीला दासगुप्त की बेटी जया दासगुप्त स्टेट डेवलपमेंट एंड प्लानिंग विभाग की सचिव हैं।

इस बीच, स्टेट फॉरेंसिक रिसर्च लैबोरेटरी की एक टीम ने आज अग्निदग्ध एएमआरआई अस्पताल का दौरा किया। टीम के सदस्यों ने अस्पताल के बेसमेंट (तलघर) में जाकर वहां रखी चीजों की जांच की। बेसमेंट में पानी जमा होने के कारण टीम शनिवार को जांच शुरू नहीं कर पाई थी। शुक्रवार को एएमआरआई अस्पताल में भयावह आग लग गई थी। आग अस्पताल के बेसमेंट से ही शुरू हुई थी। बाद में इसके विकराल रूप धारण कर लेने से 92 लोगों की मौत हो गई। इस हादसे में अस्पताल के अधिकतर डॉक्टर व नर्स खुद को बचाने में सफल हो गए थे, लेकिन अस्पताल में गंभीर रूप से बीमार मरीजों की मौत अस्पताल के बिस्तर पर ही हो गई थी। पुलिस ने अग्निकांड के सिलसिले में एएमआरआई अस्पताल के सात निदेशकों को गिरफ्तार किया है। इनमें से छह लोगों को अलीपुर के मुख्य दंडाधिकारी की अदालत ने 10 दिनों के लिए पुलिस हिरासत में भेज दिया है।

प्रदर्शन :दूसरी ओर, स्थानीय लोगों ने रविवार को एएमआरआई अस्पताल के बाहर प्रदर्शन किया। उन्होंने आरोप लगाया कि अस्पताल के प्रबंधन ने पार्क बनाने के लिए खेल के मैदान का जबरन अधिग्रहण कर लिया है। प्रदर्शनकारी हाथों में पोस्टर व बैनर लिए हुए थे, जिसमें अग्निकांड के लिए अस्पताल के अधिकारियों कोे कड़ी सजा देने की मांग की गई थी।
दक्षिण कोलकाता के ढाकुरिया में जिस जगह एएमआरआई अस्पताल है, ठीक उसी के नजदीक पंचाननतला बस्ती है। पंचाननतला के बाशिंदों ने ही अस्पताल प्रबंधन पर पार्क के निर्माण के लिए खेल के मैदान की जमीन ‘छीन लेने’ का आरोप लगाया है। इन बाशिंदों ने अस्पताल के बाहर कुछ पोस्टर लगा रखे हैं, जिन पर लिखा है-हमारे खेल के मैदान को वापस करो, अग्निकांड के दोषियों को कड़ी सजा दो आदि-आदि।
अस्पताल के नजदीक रहने वाले शंभु दास ने कहा-जिस जगह पर अस्पताल प्रबंधन ने पार्क का निर्माण किया है, वह हमारे खेल का मैदान था। यह कोलकाता मेट्रोपोलिटन डेवलपमेंट अथारिटी (केएमडीए) की जमीन है। अस्पताल प्रबंधन ने

जबरन इस जमीन का अधिग्रहण कर लिया है। उन्होंने कहा कि यहां के बाशिंदे यह जमीन वापस करने की मांग करते हैं। इधर, इस मुद्दे पर अस्पताल के अधिकारी टिप्पणी करने के लिए उपलब्ध नहीं थे।
एसयूसीआई (कम्युनिस्ट) समेत कई राजनीतिक पार्टियों ने भी एएमआरआई अस्पताल के बाहर पोस्टर व बैनर लगाकर हादसे के लिए जिम्मेवार लोगों को सजा दिलाने की मांग की है। इन दलों ने पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत अस्पताल परियोजनाओं को रद्द करने की भी मांग की है।

एक डाक्टर ने भूख-प्यास तजकर लगातार 13 घंटे 20 मिनट की अथक मेहनत करके 83 लोगों का पोस्टमार्टम किया। यह घटना नौ दिसंबर की है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एसएसकेएम के शवगृह के बाहर आमरी अग्निकांड में दम घुटने से मरे लोगों के परिवार वालों से माइक हाथ में थामे नाराज लोगों को शांत करने के साथ ही कह रही थी कि चिंता मत करें, आपके रिश्तेदारों का शव जल्द ही आपको सौंपा जा रहा है।

दूसरी ओर डाक्टर विश्वनाथ कोहली भीतर पोस्टमार्टम करने में व्यस्त थे। उस दिन को याद करते हुए वे बताते हैं कि सुबह सवा छह बजे सुबह की सैर (मार्निंग वाक) के दौरान अचानक फोन मिला कि इमरजंसी है। तकरीबन छह बजे एसएसकेएम अस्पताल पहुंचने पर देखा कि चार टेबल पर चार लाशें पड़ी हैं। अपने चार सहायकों के साथ पोस्टमार्टम करने में जुट गए। इसके बाद सिलसिला शुरू हुआ और एक के बाद दूसरी लाश वहां पहुंचने लगी और वे बगैर कुछ खाए -पिए अपने काम में जी-जान से जुटे रहे। सुबह नौ बजकर 40 मिनट से शुरू हुआ काम आखिर रात ग्यारह बजे थमा तो उन्होंने राहत की सांस ली कि आखिर अपने काम में सफल रहे ।

दुखद शुक्रवार को याद करते हुए वे कहते हैं कि लाशों के तौर पर मेज पर पड़े सभी लोगों को देख कर ऐसे लग रहा था कि वे लोग सो रहे हैं। किसी के चेहरे पर शिकन नहीं   थी। ज्यादातर लोगों की मौत दम घुटने के कारण हुई थी। उनके चेहरे पर कार्बन के धुएं के कारण जरूर कालिख-सी लगी हुई थी। मरने वाले लगभग सभी मरीज थे। उनके हाथ-पैर में प्लास्टर लगा हुआ था। कई लोगों के सलाईन के पाइप भी लगे थे। आग के बाद फैले धुएं से बचने में नाकाम रहने के कारण ही उनकी मौत हुई थी। दो किशोर नर्स लड़कियों की लाशें भी 83 लोगों में शामिल थीं। उन्होंने अस्पताल की वर्दी पहनी हुई थी।

हालांकि उनका कहना है कि एक साथ इतने लोगों का पोस्टमार्टम करने में उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं हुई। इससे पहले 1988 में उत्तर चौबीस परगना जिले के बैरकपुर शवगृह में इससे भी बड़े हादसे में मरने वालों के शव का पोस्टमार्टम किया गया था। दो बसें एक साथ जलाशय में जा गिरी थीं और 130 लोगों की मौत हो गई थी, उन सभी लोगों का पोस्टमार्टम कोहली ने ही किया था। डाक्टरी की पढ़ाई के दौरान मास डिजास्टर की शिक्षा से यह फायदा मिला कि शव देखकर मन ज्यादा व्यथित नहीं होता। शुक्रवार भी रात दो बजे घर पहुंचने के बाद दो बार स्नान किया और फिर पहले की तरह तरोताजा होकर सो गया।