Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/एक-सच-के-साथ-तीन-झूठ-सुनील-4213.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | एक सच के साथ तीन झूठ - सुनील | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

एक सच के साथ तीन झूठ - सुनील

पिछले बीस सालों से विदेशी पूंजी की खुशामद में जन-हित और राष्ट्र-हित की बलि चढ़ाई जा रही है. भारत की सरकारें अमेरिका-यूरोप के बहुराष्ट्रीय हितों के दलालों की तरह बर्ताव कर रही है.

खुदरा व्यापार में विदेशी कंपनियों को इजाजत देने पर हुए विवाद पर सफ़ाई में प्रधानमंत्री ने कहा कि फ़ैसला बहुत सोच-समझ कर लिया गया है. प्रधानमंत्री की इस बात में सच्चाई है. यह कोई एकाएक लिया फ़ैसला नहीं है. कैबिनेट सचिवों की समिति ने दो महीने पहले ही इसकी सिफ़ारिश कर दी थी. महंगाई पर हल्ला हो रहा था, तब भी मोंटेक सिंह अहलुवालिया, रंगराजन और कौशिक बसु ने कहा था कि इसका इलाज खुदरा व्यापार में बड़ी कंपनियों को बढ़ावा देने में निहित है.

प्रधानमंत्री और वाणिज्य मंत्री काफ़ी पहले से दावोस, न्यूयॉर्क और वाशिंगटन में वादा करते आ रहे थे कि वालमार्ट के लिए भारत के दरवाजे खोले जायेंगे. जिस दूसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधारों की बात वे करते आये हैं, यह उसका एक प्रमुख हिस्सा है. वैश्वीकरण-उदारीकरण-कंपनीकरण के जिस रास्ते पर हमारी सरकारें चल रही हैं, यह उसका अगला स्वाभाविक व तार्किक पड़ाव है. जब अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र को विदेशी कंपनियों के लिए खोल दिया गया है, तो खुदरा व्यापार कब तक बचता?

इस बारे में विपक्ष का विरोध भी अधूरा एवं खोखला है. जहां और जब वे सत्ता में रहे, उन्होंने भी विदेशी पूंजी को दावत दी और विदेशी कंपनियों को माई-बाप माना. हर मुख्यमंत्री उन्हें न्योता देने विदेश यात्राओं पर गया. इस फ़ैसले के खिलाफ़ हुंकार भरने वाले मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने देशी-विदेशी कंपनियों की मिजाजपुर्सी के लिए छ-सात ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट आयोजित की.

नीतीश कुमार जब भारत के कृषि मंत्री थे, तो उन्होंने भी राष्ट्रीय कृषि नीति में खेती में कंपनियों को आगे बढ़ाने का नुस्खा पेश किया गया. दूसरे क्षेत्रों में विदेशी कंपनियां प्यारी और खुदरा व्यापार में बुरी, खुदरा व्यापार में भी रिलायंस-भारती-आइटीसी अच्छी और वालमार्ट बुरी- ऐसा मानने वालों के अंतर्विरोधों के कारण ही उनका विरोध कमजोर हो जाता है.

भारतीय बाजारों में विदेशी घुसपैठ की शुरुआत तो तभी हो गयी थी, जब भारत विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बना और कुछ वर्षो बाद एक झटके में 1423 वस्तुओं के लिए बाजार खोल दिया गया. भारत के थोक व्यापार, एक ब्रांड के व्यापार और कृषि व्यापार को विदेशी कंपनियों के लिए खोला गया था, तभी स्पष्ट हो गया था कि अगला नंबर खुदरा व्यापार का है. विडंबना यह है कि इस अवधि में गैर-कांग्रेसी सरकारें भी रही.

किंतु प्रधानमंत्री जो दूसरे दावे कर रहे हैं, वे सच्चाई से परे हैं. जब सौ दुकानों की जगह एक विशाल मॉल लेगा, जहां सारा काम यंत्रों और कंप्यूटर से होगा, तो रोजगार बढ़ेगा या घटेगा? हमारे शासकों एवं विशेषज्ञों को इतना भी नहीं दिखता कि पश्चिमी देशों और भारत की परिस्थितियों में भारी फ़र्क है. वहां भी वालमार्ट ने छोटे दुकानदारों को बेदखल किया, किंतु उनकी संख्या बहुत कम थी, वे खप गये.

भारत में विशाल श्रमशक्ति‍ है. खेती व उद्योग के बाद व्यापार सबसे ज्यादा रोजगार प्रदान करता है. घोर बेरोजगारी के इस युग में जब कहीं नौकरी नहीं मिलती, तो एक छोटी दुकान ही रोजी-रोटी का जरिया बनती है. अब इसी पर हमला हो रहा है. अमेरिका का अनुभव है कि वालमार्ट का एक मॉल खुलता है तो उसकी 84 फ़ीसदी आय स्थानीय छोटे व्यापारियों का धंधा हड़प कर ही होती है. जब भारत सहित पूरी दुनिया में रोजगार का विशाल संकट है, तब भारत सरकार रोजगार नष्ट करने के उपाय कर रही है.

प्रधानमंत्री का दूसरा झूठा दावा किसानों को फ़ायदा पहुंचाने का है. खुदरा व्यापार में रिलायंस फ्रेश, चौपाल सागर, हरियाली आदि के रूप में बड़ी देशी कंपनियों की श्रंखला तो पहले ही काम कर रही है. क्या इससे भारत के किसानों को बेहतर दाम मिले? क्या खेती का संकट दूर हुआ? यदि कुछ बेहतर दाम मिले भी तो लागत भी बढ़ जाती हैं और कॉन्ट्रैक्ट खेती के जरिये किसान कंपनियों पर बुरी तरह निर्भर हो जाता है. सरकार के इस कदम से भारत की खेती पर विशाल बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्जा हो जायेगा.

भारत का किसान दैत्याकार कंपनियों के चंगुल में फ़ंसा छटपटाता रहेगा. इस बात की भी पूरी संभावना है कि किसानों की उपज खरीदने के लिए कंपनियां आ चुकी हैं, यह बहाना बना कर सरकार समर्थन-मूल्य पर कृषि उपज की खरीद बंद कर दे. भारतीय खेती और भारत के किसानों के ताबूत पर यह ओखरी कील होगी.

प्रधानमंत्री का तीसरा झूठ यह है कि इससे व्यापार में बिचौलिये खत्म होंगे और महंगाई कम होगी. यह जरूर है कि छोटे-छोटे लाखों बिचौलियों की जगह चंद बहुराष्ट्रीय बिचौलिये ले लेंगे, जिनके पास बाजार को नियंत्रित करने और उस पर कब्जा करने की अपार ताकत होगी. क्या अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री को अर्थशास्त्र के इस सामान्य नियम की याद दिलाना होगा कि एकाधिकारी प्रवृत्तियां बढ़ने से कीमतें बढ़ती हैं, कम नहीं होती? सच तो यह है कि ये बड़े बहुराष्ट्रीय व्यापारी किसानों, उत्पादकों, उपभोक्ताओं सबका शोषण करेंगे और लूट का मुनाफ़ा अपने देश ले जायेंगे. इतिहास का चक्र उल्टा घूम रहा है. हम वापस औपनिवेशिक युग में पहुंच रहे हैं.

एक चौथा भोला तर्क है कि इससे विदेशी पूंजी निवेश बढ़ेगा. किंतु किसलिए? क्या महज वृद्धि दर और शेयर सूचकांक बढ़ाने के लिए? पिछले बीस सालों से विदेशी पूंजी की खुशामद में जन-हित और राष्ट्र-हित की बलि चढ़ाई जा रही है. भारत की सरकारें जनता के हितों की रक्षा के बजाय अमेरिका-यूरोप के बहुराष्ट्रीय हितों के दलालों की तरह बर्ताव कर रही है. यह घोर पतन का युग है. यह ज्यादा बड़ा और ज्यादा खतरनाक भ्रष्टाचार है. इसके खिलाफ़ कोई जेपी आंदोलन, कोई अरब वसंत या कोई वॉलस्ट्रीट कब्जा आंदोलन चलाने का वक्त आ गया है. किंतु ऐसे किसी भी आंदोलन को नवउदारवाद और विकास के मॉडल पर भी प्रहार करना होगा, तभी उसकी विश्वसनीयता बन पायेगी.

(लेखक : समाजवादी जन परिषद के उपाध्यक्ष एवं अर्थशास्त्री)